खानाबदोशी, सुरूर-ए-इश्क है ।यूं ही नहीं कोई दरबदर भटकता है।— % & -
खानाबदोशी, सुरूर-ए-इश्क है ।यूं ही नहीं कोई दरबदर भटकता है।— % &
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बहुत खूब गुज़री है, हम पे ये मेहमान नवाज़ी,वो ज़हर डाल गए प्याले में हमारे, जिनकी खातिर हम शकर घोलते रहे। -
बहुत खूब गुज़री है, हम पे ये मेहमान नवाज़ी,वो ज़हर डाल गए प्याले में हमारे, जिनकी खातिर हम शकर घोलते रहे।
मैं इश्क़ दियां किताबां पढ़ के वेक्खियाँ,सब कुफ़्र ऐ, एस च सुकून जेहा कुछ भी नहीं। -
मैं इश्क़ दियां किताबां पढ़ के वेक्खियाँ,सब कुफ़्र ऐ, एस च सुकून जेहा कुछ भी नहीं।
ਮੈਂ ਇਸ਼ਕ ਦੀਆਂ ਕਿਤਾਬਾਂ ਪੜ੍ਹ ਕੇ ਵਿੱਖੀਆਂ।ਸਬ ਕੂਫ਼ਰ ਏ, ਇਸ ਚ ਸੁਕੁਨ ਜੇਹਾ ਕੁੱਝ ਵੀ ਨਹੀਂ -
ਮੈਂ ਇਸ਼ਕ ਦੀਆਂ ਕਿਤਾਬਾਂ ਪੜ੍ਹ ਕੇ ਵਿੱਖੀਆਂ।ਸਬ ਕੂਫ਼ਰ ਏ, ਇਸ ਚ ਸੁਕੁਨ ਜੇਹਾ ਕੁੱਝ ਵੀ ਨਹੀਂ
साज़ छेड़ा है अपनी पूरी शिद्दत से मगर,ये धुन है के राग होने को नहीं आता।अभी कुछ और सावन लिखे है इसके नसीब मेंतभी ये दरख़्त है के ख़ाख होने को नहीं आता। -
साज़ छेड़ा है अपनी पूरी शिद्दत से मगर,ये धुन है के राग होने को नहीं आता।अभी कुछ और सावन लिखे है इसके नसीब मेंतभी ये दरख़्त है के ख़ाख होने को नहीं आता।
कुछ लकीरें और रंग बिखरे हैं कैनवस पे,ये चेहरा तेरा मुक़म्मल होने को नहीं आता।कोई कैसे न देखे तुझे यूँ हीं मदहोशी में,ये तेरा नूर है जो खत्म होने को नही आता। -
कुछ लकीरें और रंग बिखरे हैं कैनवस पे,ये चेहरा तेरा मुक़म्मल होने को नहीं आता।कोई कैसे न देखे तुझे यूँ हीं मदहोशी में,ये तेरा नूर है जो खत्म होने को नही आता।
मैं मुसलसल जिसे नींदों में सजाते रहता हूँ,वो सपना मेरा हकीकत होने को नहीं आता।पड़ाव यूँ तो बहुत से आते है सफर मे।ये रास्ता है के मंज़िल होने को नहीं आता। -
मैं मुसलसल जिसे नींदों में सजाते रहता हूँ,वो सपना मेरा हकीकत होने को नहीं आता।पड़ाव यूँ तो बहुत से आते है सफर मे।ये रास्ता है के मंज़िल होने को नहीं आता।
सुकून में भी दर-बदर हूँ मैं,तेरे बिना तितर बितर हूँ मैं।ये उलझनें कहाँ है सबके नसीब,मुमकिन है के औरों से इतर हूँ मैं। -
सुकून में भी दर-बदर हूँ मैं,तेरे बिना तितर बितर हूँ मैं।ये उलझनें कहाँ है सबके नसीब,मुमकिन है के औरों से इतर हूँ मैं।
मैं तुझसे मिलने आऊँ भी तो कैसे।ये फासले मिटाऊँ भी तो कैसे।दर्द इतना है के, अब रोने को जी चाहता है।पलको पे तेरे सपने हैं, मैं आँसू गिराऊं भी तो कैसे। -
मैं तुझसे मिलने आऊँ भी तो कैसे।ये फासले मिटाऊँ भी तो कैसे।दर्द इतना है के, अब रोने को जी चाहता है।पलको पे तेरे सपने हैं, मैं आँसू गिराऊं भी तो कैसे।
मेरी एक मुस्कान के लिए, हर दुख सहते देखा है।मैंने माँ को, मेरे लिए व्रत में भूखा रहते देखा है। -
मेरी एक मुस्कान के लिए, हर दुख सहते देखा है।मैंने माँ को, मेरे लिए व्रत में भूखा रहते देखा है।