खुली ऑंखों से जो दिखे वही विश्वास है
अॉंख बंद कर के देखना ही तो अंधविश्वास है।-
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खुली ऑंखों से जो दिखे वही विश्वास है
अॉंख बंद कर के देखना ही तो अंधविश्वास है।-
आज ज़रा-सा वक्त क्या थमा
तुम तो जिंदगी जीना ही भूल गए।
आज ज़रा-सी भाग-दौड़ क्या कम हुई
तुम तो ठहरना ही भूल गए।
आज ज़रा-सा खुद से तो मिलो
कहीं उसे भी तो नहीं भूल गए।-
लफ्ज़-ए-उर्दू का भी कभी मुल्क हुआ है,
मोहब्बत का भी कभी मज़हब हुआ है।-
ये तो नज़रें हैं जो सब कह जाती हैं,
वरना लफ्ज़ों का खेल तुमसे खूब किसे आता है।-
लोगों को अक्सर सूरत सवांरते पाया है,
कोई अपनी ही रुह तक न पहुंच पाया।-