रंग जामुनी , कथाई या सुनहरा होता
ये इश्क़ था जनाब , ज़रा ओर गहरा होता
और मैं डूब जाता उस रात गहरे दरिया में
अगर मेरा इश्क़ ही दरिया होता !!-
कचोटता हैं मन , बुलाती हैं वो गलियाँ
जहाँ मैं घुमता था नंगे पाव सारी दुनिया
वही अमरूद के पेड़ और उसकी छांव
जहाँ करते थे बातें बे सर-पाव
लालटेन की फुदकती रूह
और उसको जलाता बुझाता मेरी नन्ही उँगलियाँ
बारिश में टपकते हुए खप्पर
और छाते की वो नन्ही खिड़कियाँ
ठंडी हवाओं का थपेड़ा, और अलाव की चादर
पीपल पर भूतों का टीला और पास में शंकर का क़िला
और वो गुप्त स्थान जहाँ दोस्तों की होती थी मटरगस्तिया
खेलते कार्ड और खाते समोसे बे-हिसाब
वही आग़न जहाँ अनार होते थे
तुलसी के पौधा और बछिया से प्यार होते थे
उठूँगा एक सुबह उसी गाँव में
सोऊँगा ख़ामोशी के साथ उसी गाँव में
जहाँ मैं, मैं हुआ !!
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मेरा इकतरफ़ा प्यार
मोहल्ले में यें चर्चायें थीं कीं मैं इश्क़ में हूँ
सच हैं , तुझे देख मैं मुस्काया करता था
जब भी तू होती मेरे रुबरू
साला , ये दिल बड़ी तेज़ दौड़ता था
किताबों में अक्सर तेरी तस्वीर होती
और हर पन्नो पे तेरा मेरा नाम संग में होता
जब हम गाँव की पगडंडी पे आमने -सामने मिलते
मैं तुझे देख झट से पानी भरे खेतों में उतर जाता था
ख़्वाबों में जब भी मैं तुझसे से मिलता माही
तुझे बाँहों में भर चुमा करता था
बात गाँव के मेले की शायद याद हो तुझे
झुलें पे झुलते हुए मैंने इजहारे इश्क़ का ख़त दिया था
अब तो गाँव से मेले उजड़ गये ,
और तुने भी किसी और से निबाह कर लीं
और ,मैं अब भी उसी मेले और झुले के इंतज़ार में हूँ
या शायद अपने इकतरफ़े प्यार में हूँ !!
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तेरे दूर जाने के बहाने पुराने थे मगर,
मेरे आँखों से बरसें पानी सच्चे थे-
गुलाबों का गुलदस्ता भेजा था उसको
उजले गुलाबों को अपने लहू से रंग कर-
मुझे ख़्वाब आते क्यों नहीं
इसी सोच में रातें - जग कर गुज़ारी हमने
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तू अनमोल हैं या बे-मोल हैं ‘पंकज’
तराज़ू पे बैठ तेरी क़ीमत लगाई जाये !-
मैंने शराब पी , तो क्या शराबी कहोगे
ना तुम्हारे ग्लास से पी , ना तुम्हारे बाप की पी !-