मैं सोचता हूं तुम्हारे तारीफ में कुछ लाजबाव लिखूं,
फिर सोचता हूं सदियों से लिखी गई है मोहब्बत,
भला मैं अब तुम पर विशेष क्या अल्फाज़ लिखूं।
तुम हसीन हो, तुम ख्वाब हो,
तुम ही गुलशन, तुम ही बहार हो।
तुम ही चांद, तुम ही आसमान हो,
जो भी हो अब वस तुम ही तुम हो,
तुम ही दुनियां, तुम ही ज़हान हो।
ये सब मैं लिखता पर ये सब बातें पुरानी है,
तुम जो हो वो वस महसूस किया जा सकता है ,
शब्दों में ढल जाए एसी थोड़ी ना तुम्हारी जवानी है।
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