कभी-कभी मन में सवालों का बवंडर उठता है,
जल्दी उठो—जवाब की तलाश में ऐसा मन कहता है।
कैसे होती है ये पैदाइश और हम क्यों रोते हैं,
जब आते हैं इस दुनिया में, रहती हैं आँखें बंद और हम सोते हैं।
लेते हैं हम जब अलविदा तो सबको रुला के जाते हैं,
कैसा लगता होगा तब, जब ईश्वर हमें अपने पास बुलाते हैं?
ये किस्मत की दास्तान कैसी होती है,
क्या है वो इतनी नायाब, कि वो सोना या मोती है?
कहते हैं कि हमारी ज़िंदगी की डोर है उसमें,
क्या स्थिर है, इसी पर हमारे बुने हुए हर सपने।
जब चिड़िया आसमान में उड़ती है तो क्या सोचती होगी?
वो ज़मीन में देख हमें, क्या अपनों को खोजती होगी?
आसमान में सितारों की खूबसूरती की क्या ज़ानियत है?
क्या भीड़ में बस्ती अभी भी कोई इंसानियत है?
कभी खुशी तो कभी ग़म के पन्ने बिखरे पड़े हैं,
क्या कभी लोग एक-दूसरे की तरफ़ फ़िरदौस से मुड़े हैं?
इस जहाँ के आँचल से जुड़े हैं सवाल कई,
जवाब की आरज़ू में तो बस ये कवि घूम रही।
ये सवालों का उलझा धागा भी ईश्वर की माया है,
तफ़्तीश के उत्तर को भी कहाँ फ़ौरन कोई ढूँढ़ पाया है।
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And, I try to put emotions into words 😇.
//हर एक ले... read more
आनंदमयी सी एक ख़ूबसूरत सी भोर
चारों तरफ़ गूंज रहा था एक शोर
कहीं भक्ति की प्रतिध्वनि तो कहीं पंडालों की मुस्कान
यही तो है भक्ति की सुगंध की पहचान
मां की प्रतिमा की एक अद्भुत सी झलक
प्रफुल्लित हो रही है ज़मीन और फ़लक
कहीं गरबा के सुर में बसती है एक अलग पहचान
डांडिया की धुन से सजता है नवरात्रि का मान
इधर-उधर की रोशनी में सज उठता है एक विश्वास
दुर्गोत्सव में होता है भक्ति और प्रेम का उल्लास
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आसमान में गुनगुना रहा है नज़्म कोई,
वो तो चाँद है जिससे मेरी गुफ़्तगू हुई।
तुम्हारी रोशनी में इतनी ख़ूबसूरती कैसे है, मैंने पूछा,
दास्तान-ए-बयाँ के पहले उसने थोड़ा-सा मुस्कुरा के सोचा।
मैं चाँद हूँ, चाँदी-सा मेरा रूप है,
मेरा रैना के अँधेरे में दीप्ति-सा स्वरूप है।
तुम रहते बहुत हो दूर, फिर भी कैसे उजाला फैलाते हो?
तकती है आसमान को मेरी आँखें, पास तुम नज़र आते हो।
मेरी सन्नाटे की आवाज़ को तुम सुनते हो,
मेरी ख़ामोशी में मुस्कुराहट के किस्से तुम बुनते हो।
सफ़ेद चादर ओढ़कर आसमान में तुम करते हो करिश्मा,
चुप्पी की क़ायनात के सिर्फ़ तुम ही तो हो मेहरेमा।
कैसे होते हैं तुम्हारे बहुत प्रकार?
