सभी खानों में अब के मात रख दी है
चुरा के दिन किसी ने रात रख दी है
पियादे आ गए थे सामने मेरे
तो जाना शाह ने औकात रख दी है
दुआ मांगी परिंदो से मोहब्बत की
दुआ फिर ये हवा के हाथ रख दी है
रखा सहरा पे मेरे धूप को उसने
भरे पानी पे क्यो बरसात रख दी है
कहानी वो अधूरी ही सुनाई थी
वही जो चाहता था बात रख दी है
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चूल्हों पर तू ने ठोकर मारी थी जिनके
आग अब उनके दिलो में जल रही है-
रोटी के बदले ले जाते है फ़ोटो
लाचारी भी हमने बिकती देखी है ..-
उसके शहर से जो भी आए उदास आता है
वो साथ नही आता तो क्यों इतना पास आता है
आते है बहुत से परिंदे जंगल से शहर की तरफ
सुकून जंगल का मगर कहाँ उनके साथ आता है
आई है मेरी खामोशी में आवाज़ चीख की
मेरे अंदर का आदमी बात करना चाहता है
कदमो के तले रखी है किसी के हमारी सांसें
वो जब कदम उठाता है तो हमे सांस आता है
मोहब्बत आती नही अकेली कभी कही भी
उससे लिपटा हुआ हर दफा अज़ाब आता है
गुलाब अपनी ही खुश्बू से सूख रहे होते है
मुझे जाने क्यों वो ख्वाब इतना खराब आता है-
उन दीवारों से लग के रोते थे हम बेशुमार कभी
अब क्या उस घर जाए क्या उस को मुँह दिखाए-
इस घर मे हम अब क्यो रहे
घर का हंगामा क्यो सहे
दीवारे कहती क्या नही
दीवारों से हम क्या कहे
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देख कर मेरी आँखों से बहते पानी को
समुंदर भी कोसता है अपनी रवानी को
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आवाज़ उठाए कोई शहर की वीरानी पर
कोई तो पत्थर फेंके ठहरे हुए पानी पर
मैं इन बुतो को देखता रहता हूँ लगातार
ये कुछ बोलते क्यो नही मेरी हैरानी पर
जैसे मैं सुना रहा था कोई कहानी इसको
और ये शहर फिर सो गया हो कहानी पर
सोचते है कोई कुछ कहता तो क्या कहते
फिर मैं रो लेता हूँ किसी बात पुरानी पर
लगता नही है लहजा भी अब तो मेरा है
यकीन आता नही अपनी ही जबानी पर
मुंतज़िर हूँ कि तस्वीरे तोड़ दे खामोशी
कोई तस्वीर से निकल चूम ले पेशानी पर
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