शेष नहीं हैं अब कुछ कहना,
फिर भी कहना शेष रह गया।
घूमा करते भरी दुपहरी,
सिर पर सहना शेष रह गया।
रचे हुए इस चक्रव्यूह की,
रचना ढहना शेष रह गया।
कौन ‘अचूक’ स्वर्ण का ग्राहक,
यह तो गहना शेष रह गया..!!-
Priorities, choices, and values truly shape who we are and how we evolve in life. The idea that our choices also choose us resonates deeply—it’s a reminder that what we give importance to ultimately defines our journey.
Not everything in life should be treated as just an option, and when something (or someone) holds real meaning, it deserves to be valued with the right intent. Living for others and making a difference is a rare quality, and it’s inspiring to see such determination towards it.
Some things in life are not just coincidences but reflections of what was meant to be. ☺️-
इतवार बनके यूँही ठहर जाओ ना,
ये सोमवार बनके क्या मिलता हैं तुम्हें !!-
वो प्रयागराज की चिंगारी सी, मैं इलाहाबाद के इतिहास सा..!!
वो प्रयागराज की ख़ामोशी सी, मैं इलाहबाद जंक्शन के शोर सा !!
वो संगम घाट के ख़ास सुकून सी, मैं यमुना के पुल की गूँज सा !!
वो सिविल लाइंस के मॉडर्न कैफे सी, मैं कटरा की ठहरी दुकान सा..!!
वो कुम्भ मेले की चका चौंध सी, मैं इलाहाबाद की ढलती शाम सा..!!
वो बोट क्लब की ठंडी हवाओ सी, मैं कटरा की भारी भीड़-भाड़ सा..!!
वो संगम की नौका-विहार सी, मैं चौफटका की गलियों का सरताज सा..!!
वो प्रयागराज की चिंगारी सी, मैं ……..
वो योगी के संकल्प की आग सी, मैं चंद्रशेखर आज़ाद की हुंकार सा..!!
वो कुंभ के विराट मेले सी, मैं छात्र आंदोलनों के फ़िज़ूल उफान सा..!!
वो कुंभ के मेंहगे टेंट सी, मैं अकबर किला की शान सा!!
वो मार्कि के गरम मोमोज सी, मैं लोकनाथ के गरम पराँठे सा..!!
वो यमुना के तेज़ बहाव सी, मैं सरस्वती के अदृश्य प्रवाह सा..!!
वो वक़्त के साथ बदलती चीज सी, मैं इलाहाबाद के ख़ुसरो बाग़ सा..!!
वो नए बदलावों की ताज़गी सी, मैं किताबों में सिमटा इतिहास सा..!!
वो प्रयागराज की नयी पहचान सी, मैं पुराने इलाहाबाद की जान सा..!!
वो प्रयागराज की चिंगारी सी, मैं ……..
Just me, myself, and the rest of the universe attending #महाकुंभ2025.-
हिम्मत होती तो पहले ही कर दिया होता इज़हार,
भला आज के दिन का कोई इंतज़ार क्यूँ करता ..!!-
शुरू हो गए हैं आशिक़ों के नबरात्रे,
आज देबी को मनाने का दिन हैं...!-
यादें, साँस ओर धड़कन, क्या क्या नही हो तुम मेरे ।
धधकती हुई उस आग की चिंगारी हो तुम मेरे ।
पास रहना या दूर रहना तो बस एक इत्तेफ़ाक है,
शाहजहां का मुमताज से बजूद हो तुम मेरे ।
रात फिर नींद फिर सपने, क्या क्या नही हो तुम मेरे ।
आँख फिर आँसू या हो कोई राज,
दिल फिर धड़कन फिर मायुसी हर कोई बात हो तुम मेरे ।
हैं इश्क़ तो क़भी बयां न कर,
पानी हूँ मैं, पूछता रहता हूँ हर मछ्ली को जैसे!
प्यार फिर मोहब्बत फिर तड़फ फिर उदासी या हो कोई मुसकान,
हर एक सबाल का जबाब हो तुम मेरे ।-