pankaj singh   (Pankaj singh)
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Hindi poetry writer
Joined 26 December 2019


Hindi poetry writer
Joined 26 December 2019
21 JUN 2020 AT 7:49

हार कभी न मानना,
देख क मुश्किल राहों की,
तनहा हो के भी गम ना करना,
सूने होते बाँहों की,
बस कोशिशें जारी रखना,
यूँ हार के ना पीछे हटना,
चाहे भूल जाना सब कुछ तुम,
पर बात यही एक याद रखना,
छीन नहीं सकता तुझसे कोई,
जो तू नसीब में ले के आया है,
हारना नहीं मेरे बेटे तुम,
पापा ने इतना हीं सिखाया है!

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13 JAN 2022 AT 20:22

खामोशी से सुनता हूं तो
सन्नाटे में भी मुझको,
एक शोर सुनाई देता है,
मैं ढूंढता हूं खुद में खुद को हीं,
आईने में जैसे मुझको,
कोई और दिखाई देता है!

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1 NOV 2021 AT 23:22

विरान सी लगती राहों में,
मैं मेरी खता ढूंढने निकला हूं,
मैं झूठों की बस्ती में,
इक सच ढूंढने निकला हूं।

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1 NOV 2021 AT 23:19

विरान सी लगती राहों में,
मैं मेरी खता ढूंढने निकला हूं,
मैं झूठों की बस्ती में,
इक सच ढूंढने निकला हूं।

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3 OCT 2021 AT 13:35

तुम्हे जिस बात की खबर हीं नहीं,
उसकी शिकायत कौन करे,
दुआएं मुकम्मल हो न रही,
अब और ईनायत कौन करे,
रिश्तों में दुरियां इस कदर है हावी हो रखी,
की दोनो है अडिग बातों पे अपनी,
अपनी बातों से आखिर,
समझौता फिर कौन करे!

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23 SEP 2021 AT 20:20

जब उलझनों में खुद को,
उलझा सा मैं पाता हूं,
लोग पूछते हैं वजह फिर भी,
जब लोगों से छुपाता हूं,
तुम्हे सोचता हूं,
तुम्हे खोजता हूं,
तू दिखती ना जब पास मेरे,
मैं थोड़ा सहम सा जाता हूं,
आज भी सब कुछ वैसा हीं है,
ज़िद्द वही सपने भी वही,
पर दिल ढूंढता है जवाब यही,
क्यूं साथ मेरे अब तू नही!

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18 SEP 2021 AT 20:24

घना अंधेरा रात का और
ख्याल उनके न आए,
ऐसी तो कोई रात नही,
न पूछो तो सौ मसले उनके,
पूछो तो कोई बात नहीं!

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7 SEP 2021 AT 22:47

बिताए दिन तेरे साथ जो भी,
मेरी आंखों से वो मेले नही जाते,
पर वो झूठे वादों पे ऐतबार वाले,
खेल भी मुझसे अब खेले नहीं जाते,
निभा लिया झुक कर कई साल साथ तुम्हारे,
अब तुम्हे छोड़ना हीं होगा लगता है,
तुम मुझसे अब झेले नही जाते!

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5 SEP 2021 AT 20:12

कहीं पे हौसला मिला तो कहीं,
उम्मीदें सैकड़ों टूटी हैं,
मंजिल राह देख रही मेरा और,
किस्मत खामखां हीं रूठी है,
हँसी है लबों पे मेरे जैसे,
सिर्फ दिखावे की,
ये मुझको हीं पता की मेरी हर,
मुस्कान झूठी है!

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4 SEP 2021 AT 22:28

कभी जो फुरसत में होंगे तब,
उलझनों को अपनी सुलझा कर देखेंगे,
याद करेंगे बचपन को और,
पत्थर नदी में फिर से फेंकेंगे,
अधुरे ख्वाइशों को छोड़ रखा है,
किसी एक खास मकसद से,
निपट लें जिम्मेदारियों से पहले,
जिंदगी तुम्हे फिर जी कर देखेंगे!

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