कल अल्फ़ाज़ थे,
मगर जज्बात नही!!
आज जज्बात तो है,
मगर अल्फ़ाज़ कुछ भी नहीं।-
रूके तो चाँद जैसी है,
चले तो हवाओं जैसी है,
वो माँ ही है
जो धूप में भी छांव जैसी है|-
क्यूँ इतना उदास है?
कि ये ग़म पेहला तो नहीं;
हर सुबह नई खुशी के साथ है,
और ये खुशी आखरी तो नहीं!!
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किसी को भुलाने से पहले,
उसे याद करना पड़ता हैं;
और इश्क़ लिखने से पहले,
इश्क़ करना पड़ता हैं!!!
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कैसे चले जाऊँ किसी से साथ,
उम्र भर के लिए;
एसे पड़ाव पर जहाँ मेरे
माँ बाप को मेरी ज्यादा जरुरत है! — % &-
वो तो पुस्तकालय में रखी किताब सा है,
जिसे हर कोई पढ़ सकता हैं;
और मै लीफाफे मैं बंद एक औपचारिक पत्र जैसी,
जिसे बस वही पढ़ सकता हैं जिसके नाम वो लिखा गया हो!!-
कितना अज़ीब हैं ये सफ़र,
किसी अपने पुराने शहर को छोड़ने का ग़म है,
तो किसी नये शहर जाने की खुशी;
और इन दोनों के बीच फसी एक मासुम सी घबराहट एक डर है!
की अब आगे क्या होना हैं?-
तब हमारी मासुमियत के किस्से ओर भी मशहूर हो गये,
जब हमें आपसे मोहब्बत हुई और आप दग़ा करके दूर हो गये॥-
तुम चाहे इस वतन में रहो या सरहद पार,
तुम फिर भी मुझे प्यारे हो;
असल में मेरा दिल मोहब्बत के बाद,
कभी सियासत नहीं जान पाया|-
मेरे कमरे को सजाना चाहते हो?
यहाँ किताबों के सिवा कुछ नहीं;
मेरी जिंदगी में आना चाहते हो?
यहाँ टूटे ख्वाबों के सिवा कुछ नहीं|-