सक्षम तो हूं योग्य भी हो जाता...ऐसा नहीं की प्रयास नहीं कियाविवशता भी तो हैं अपनी,अपने घर की,अपने परिवार की!चाहे बहाना समझों या फिर आलसकिंतु प्रयास किया मैंनेजो भी था मेरे पासअपने भविष्य पर लुटाया जब कुछ नहीं बचातो अकेला पाया खुद को!हमेशा अधिक देखाअधिक चाहामगर कभी अक्ल नहीं आयापाना कैसे हैं?किसी से पूछा नहींकिसी ने सलाह भी नहीं दी!सबकुछ वक्त पर छोड़ दियाऔर धीरे-धीरे हाथों से वक्त भी निकल पड़ा..! -
सक्षम तो हूं योग्य भी हो जाता...ऐसा नहीं की प्रयास नहीं कियाविवशता भी तो हैं अपनी,अपने घर की,अपने परिवार की!चाहे बहाना समझों या फिर आलसकिंतु प्रयास किया मैंनेजो भी था मेरे पासअपने भविष्य पर लुटाया जब कुछ नहीं बचातो अकेला पाया खुद को!हमेशा अधिक देखाअधिक चाहामगर कभी अक्ल नहीं आयापाना कैसे हैं?किसी से पूछा नहींकिसी ने सलाह भी नहीं दी!सबकुछ वक्त पर छोड़ दियाऔर धीरे-धीरे हाथों से वक्त भी निकल पड़ा..!
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गहरे ज़ख्मों पर थोड़ा मरहम लगाया करफ़र्सूदा ही सही मगर लतीफ़े सुनाया कर उलफ़त-ए-ग़म कब तक दिल में रखोगेजितने दर्द हैं कोरे कागज में सजाया करख़ामोशी सही नहीं कुछ गुनगुनाया कर गीत विषाद के ही सही मगर गाया कर दीवारों से बातें कर, कब तक जिंदा रहोगेहाल-ए-दिल कभी माँ को भी बताया करजिसे लगी रहती हैं फ़िक्र तुम्हारी हरदमउस माँ को अपने पलको पे बिठाया कर -
गहरे ज़ख्मों पर थोड़ा मरहम लगाया करफ़र्सूदा ही सही मगर लतीफ़े सुनाया कर उलफ़त-ए-ग़म कब तक दिल में रखोगेजितने दर्द हैं कोरे कागज में सजाया करख़ामोशी सही नहीं कुछ गुनगुनाया कर गीत विषाद के ही सही मगर गाया कर दीवारों से बातें कर, कब तक जिंदा रहोगेहाल-ए-दिल कभी माँ को भी बताया करजिसे लगी रहती हैं फ़िक्र तुम्हारी हरदमउस माँ को अपने पलको पे बिठाया कर
आँख से आँख मिलाना हमें नहीं आताइश्क़ हैं तो हैं जताना हमें नहीं आतातलबगार हैं जो वो करें इश्क़ में पहलशर्म-दार लोग हैं बताना हमें नहीं आता दूर से ही दीदार करना ठीक लगता हैपास बैठ बातें बनाना हमें नहीं आता पाक इश्क़ हैं बे-वफ़ाई मेरी फ़ितरत नहींयक़ीं रख यक़ीं दिलाना हमें नहीं आताग़म-ए-इश्क़ हमें मालूम हैं मगर क्या करूँतेरे दिल से दूर जाना हमें नहीं आता -
आँख से आँख मिलाना हमें नहीं आताइश्क़ हैं तो हैं जताना हमें नहीं आतातलबगार हैं जो वो करें इश्क़ में पहलशर्म-दार लोग हैं बताना हमें नहीं आता दूर से ही दीदार करना ठीक लगता हैपास बैठ बातें बनाना हमें नहीं आता पाक इश्क़ हैं बे-वफ़ाई मेरी फ़ितरत नहींयक़ीं रख यक़ीं दिलाना हमें नहीं आताग़म-ए-इश्क़ हमें मालूम हैं मगर क्या करूँतेरे दिल से दूर जाना हमें नहीं आता
हादसा इतना भयानक तो नहीं थाबस इश्क़ हुआ और बिछड़ गए हम -
हादसा इतना भयानक तो नहीं थाबस इश्क़ हुआ और बिछड़ गए हम
मैं साहिर होतातो हूबहू तुझे तराशता -वही आँखें, वही सूरत, वही तुम, और वही मैं होता!अलहदा कुछ होता तो ये दुनिया, ये ज़माना -जहाँ सिर्फ़ इश्क़ होता,जहाँ इश्क़ की फ़ज़ीहत न होता हो! -
मैं साहिर होतातो हूबहू तुझे तराशता -वही आँखें, वही सूरत, वही तुम, और वही मैं होता!अलहदा कुछ होता तो ये दुनिया, ये ज़माना -जहाँ सिर्फ़ इश्क़ होता,जहाँ इश्क़ की फ़ज़ीहत न होता हो!
