PANKAJ SHARMA   (✍️ पंकज 'पुलत्स्य')
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Joined 2 May 2018


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14 DEC 2024 AT 22:35

हमारी वफ़ा बदनाम है बस हमारी जिम्मेदारी खिताब है,
हमारे लबों पे ताला है हमारा चेहरा किताब है।
जिसके व्यवहार में समझदारी हो उसे बहकने का हक नहीं,
हम कल भी ख़राब थे हम आज भी ख़राब हैं।।

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14 DEC 2024 AT 22:32

रात-भर वही ख्वाब आए, दिल का बस यही ख्वाब है,
प्रचुर मादकता अदाओं में है, बड़ा हल्का नशा शराब है।
देह का बाजार सजा है प्रेम का कोई खरीददार नहीं,
हम कल भी ख़राब थे हम आज भी ख़राब हैं।।

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14 DEC 2024 AT 22:27

पास कुछ नहीं है बस आंखों में रुआब है,
जो दिल दुखाते हैं वही दिलों के नवाब हैं।
सब बनावट पर फिदा हैं मन में कोई झांकता नहीं,
हम कल भी ख़राब थे हम आज भी ख़राब हैं।।

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14 DEC 2024 AT 22:24

दिल में भारीपन है बस चेहरे पर शबाब है,
बेइंतहा सवाल हैं और अधूरे जवाब हैं।
सब शब्दों में बहे जाते हैं मौन कोई समझता नहीं,
हम कल भी ख़राब थे हम आज भी ख़राब हैं।।

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13 DEC 2024 AT 20:39

दिल ऐसी हसरतें पाल बैठा है आजकल,
जिनका ना कोई आज है और ना कल।
कोई दो दिन तो आकर साथ निभाए पंकज,
दो ही दिन बस... आज और कल।।

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12 DEC 2024 AT 12:54

अंधेरे रास्तों ने ही तो बहुत कुछ सिखाया है मुझे,
अपनी परछाई भी साथ तब दिखी जब पथ पर उजाला हुआ।

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26 NOV 2024 AT 0:36

चरित्र को मूल्यवान बनाकर रखिए,
यही आपको अमूल्य बना सकता है।

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23 OCT 2024 AT 0:06

हौसलों की उड़ान पर सबकी निगाहें हैं,
मन की गहराई का बोध किसी को नहीं।

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25 MAR 2024 AT 21:14

होता कोई हमारे हक में भी बोलने वाला,
मिलता कोई आंखे नहीं, दिल खोलने वाला।
रंग बदलने वाले बहुत देखे जीवन में,
कोई चाहिए था जीवन में रंग घोलने वाला।।

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7 MAR 2024 AT 15:14

जहां खुशियों का दमन होता हो वर्चस्व की दौड़ में,
जहां आजादी का हनन होता हो समाज की होड़ में,
वहां अपना कोई जहान भला क्यों बसाए हम।
कभी तो ये दास्तां खत्म हो,
आखिर किस-किस से और कितनी ठोकरें खाएं हम।।
किसी ने फेर ली दो मुलाकातों में ही अपनी आंखे,
तो किसी ने ता-उम्र सताए हम।
जीवन का एक वर्ष और बीत गया गर्दिश में,
एक वर्ष मौत के और करीब आए हम।।

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