Palak Sharma   (Palak Sharma)
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ताण्डव छाया

Published author
Joined 11 February 2018


ताण्डव छाया

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Joined 11 February 2018
23 JUN AT 6:42

उन लम्हों के तूफ़ान से वो भी डरता होगा।
बोले कुछ न सही, पर सोच में वो भी लड़ता होगा।
कहता होगा सब बातें जो कह न सका वो मुझसे,
अकेलेपन को मिटाने के लिए ही सही, याद तो वो अब भी करता होगा।

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20 JUN AT 12:01

अब यहाँ मेरा गुज़ारा नहीं, मेरे साथ आगे चलोगे क्या?
ये बस्ती और ये शहर अब मुझे काटने को दौड़ते हैं, इन्हें छोड़ कहीं और रहोगे क्या?
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19 JUN AT 19:59

आज मेरे साथ एक नई कहानी लिखना तुम।
कुछ बातें मैं करूँ, कुछ यादें रचना तुम।
काग़ज़ के पन्ने सजाऊँगी मैं, उनमें रंग भरना तुम।
सपने कुछ मेरे होंगे, कुछ अपने पूरे करना तुम।
(Read Caption)

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17 JUN AT 11:23

चल रही है ज़िंदगी अब इसी गुरूर में
कि अब इससे ज़्यादा बुरा भी क्या होगा।
देख लिए हैं तख़्ते पलटे क़ुदरत के हमने,
इससे बेदर्द इस जहाँ में अब क्या होगा।

बुल्ले के क़ाफ़िले में भी फ़क़ीर न बन सके,
अब चल ही बसे इस ज़िंदगी से तो क्या होगा।
गुमनाम रहने की चाहत अब फ़ौत हो गई है हमारी,
कलम से अब इस मोड़ जुदा हो गए तो क्या होगा।

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17 JUN AT 10:45

Let the rain fall on my skin.
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16 JUN AT 7:11

आज जी भर के मोहब्बत कर लो मुझसे,
आज दिन बहुत मनहूस सा है।
हर एक न सही, कोई बात तो कर लो मुझसे,
शायद मन भर ही जाए तुम्हारा आज मेरी बातों से।
गिले-शिकवे सब मिटा देना,
मत रखना कोई भी कड़वाहट तुम अपने जज़्बातों में।
के अब मोहब्बत हमारी मंज़िल के क़रीब है,
जानते हैं हम दोनों कि बिछड़ना ही हमारा नसीब है।
तो बस मुस्कुरा कर बाँध लेना सिर्फ़ हँसी भरे पल अपनी यादों में।
अब हम हमसफ़र नहीं, ना ही हम रहे अब हमराही हैं।
तुम पूरब तो मैं पश्चिम चलती हूँ,
दिल हमारे फिर भी देते इस क़दर दर्द में दुहाई है।
कि जाते-जाते, टूटते-टूटते, एक बात हमारी मानते जाओ—
आख़िरी इच्छा तो गुनहगार की भी सुनी जाती है,
एक फ़रियाद हम मासूमों की भी मानते जाओ।
आज ये चाँद बहुत हसीन है,
बादलों की चादर में छुपा, ये मंज़र बहुत गंभीर है।
आँखों में नमी है, रूह तक से उठती एक चीख़ है।
आज तुम्हारा नूरानी चेहरा भी मायूस सा है।
जी भर के मोहब्बत कर लो तुम मुझसे,
आज तो दिन वैसे भी मनहूस सा है।

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15 JUN AT 2:56

The night is beautiful tonight.
The sky is perfectly lit.
The blood is glistening again tonight.
My darling, let's waltz to it.
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12 JUN AT 0:23

वो मौत माँगे
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9 JUN AT 6:55

Moth to a flame
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8 JUN AT 21:33

हुन टूटे नहीं थे,
हमें तोड़ा गया था।
दुआओं से भरी मस्जिदों में,
हमें बद्दुआ देकर छोड़ा गया था।
मंज़िल हमारी रुकसत न होती हमसे,
लेकिन रास्ता हमारा बेवजह मोड़ा गया था।
ख़ैर, ज़िंदगी की कशमकश में जायज़ है ये सब,
हमारे सच को भी फ़रेब में लपेट कर बोला गया था।

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