उसने कहा "तुम्हारे दुख का कारण मैं नहीं,
बल्कि तुम्हारा मुझसे प्यार करना है।"
हमने भी मुस्कुराकर कह दिया,
"इश्क़ अगर गुनाह है तो सज़ा भी कबूल थी,
पर किसी बेवफा से वफा की उम्मीद करना हमारी भूल थी..."
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मुझे नहीं पता कैसे तुम्हें दूर जाने दूं,
हर सोच में बस डर ही समाने दूं।
पर हर बार एक उम्मीद जगा लेती हूं,
खुद को फिर से समझा लेती हूं।
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कभी प्यार किया, जिससे प्यार मिलने की उम्मीद ना हो,
एक एहसास, जिसमें बस तुम ही तुम हो।
इस एहसास को कम न करने का दिल चाहता है,
चाहे जो भी हो, हर हाल में निभाना चाहता है।
क्योंकि मेरा एहसास ही मेरी ज़िंदगी का सहारा है,
जिस दिन ये छूटे, वही मेरा आखिरी किनारा है।
तो यही है मेरा प्यार, बस इसे संभाल कर रखना,
इसके सिवा और कोई रास्ता नहीं है अपना।
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वो बस कहता कि प्यार है, इसलिए बात करते हैं,
न कि ज़रूरत है, इसलिए साथ चलते हैं।
पर उसे तो आदत थी झूठ बोलने की,
मैं बस चुपचाप उसकी बातों को सच मानती रही।
क्यों इतना नाटक किया प्यार का,
अगर था नहीं तो इकरार क्यों किया?
सच कहने की हिम्मत तो होनी चाहिए,
पर अफ़सोस, वो हिम्मत कभी नहीं था उसमें।-
दिल में एक अनकहा डर बसा है,
आँखों में बेतहाशा समुंदर उठा है।
बेख़याली हर पल सताने लगी,
शायद तन्हाई ही अब मेरी क़िस्मत बना है।
हर आहट जैसे साज़िश लगती है,
हर ख़ुशी भी अब बेअसर है।
जो अपना था, वो पराया निकला,
अब इस दिल में सिर्फ़ एक सफ़र है।
न मंज़िल की खबर, न रास्तों का पता,
बस तन्हाई का साया हमसफ़र है...
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काश तू हक़ से अपना बनाता,
बिना कहे वो करता जो मैं चाहती,
पर सिर्फ़ अपनी ख़ुशी से,
ना किसी मजबूरी में, ना किसी राहती।
मैं तुझे हर पल हंसता देखना चाहती हूँ,
पर हर लम्हा एक डर भी साथ लाती हूँ।
कहीं तू मुझसे दूर ना चला जाए,
कहीं मेरी जगह किसी और को ना दे पाए।
सबसे बड़ा डर ये नहीं कि तू किसी और का हो जाएगा,
बल्कि ये है कि कहीं दोस्ती भी हाथ से फिसल न जाए।
कहीं तेरा नाम होठों पर आते ही,
तेरी यादें भी धुंधली न पड़ जाएं...
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वो चाहता है रिश्ता उससे भी ना टूटे, और मुझसे भी बना रहे,
यानी सूरज भी ना डूबे, और रात भी हो जाए।
मैं धूप में जलूँ या अंधेरों में खो जाऊँ,
मेरी परवाह किए बिना, वो बस खुद को बचाए।
ना वो पूरा मेरा हुआ, ना मैं पूरी उससे जुड़ सकी,
एक अधूरी चाहत में, मैं हर रोज़ बिखरती गई।
काश वो समझ पाता, कि दो राहों पर एक साथ नहीं चला जाता,
किसी को तो छोड़ना ही पड़ता है, वरना दोनों ही हाथ से निकल जाता...
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पता नहीं किस आर जाऊँगी,
कैसे तुझ बिन रह पाऊँगी।
मुझे मालूम है, तू मेरा नहीं,
इस बात को कब ज़ेहन में लाऊँगी?
क्यों भूल जाती हूँ तेरे सामने खुद को,
कि तू किसी और का है,
और अपना हक़ जताना मना है।
तेरी हँसी में खो जाती हूँ,
तेरी आँखों में ही बह जाती हूँ।
पर ये हक़ नहीं, बस एक ख़्वाब है,
जो हर रोज़ आँखों में पल कर भी अधूरा रह जाता है...
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लगा मुझे कि तुझसे दूर जाना चाहती हूँ,
पर सच तो यह है, तुझे अपना बनाना चाहती हूँ।
जब तक अनजान थी, हर बात तेरी सच्ची लगी,
पर जानने के बाद, हर झूठ समझ में आ गई।
काश कभी इतनी क़रीब आई ना होती,
काश इतने पास से तुझे पहचानी ना होती।
अगर तुझसे अनजान ही रहती,
तेरे साथ हंसकर हर दर्द सहती।
तुझे लगा कि मैं तुझसे दूर जाना चाहती हूँ,
पर तूने ये ना देखा, कि मैं तुझमें ही खो जाना चाहती हूँ।
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