उसे लगता है, मैंने उसे सिर्फ़ दुख ही दिए,
काश कोई उसे बताए… मैं उससे कितना प्यार किए।
हाँ, हैं कुछ मजबूरियाँ मेरी, जो दूरियों का रिश्ता बनाती हैं,
पर हर रोज़, एक बेवसी दिल में लिए… बस उसकी समझ की दुआ माँग लाता हूँ।
हर पल ये एहसास रहता है, शायद उसे तकलीफ़ दे रहा हूँ,
पर मन में बस एक ही ख्वाहिश रहती है — कैसे उसे खुश रख सकूँ।
जब भी कहीं और व्यस्त होता हूँ, मन वहीं भटकता है,
खुद से पहले, उसकी खैरियत का ख्याल सबसे पहले आता है।
कुछ आदतें हैं मेरी, कुछ मजबूरी के राज़,
जो उसे दर्द देते हैं, पर फिर भी नहीं कह पाता हर बात साफ़।
कभी अधूरी बातें, कभी अनकहे अल्फ़ाज़,
छोड़ देता हूँ अधूरी चीज़ें… उसे तकलीफ़ से बचाने के लिए बार-बार।
हर दिन एक भारी दिल के साथ जागता हूँ,
और मेरी यही मजबूरी मेरी मोहब्बत को और भी ताज़ा कर जाती है।
कभी-कभी तो दिल करता है, सब कुछ छोड़ कर बस उसके पास चला जाऊँ,
मगर फिर ज़िम्मेदारियाँ पीठ थपथपाकर मुझे याद दिला जाती हैं – अभी नहीं...-
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Khoja khud ko gali gali
Par apna hi pta nhi mila
Socha khoj aau khud ko
Jaakr khi kisi raho pe
Ya fir khi talash kr aau khud ko
Jaha smjh aye apni nigahon me
Dabi chipi bhavnao me
Rok rhi khud ko maryadao me
Kaise khud ki talash kru
Apna pta tere raaho me
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Kitna aadi ho gya tha wo ek shaqs
Tmhare bina wo kaise reh payega tm smjh paoge kya-
उसने कहा "तुम्हारे दुख का कारण मैं नहीं,
बल्कि तुम्हारा मुझसे प्यार करना है।"
हमने भी मुस्कुराकर कह दिया,
"इश्क़ अगर गुनाह है तो सज़ा भी कबूल थी,
पर किसी बेवफा से वफा की उम्मीद करना हमारी भूल थी..."
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मुझे नहीं पता कैसे तुम्हें दूर जाने दूं,
हर सोच में बस डर ही समाने दूं।
पर हर बार एक उम्मीद जगा लेती हूं,
खुद को फिर से समझा लेती हूं।
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कभी प्यार किया, जिससे प्यार मिलने की उम्मीद ना हो,
एक एहसास, जिसमें बस तुम ही तुम हो।
इस एहसास को कम न करने का दिल चाहता है,
चाहे जो भी हो, हर हाल में निभाना चाहता है।
क्योंकि मेरा एहसास ही मेरी ज़िंदगी का सहारा है,
जिस दिन ये छूटे, वही मेरा आखिरी किनारा है।
तो यही है मेरा प्यार, बस इसे संभाल कर रखना,
इसके सिवा और कोई रास्ता नहीं है अपना।
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वो बस कहता कि प्यार है, इसलिए बात करते हैं,
न कि ज़रूरत है, इसलिए साथ चलते हैं।
पर उसे तो आदत थी झूठ बोलने की,
मैं बस चुपचाप उसकी बातों को सच मानती रही।
क्यों इतना नाटक किया प्यार का,
अगर था नहीं तो इकरार क्यों किया?
सच कहने की हिम्मत तो होनी चाहिए,
पर अफ़सोस, वो हिम्मत कभी नहीं था उसमें।-
दिल में एक अनकहा डर बसा है,
आँखों में बेतहाशा समुंदर उठा है।
बेख़याली हर पल सताने लगी,
शायद तन्हाई ही अब मेरी क़िस्मत बना है।
हर आहट जैसे साज़िश लगती है,
हर ख़ुशी भी अब बेअसर है।
जो अपना था, वो पराया निकला,
अब इस दिल में सिर्फ़ एक सफ़र है।
न मंज़िल की खबर, न रास्तों का पता,
बस तन्हाई का साया हमसफ़र है...
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