मंज़िल ना तुझमे मेरी,फिर राहें क्यूँ टकराई हैं..
जैसे खिली धूप बारिश पे,इंद्रधनुष सी छाई है.....
जैसे सपनो का सागर,नयनो से अनदेखा है..
आँसू तेरा ना मैने,ना तूने मेरा देखा है.....
दूर क्षितिज सी आँखों मे,क्या वो तेरी परछाई है...
ना कहीं सुनी आवाज़ तेरी,पर धुन कानों तक आई है...
सागर की गहराई मे,जिस सीपी ने मोती थामें है..
वो इश्क़ को मोती समझे है जग इश्क़ को समझे सांचे हैं..
तू या तो श्याह होजा मुझमें या कर दे मुझे सुफेद अभी...
अब मुझको भी तो पता चले मैं तुझको कान्हा सोचूं हूँ
तू मुझको मीरा माने है..........
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