भूल गए हो ?? अरे अपना शहर तो याद ही होगा ?
आशियाने बदले हैं कई दफा तो क्या , हर घर को अपना बनाना तो याद ही होगा ?
तुम्हें सुकुनियत देने की ख्वाहिश में "कोई" दिन रात जागा है ,
एक मुस्कान से "उसका" वो दर्द छुपा लेने का कोई पहर तो याद ही होगा ?
मोहोब्बत थी , या डर था "उसका" , जो तेरे इर्द-गिर्द ही फिरा करता था ,
पर तुम्हारी ज़िन्दगी में "उसे" ज़हर , करार दे जाना तो याद ही होगा ?
भूल गए हो ?? अरे अपना शहर तो याद ही होगा ?
तेरा नाम लेते - लेते वो अंत में ठहर गया कहीं ,
उसके साथ के चंद लम्हों का बिताया वो सफर तो याद ही होगा ?
तेरी ख़ुशी के लिए अपनी हर ख़ुशी को वो ताक पर रख देता था ,
पर ज़रा सी नोक-झोंक में भी हक़ से उसका बिफर जाना तो याद ही होगा ?
याद तो होगा के , हर पल वो कहता था , के खबर देते रहना ,
उसे भूल गैरों की डगर में चले जाना , तुम्हे याद ही होगा ?
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