फ़ासला कम होने अब मुझे उम्मीद सी होने लगी है,
लगता है ख़ुदा को आख़िरकार मेरी तड़प दिखने लगी है।
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हम कोशिश कर भी लें उभरने की इस मर्ज़ से,
लेकिन तेरे इश्क़ का सुरूर अभी उतरा कहाँ है।-
अगर बोलकर ही समझाना पड़े मुझे प्यार अपना
तो मेरी जान फिर ये ऐतबार कैसा?-
ज़िंदगी बदल रही है मेरी हर पहलू में,
दोस्त नए, काम नया, किरदार भी नया।
लेकिन इस बदलाव से झिझक मुझे कोई नहीं।
शायद सच ही कहते हैं कुछ लोग,
कि त्रिनेत्रधारी तुम्हें बुलाता तो है,
लेकिन तब जब तुम, तुम जैसे बच्चों नहीं।
अच्छा ही है, ख़ैर, यह परिवर्तन भी।
मन शांत, आत्मा स्थिर, अजीब सी यह शक्ति है।
भक्ति तो अब पीछे छूट गई है मेरे सफर में,
क्योंकि अब शिव और उनकी इस पुत्री में अंतर अब कोई नहीं।
शिवोऽहम।
हर हर महादेव।-
आख़िरी बार मिलने की ख्वाहिश है,
साँसें चंद ही हैं बाक़ी मेरी।
उन्हीं तेरी बाहों में लेने की ख्वाहिश है,
जीते जी तुमने थामा नहीं कभी हाथ मेरा,
मर के तुझसे 'दिलबर' सुनने की ख्वाहिश है।-
शिव से बातें करनी शुरू कर दी है मैंने,
वो भी मेरी बचकानी ज़िद को सुनने लगे हैं।
गुज़र रहे हैं दिन मेरे उनका नाम जपते-जपते,
वो भी अब मुझे अपने पास बैठाने लगे हैं।-
नज़रअंदाज़ तो वो मुझे यूँ ही कर देता है,
जैसे मेरी उसकी नज़र में कोई क़ीमत नहीं।
हम फिर भी उसी को निहारते रहते हैं एकटक,
क्योंकि हमारी नज़र उसकी नज़र में सीमित नहीं।-