एक रोज़ ऐसी चाहता हूँ कि जब
इस लाल शाम के आंचल में बैठे हो हम
सिर पे कुछ सफेद बाल, लबो पर मुस्कराहट
कुछ पुराने दिनों की याद और चाय का साथ
तेरा सिर झुका हो मेरे कांधे पर, और थामी को मैंने तेरी बाहें
मैं तेरे हाथों को थाम उनकी झुर्रिया देखते हुए कहूं कि
हम मुकाम तक आगये, हमने कर दिखाया।
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