PANKAJ SHARMA   (✍️ पंकज 'पुलत्स्य')
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Joined 2 May 2018


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25 MAR AT 21:14

होता कोई हमारे हक में भी बोलने वाला,
मिलता कोई आंखे नहीं, दिल खोलने वाला।
रंग बदलने वाले बहुत देखे जीवन में,
कोई चाहिए था जीवन में रंग घोलने वाला।।

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7 MAR AT 15:14

जहां खुशियों का दमन होता हो वर्चस्व की दौड़ में,
जहां आजादी का हनन होता हो समाज की होड़ में,
वहां अपना कोई जहान भला क्यों बसाए हम।
कभी तो ये दास्तां खत्म हो,
आखिर किस-किस से और कितनी ठोकरें खाएं हम।।
किसी ने फेर ली दो मुलाकातों में ही अपनी आंखे,
तो किसी ने ता-उम्र सताए हम।
जीवन का एक वर्ष और बीत गया गर्दिश में,
एक वर्ष मौत के और करीब आए हम।।

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29 FEB AT 7:07

झूठ कहते हैं लोग कि प्रेम में मौन की भी भाषा होती है,

हमने तो हर रिश्ते में चुप रहने की ही कीमत चुकाई है।

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22 JAN AT 14:22

आसान नहीं था राम का श्री राम होना,
आंसू उनके हिस्से का थोड़ा-थोड़ा सबने पिया है।
राम! राम को जीते गए ये उनके संस्कार थे,
पर राम के पथ को राम से ज्यादा सीता ने जिया है।।

महलों के सपने संजोने वाली एक महारानी,
जिसने वनवास को भी स्वैच्छिक स्वीकार लिया है।
बिन कुछ कहे अग्निपरीक्षा देकर,
सीता ने राम को "मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम" किया है।।

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21 JAN AT 0:19

एक दिन बिछोह की बात पर मैंने उससे कहा कि
"मैं ये तो नहीं कहता की मुझसा कोई नहीं मिलेगा क्योंकि मुझसे बेहतर तो हजारों है, यह मैं जानता हूं... पर इतना कह सकता हूं कि मुझसा कोई मुश्किल से मिलेगा"।

इस बात पर उसने कहा कि "यदि ऐसा है तो ये तुम्हारा वहम ही है फिर तो"।

ये सुनकर मुझे बुरा लगना चाहिए था पर मैं हैरान हूं कि मैने उसे मन ही मन धन्यवाद कहा और "समय बताएगा" कहकर अपनी बात खत्म की।

उसके पश्चात मुझे एहसास हुआ कि मेरा खुद के लिए ये मानना कि "मैं एक अच्छा आदमी हूं", एक वहम ही था जोकि उसके एक जवाब ने दूर कर दिया।

इसके अलावा, एक वहम मैं अब भी पाले हुए हूं कि "मैं आदमी हूं"... उसके वस्ल के साथ भी आदमी हूं और उससे बिछोह के बाद भी आदमी रहूंगा और तब तक रहूंगा जब तक मैं उसे मेरा ये वहम दूर करने की स्वतंत्रता देता रहूंगा।
"यकीनन मैं अब भी आदमी हूं"।

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15 NOV 2023 AT 11:08

मेरे अंदर के हौसलों की आग है तू,
भरे तूफानों में मेरा चिराग है तू!

सदा इतना प्यार मुझपे बनाये रखना,
कभी माफ कर देना, कभी गलतियों को भुलाये रखना!

घर की परिस्थितियों को समझा, ना तू आवारा कभी बना है,
दुख-सुख की हर घड़ी में तू सहारा मेरा बना है!

मेरी संवेदना तुझसे, मेरी चेतना तुझसे,
सबको दिखा देंगे प्यार कितना है मुझे तुझसे और तुझे मुझसे!

बस यूँ ही करते रहेंगे खुद को समर्पित एक-दूजे के लिए,
कभी अपने लिए, कभी अपनों के लिए!

तुझसे ही है मेरा भविष्य उज्ज्वल,
तेरे लिये मेरा प्यार सदा रहेगा निश्छल!

चल! सदा संग रहकर एक मिसाल बनाते है,
एक भाई, भाई के लिए क्या होता है ये दुनिया को बताते है!

दुआ है मेरी कि तू जीवन में कभी किसी हालात से ना घबराए,
मेरे भाई! तुझे जन्मदिन की अशेष मंगलकामनाये!!

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12 NOV 2023 AT 11:21

इस दिवाली दीपों की रोशनी में *जहान* भले ना रोशन हो,
कोशिश करना कि मानवता की रोशनी से *जहन* जरूर रोशन हो।
भले ही कोई एक दीया कम जलाना,
मगर थोड़ा प्रकाश अंतर्मन तक जरूर फैलाना।

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24 OCT 2023 AT 13:13

घर-घर रावण जलाने वालों पर,
शर्त ये भी एक लगाएं।
जिस शख्स में राम बसता हो,
वही रावण को आग लगाए।।

आज नारी की देख दशा,
मुझे वो रावण याद आता है।
तब सीता कैद में भी महफूज रही,
आज स्वतंत्र नारी को भी निर्वस्त्र किया जाता है।।

उस पर हृदय झंकझोरती समाज की लाचारी है,
कोई उसका विरोध नहीं करता जो मनुष्य व्याभिचारी है।
नि:संदेह उस युग का रावण संस्कारी था,
पर आज घर-घर कोई रावण बलात्कारी है ।।

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24 SEP 2023 AT 20:46

ये लोग जो मुझे अपना अजीज कहते हैं, मानते हैं,
जमाने से हटकर चलूं तो क्या करेंगे इस्तकबाल मेरा ।
हर कोई जितना असहज हो जाता है सुनकर,
आखिर इतना भी मुश्किल नहीं सवाल मेरा ।।

जिसके दिए दर्द से बेचैन रहता हूं मैं,
वो शख्स भी पूछता है हाल-चाल मेरा ।
सब की रुचि थी मुझमें कमियां निकालने में,
किसी को भी नहीं शिद्दत से ख्याल मेरा ।।

उन सबसे भी निराशा मिली जिनसे वफा की थी उम्मीद,
मैं फिर भी मुस्कुरा देता हूं और दिल है बेहाल मेरा ।
जब पास कुछ नहीं था, तो साथ कोई नहीं था पंकज,
आज मुकाम हासिल है पर मिटता नहीं सफर का मलाल मेरा ।।

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14 SEP 2023 AT 20:56

मैं भले ही अनेकों भाषाएं लिख, पढ़ और बोल सकता हूं।
लेकिन सोचने के लिए मुझे हिंदी होना पड़ता है;
मुझे सारे विचार और स्वपन हमेशा हिंदी में ही आते हैं।
यही मेरी ताकत है और मातृभाषा का सम्मान भी।

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