आहिस्ते-आहिस्ते जानने लगे हैं,
हम ख़ुद को पहले से बेहतर पहचानने लगे हैं ।-
टूटती उम्मीदों को,
इस रात के बिखरते तारो का सहारा ।
ढल रही है रात और..
ना कोई हमारा, ना कोई तुम्हारा ।
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क्या खोया क्या पाया
रात ढलने को आई हैं
क्या कभी तू ख़ुद में समाया ?
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भटकता रहा जिस मोहब्बत के लिए
दर-ब-दर
क्या कभी वो ख़ुद को जताया ?
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पूरे-दिन की थकान के बाद,
तू मीठे-से-आराम की एहसास सा !!
होंगे इस दुनिया में तमाम रास्ते,
पर तू मेरे ख़ुद के मकान सा !!-
And that’s the most beautiful combination of darkness yet light,
everything dwelling deeper yet shining bright,
it’s calm and quite yet sparkling it’s light,
The sky which is full of chaos of stars,
yet it’s peaceful to watch the moonlight. 🤍-
होगी अब रोज़ ख़ुद से गुफ़्तगू
क्यूँ की अब तुमसे तो होती नहीं हैं
हर रोज़ मुक़दमे चलेंगे
और हर रोज़ हम जीत के भी हारा करेंगे
क्यूँ की तुम्हारी पेशी तो अब होती नहीं हैं ॥-