उनकी यादों का कुछ ऐसा हैं की,अगर वो आ जाए तो रात भर नींद नहीं आती..!! -
उनकी यादों का कुछ ऐसा हैं की,अगर वो आ जाए तो रात भर नींद नहीं आती..!!
मन की व्यथा बहुत गहरी हैजलती धूप जैसे दोपहरी हैगंतव्य तक का सफ़र हैं मेरा जैसे इक द्वंद मुझमें चल रही हैपत्थर बन पड़ा हैं हृदय मेरामन भी जैसे व्याकुल पड़ी हैसंवेदनाएं मृत हो चुकी अबजैसे कोई मातम की घड़ी है -
मन की व्यथा बहुत गहरी हैजलती धूप जैसे दोपहरी हैगंतव्य तक का सफ़र हैं मेरा जैसे इक द्वंद मुझमें चल रही हैपत्थर बन पड़ा हैं हृदय मेरामन भी जैसे व्याकुल पड़ी हैसंवेदनाएं मृत हो चुकी अबजैसे कोई मातम की घड़ी है
प्रेम प्रांगण में प्राण त्याग कर प्रेम की पृष्ठभूमि बन जाऊं मैं,पढ़कर प्रेम सार पुल्कित हो मन ऐसी प्रेम स्वरूप बन जाऊं मैं। -
प्रेम प्रांगण में प्राण त्याग कर प्रेम की पृष्ठभूमि बन जाऊं मैं,पढ़कर प्रेम सार पुल्कित हो मन ऐसी प्रेम स्वरूप बन जाऊं मैं।
गैरों की बातें सुनना जरूरी नहीं समझतेइश्क़ मोहब्बत में जी-हुज़ूरी नहीं समझतेइश्क़ सफ़ेद लगती हैं जिस्मों के बगैर हीजिस्मों से दूरी को हम दूरी नहीं समझते अपनी हालातों के ज़िम्मेदार खुद है हमग़म-ए-'इश्क़ को हम मजबूरी नहीं समझतेमोहब्बत को मोहब्बत ही मानते हैं हममोहब्बत चाहे जैसी हो अधूरी नहीं समझतेरस्मो रिवाज से परे अपनी दुनिया है मेरीइस फ़रेबी दुनिया को हम जरूरी नहीं समझते -
गैरों की बातें सुनना जरूरी नहीं समझतेइश्क़ मोहब्बत में जी-हुज़ूरी नहीं समझतेइश्क़ सफ़ेद लगती हैं जिस्मों के बगैर हीजिस्मों से दूरी को हम दूरी नहीं समझते अपनी हालातों के ज़िम्मेदार खुद है हमग़म-ए-'इश्क़ को हम मजबूरी नहीं समझतेमोहब्बत को मोहब्बत ही मानते हैं हममोहब्बत चाहे जैसी हो अधूरी नहीं समझतेरस्मो रिवाज से परे अपनी दुनिया है मेरीइस फ़रेबी दुनिया को हम जरूरी नहीं समझते
मुझे उसका दीदार अच्छा लगता हैपुराना मेरा यार अच्छा लगता है उसकी बातें सुनना ख़्वाहिश है मेरीमुझे शेर-ए-गुलज़ार अच्छा लगता हैमोहब्बत में कोई पहल तो करें पहलेमुझे तो बस इज़हार अच्छा लगता हैकहीं होश-ओ-हवास ना गवा बैठूं मैंसो दूरियों का दीवार अच्छा लगता हैउम्र बीता दूं इंतजार में उसके ’स्नेही’मुझे उसका इंतजार अच्छा लगता है -
मुझे उसका दीदार अच्छा लगता हैपुराना मेरा यार अच्छा लगता है उसकी बातें सुनना ख़्वाहिश है मेरीमुझे शेर-ए-गुलज़ार अच्छा लगता हैमोहब्बत में कोई पहल तो करें पहलेमुझे तो बस इज़हार अच्छा लगता हैकहीं होश-ओ-हवास ना गवा बैठूं मैंसो दूरियों का दीवार अच्छा लगता हैउम्र बीता दूं इंतजार में उसके ’स्नेही’मुझे उसका इंतजार अच्छा लगता है