Pallavi Priyadarshini   (Thewritersoul_Pallavi)
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Joined 17 April 2020


Joined 17 April 2020
2 FEB 2022 AT 15:40

A child was born
For the sake of this world
But when realised child was 'She'
She was torn
She grew with discrimination
Finding herself alone
She still had determination
To walk along
She was abused, she was slaved
She stood against bullies
So yes she was brave
The world never failed
To point her out
She still taught the universe
What a women is all about
She walked, she fell
She was brought down to hell
She fought she learnt
She had a story to tell
It was her glory
That was on stake
She still stood by the
Faces which were fake
It is now it was then
Nothing has changed
But the strongest of all
"She is a women"— % &

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22 FEB 2021 AT 0:32

सोचती हुं रात से कह दुं
कि आया न करे
क्योंकि तेरे अक्स के बिना आना
उसने सिखा ही नहीं

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26 AUG 2020 AT 19:44

वो इश्क़-ए-दौर बिते
अरसा गुजर गया
मौसम में बिखरे यूं मगर
कुछ पल आज भी हैं
मेरी आदत में शुमार
कहीं कुछ लम्हें हैं उसके
उसका नाम जुबान पे लाने की
आदत आज भी है

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18 JUN 2020 AT 22:54

निकल आए उन गलियों से
अपनी राह मोडे हुए
एक अरसा बीत गया
हमें इश्क छोडे हुए

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22 MAY 2020 AT 21:01

लोग पुछते हैं मैं क्या हूं
मां की कोक का टुकड़ा हुं
बाबा का मुस्कुरता मुखडा हुं
मुझे गोद में लेते ही
मेरे पिता कि आंखों में आई हुई नमी हुं
कुछ आसमान कहते हैं, बहुतों की जमीं हुं
माँ के आंचल में छुपी शरारत हुं
पिता के अथरों की मुस्कान हुं
दादी की कहानीयों का पिटारा हुं
किसी की आंखों का तारा हुं
शैतानियों की छोटी सी दुकान हुं
नादानियों का बहता तुफान हुं
थोड़ी अडियल, कुछ जिद्दी
जरा गुस्सैल, थोड़ी बडोली हुं
थोड़ी मशगूल, थोड़ी शांत
जरा मासुम थोड़ी भोली भी हुं

खिलौनों की मायूसी,
खट्टी मीठी गोलियों की चटकार हुं
मैं बाबा की प्यार भरी
गुस्से वाली फटकार हुं
साड़ी का लंबा घुंघट तो
सलवार कमीज, बुरखा भी हुं
सुकून हुं, मलाल भी हुं
जवाब हुं, सवाल भी हुं
संगीत हुं, मैं साज भी हुं
ढोल हूं, नाद भी हुं
सब को हंसाने वाला मोर हुं
अपना दर्द छुपाने वाली चोर हुं
सब को बांधने वाली डोर हुं
मैं एक हल्की किरन वाली भोर हुं
मैं लिखती हुं, मैं लिखी भी गयी हुं
किसी की जीत, किसी का खिताब हुं
मैं अनकही, अनसुनी उल्झी सी एक किताब हुं

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13 MAY 2020 AT 22:18

इश्क करते तो हो, जरा सम्भलना
खता अक्सर हो जाती है
मत आना अलफाजों के लपेटे में
ये फरेब को उन्स का नाम दे जाती है

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12 MAY 2020 AT 22:44

मोहब्बत उनहे भी थी बेशक
बस लहजे में जरा फर्क था
हमें इश्क़ था उनकी रूह से
उन्हें जिस्मानी शौक था

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7 MAY 2020 AT 10:12

दिखा के तिरछी नजरें
वो आइना सवाल करता है
कोई एब लिए बैठा है
न जाने क्यों जल जाता है
कहने लगा मुझसे
न आना मेरे सामने
हर रोज तेरी आँखों में
तेरा महबूब ही नजर आता है

Awaari__musafir

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6 MAY 2020 AT 16:43

आखिर ये कैसा इश्क है
रहने नहीं देती किसी काम का
हर लफ्ज़ मे उसका जिक्र है
वो कहता कुछ नहीं अब
क्यों ऐसे हालात हैं
मै फिर भी उसे सुनती हुं
आखिर ये कैसे जज्बात हैं

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31 JUL 2021 AT 14:10

people fight
It's dark everywhere
And we need light
It does not feel like home
When we are left
It's not our fault
So nothing to regret
It does not feel like home
When the flower does not bloom
But do not be disheartened
Afterall it's monsoon
It does not feel like home
When I have no one to speak
But I survive there an then
Cause I know I am not weak

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