Pancham Kumar Mandal   (पंचम कुमार “स्नेही”)
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कविताएं - शायरी - ग़ज़ल 📍:)
Joined 2 August 2020


कविताएं - शायरी - ग़ज़ल 📍:)
Joined 2 August 2020
19 DEC 2023 AT 23:54

सक्षम तो हूं
योग्य भी हो जाता...
ऐसा नहीं की प्रयास नहीं किया
विवशता भी तो हैं अपनी,
अपने घर की,
अपने परिवार की!

चाहे बहाना समझों
या फिर आलस
किंतु प्रयास किया मैंने
जो भी था मेरे पास
अपने भविष्य पर लुटाया
जब कुछ नहीं बचा
तो अकेला पाया खुद को!

हमेशा अधिक देखा
अधिक चाहा
मगर कभी अक्ल नहीं आया
पाना कैसे हैं?
किसी से पूछा नहीं
किसी ने सलाह भी नहीं दी!

सबकुछ वक्त पर छोड़ दिया
और धीरे-धीरे हाथों से
वक्त भी निकल पड़ा..!

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16 DEC 2023 AT 15:11

गहरे ज़ख्मों पर थोड़ा मरहम लगाया कर
फ़र्सूदा ही सही मगर लतीफ़े सुनाया कर 

उलफ़त-ए-ग़म कब तक दिल में रखोगे
जितने दर्द हैं कोरे कागज में सजाया कर

ख़ामोशी सही नहीं कुछ गुनगुनाया कर 
गीत विषाद के ही सही मगर गाया कर 

दीवारों से बातें कर, कब तक जिंदा रहोगे
हाल-ए-दिल कभी माँ को भी बताया कर

जिसे लगी रहती हैं फ़िक्र तुम्हारी हरदम
उस माँ को अपने पलको पे बिठाया कर

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27 OCT 2023 AT 10:17

आँख से आँख मिलाना हमें नहीं आता
इश्क़ हैं तो हैं जताना हमें नहीं आता

तलबगार हैं जो वो करें इश्क़ में पहल
शर्म-दार लोग हैं बताना हमें नहीं आता

दूर से ही दीदार करना ठीक लगता है
पास बैठ बातें बनाना हमें नहीं आता

पाक इश्क़ हैं बे-वफ़ाई मेरी फ़ितरत नहीं
यक़ीं रख यक़ीं दिलाना हमें नहीं आता

ग़म-ए-इश्क़ हमें मालूम हैं मगर क्या करूँ
तेरे दिल से दूर जाना हमें नहीं आता

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23 OCT 2023 AT 6:25

हादसा इतना भयानक तो नहीं था
बस इश्क़ हुआ और बिछड़ गए हम

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23 OCT 2023 AT 0:09

मैं साहिर होता
तो हूबहू तुझे तराशता -
वही आँखें, वही सूरत, वही तुम, 
और वही मैं होता!

अलहदा कुछ होता 
तो ये दुनिया, ये ज़माना -
जहाँ सिर्फ़ इश्क़ होता,
जहाँ इश्क़ की फ़ज़ीहत न होता हो!

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15 SEP 2023 AT 8:12

उनकी यादों का कुछ ऐसा हैं की,
अगर वो आ जाए तो रात भर नींद नहीं आती..!!

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9 AUG 2023 AT 8:25

मन की व्यथा बहुत गहरी है
जलती धूप जैसे दोपहरी है

गंतव्य तक का सफ़र हैं मेरा
जैसे इक द्वंद मुझमें चल रही है

पत्थर बन पड़ा हैं हृदय मेरा
मन भी जैसे व्याकुल पड़ी है

संवेदनाएं मृत हो चुकी अब
जैसे कोई मातम की घड़ी है

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19 JUL 2023 AT 6:26

प्रेम प्रांगण में प्राण त्याग कर
प्रेम की पृष्ठभूमि बन जाऊं मैं,
पढ़कर प्रेम सार पुल्कित हो मन
ऐसी प्रेम स्वरूप बन जाऊं मैं।

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15 JUN 2023 AT 13:44

गैरों की बातें सुनना जरूरी नहीं समझते
इश्क़ मोहब्बत में जी-हुज़ूरी नहीं समझते

इश्क़ सफ़ेद लगती हैं जिस्मों के बगैर ही
जिस्मों से दूरी को हम दूरी नहीं समझते

अपनी हालातों के ज़िम्मेदार खुद है हम
ग़म-ए-'इश्क़ को हम मजबूरी नहीं समझते

मोहब्बत को मोहब्बत ही मानते हैं हम
मोहब्बत चाहे जैसी हो अधूरी नहीं समझते

रस्मो रिवाज से परे अपनी दुनिया है मेरी
इस फ़रेबी दुनिया को हम जरूरी नहीं समझते

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17 MAY 2023 AT 9:24

मुझे उसका दीदार अच्छा लगता है
पुराना मेरा यार अच्छा लगता है

उसकी बातें सुनना ख़्वाहिश है मेरी
मुझे शेर-ए-गुलज़ार अच्छा लगता है

मोहब्बत में कोई पहल तो करें पहले
मुझे तो बस इज़हार अच्छा लगता है

कहीं होश-ओ-हवास ना गवा बैठूं मैं
सो दूरियों का दीवार अच्छा लगता है

उम्र बीता दूं इंतजार में उसके ’स्नेही’
मुझे उसका इंतजार अच्छा लगता है

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