चाँद ने फ़रमाया, "हाँ, मेरे हैं अनेको आकार।"
कभी पूरा तो कभी अधूरा होता हूँ मैं,
कभी श्याम तो कभी नूरा होता हूँ मैं।
मोहब्बत की किताब को मैं लिखता हूँ,
मैं तो चाँद हूँ, हर शर्वरी में दिखता हूँ।
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बर्फ़ीली चादर को ओढ़े श्वेत से होते हैं पर्वत,
यहाँ की हवाओं में है एक ख़ुशबू, एक हरियाली-सी हरकत।
वो कल-कल करती नदियों का मधुर संगीत,
और वो सुबह सूरज की लालिमा की मुस्कुराती प्रीत।
एक तरफ़ अद्भुत पर्वतों की चढ़ाई,
तो दूसरी ओर बादलों के बीच बारिश की लड़ाई।
खूबसूरत से फूलों की रंगभरी रंगोली,
तो कहीं उड़ते पंछियों की मीठी बोली।
कभी बद्रीनाथ और केदारनाथ के द्वार का संगम,
यहाँ गोमुख, गंगोत्री, यमुनोत्री का है आपसी समागम।
प्रकृति यहाँ एक कविता लिखती है बार-बार,
यहाँ कण-कण में है भक्ति की पुकार।
कभी गढ़वाल की सुंदर गाथा, तो कभी कुमाऊँ की कहानी,
यहाँ के हर कोने की महक है सुहानी।
स्वर्ग जैसा यहाँ सब कुछ प्रतीत होता है,
यहाँ तो हर इंसान प्रकृति की गोद में ही सोता है।
ऋषिकेश से उत्तरकाशी की उड़ान,
तो कभी हरिद्वार की हरि की पौड़ी की मुस्कान।
मसूरी के पहाड़ और झरने लोगों को देख अभिनंदन करते हैं,
यहाँ जो आया, वो यहाँ की हवाओं का कभी न स्कंदन करते हैं।
वसुंधरा की मुस्कान तो यहाँ की मिट्टी में बसती है,
यह स्थल तो बस सौंदर्य और शक्ति की हस्ती हैl
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आसमान के पन्नों पर एक खूबसूरती का साज़
एक चाँद और एक चाँदनी का इबादत सा आगाज़
एक रूह है तो दूसरी उसकी साँसें
चाँद रोशन करता है फ़लक तो एक तरफ़ चाँदनी, राहें
चाँद के विलादत से रोशन होती है चाँदनी
चाँद के वजूद से ही तो है चाँदनी में छुपी एक रौशनी
चाँद का नूर एक इबादत है
उस महताब को जहाँ-ए-आलम में पहुँचाती है चाँदनी,
वो तो चाँद की ज़िया सी सोहबत है
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खुले आसमान में जैसे उड़ान भरना,
खुद को उस इंसान के करीब सिर्फ़ महफ़ूज़ समझना।
कभी बादल की बारिश तो कभी ओस की बूंदों को महसूस करना,
कभी मौसम की ख़ूबसूरती को बस एकटक निहारना।
जब साथी को हो सिर्फ उसका मलाल
आता हो बस उसी का ख्याल
जब पल थम सा जाता है
जब वक्त हाथ न आता है
ऐसा लगता है कि बस कोई हमें बुलाता है
फक्त आवाज़ नहीं सुर से भरी है रागिनी
बसती है दिल के कोने में जैसे एक भाविनी
जैसे हो कभी रासलीला का बखान,
दास्तान हो जैसे शिव और शक्ति की महान।
गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम हो जैसे,
ये शब्द नहीं, पाक जज़्बात हैं — इसको महज़ शब्दों में बयां करूं मैं कैसे।
ताज महल जैसी ख़ूबसूरती का जैसे निखार हो,
चोट लगे किसी को और कहीं और कराह हो।
लफ़्ज़ों में नहीं हो सकते बयां,
क्योंकि ये जज़्बात हैं — ख़ुदा के निशान।
इसमें बसती है इनायत भरी एक सोहबत,
इस जज़्बात का नाम है — मोहब्बत।
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जब दिल में दर्द की नदियाँ बहती हैं
तभी तो तन्हाइयां अपना किस्सा कहती हैं
मेरे दिल के दरीचों को कभी खोला था उसने
दूरियों की दास्ताँ को लिखकर झरोखों को बंद कर दिया मैंने l
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ना जाने क्यों कभी-कभी कोई अनकहा ख़याल आता है।
जब होती है सुबह तो चाँद छुप-सा जाता है।
जब दिल में दर्द हो तो आँसू आ ही जाता है।
हर ग़म छुपा कर इंसान कहीं खुद को खोता है।
सच कहते हैं,
"मोहब्बत भी उनसे कमाल की होती है,
जिनका मिलना मुक़द्दर में लिखा नहीं होता है।"
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मन में छिपे बहुत से राज़ होते हैं
कभी कलम से तो कभी आवाज़ से आगाज़ करते हैं
कभी चुप्पी को बयां, तो कभी जंग का ऐलान करते हैं
ज़ाहिर-ए- किस्से भी बेशुमार हैं अब हम नहीं किसी से डरते हैं l
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बचपन की यादों को अपने दिल में संजोये हैं
बङे हो चले हम कहीं तो खोये हुए हैं
न मंज़र का खौफ न मुकाम हासिल करने का डर था
पापा मम्मी की ऊंगली पकड़ कर चलना
हमें तो बस प्यारा अपना शहर था l-