Pallaw Pathak   (DhaiHarf)
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Joined 19 November 2019


Joined 19 November 2019
20 FEB 2022 AT 2:19

खानाबदोशी, सुरूर-ए-इश्क है ।
यूं ही नहीं कोई दरबदर भटकता है।— % &

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30 OCT 2021 AT 15:00

बहुत खूब गुज़री है, हम पे ये मेहमान नवाज़ी,
वो ज़हर डाल गए प्याले में हमारे,
जिनकी खातिर हम शकर घोलते रहे।

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2 OCT 2021 AT 4:10

मैं इश्क़ दियां किताबां पढ़ के वेक्खियाँ,
सब कुफ़्र ऐ, एस च सुकून जेहा कुछ भी नहीं।

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2 OCT 2021 AT 4:06

ਮੈਂ ਇਸ਼ਕ ਦੀਆਂ ਕਿਤਾਬਾਂ ਪੜ੍ਹ ਕੇ ਵਿੱਖੀਆਂ।
ਸਬ ਕੂਫ਼ਰ ਏ, ਇਸ ਚ ਸੁਕੁਨ ਜੇਹਾ ਕੁੱਝ ਵੀ ਨਹੀਂ

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30 SEP 2021 AT 3:55

साज़ छेड़ा है अपनी पूरी शिद्दत से मगर,
ये धुन है के राग होने को नहीं आता।

अभी कुछ और सावन लिखे है इसके नसीब में
तभी ये दरख़्त है के ख़ाख होने को नहीं आता।

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30 SEP 2021 AT 3:51

कुछ लकीरें और रंग बिखरे हैं कैनवस पे,
ये चेहरा तेरा मुक़म्मल होने को नहीं आता।

कोई कैसे न देखे तुझे यूँ हीं मदहोशी में,
ये तेरा नूर है जो खत्म होने को नही आता।

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30 SEP 2021 AT 3:43

मैं मुसलसल जिसे नींदों में सजाते रहता हूँ,
वो सपना मेरा हकीकत होने को नहीं आता।

पड़ाव यूँ तो बहुत से आते है सफर मे।
ये रास्ता है के मंज़िल होने को नहीं आता।

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29 SEP 2021 AT 1:11

सुकून में भी दर-बदर हूँ मैं,
तेरे बिना तितर बितर हूँ मैं।

ये उलझनें कहाँ है सबके नसीब,
मुमकिन है के औरों से इतर हूँ मैं।

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8 SEP 2021 AT 19:55

मैं तुझसे मिलने आऊँ भी तो कैसे।
ये फासले मिटाऊँ भी तो कैसे।
दर्द इतना है के, अब रोने को जी चाहता है।
पलको पे तेरे सपने हैं, मैं आँसू गिराऊं भी तो कैसे।

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9 MAY 2021 AT 19:00

मेरी एक मुस्कान के लिए, हर दुख सहते देखा है।
मैंने माँ को, मेरे लिए व्रत में भूखा रहते देखा है।

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