Palak Rathore   (पलक राठौर)
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Joined 22 May 2018


Joined 22 May 2018
24 MAY 2021 AT 1:26

तैरने वाले से ज्यादा
डूबे मिल जाते हैं,
फिर भी इश्क़-ए-दरिया में
लोग गोते खाने चले आते हैं,

कोई दिल तोड़कर
मुस्कुरा रहा है तो,
कोई मस्त हो
जाने किसकी नज़्म
गा रहा है,

कुछ चोट लगी है
दिल को मेरे भी,
इसलिए ही तो
''इश्क़ ना करिये
इश्क़ से डरिये''
सबको समझा रहा है!

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25 APR 2021 AT 21:25

बेइंतहा तेरा प्यार,
न मिल सका तो क्या,
थोड़ा कम भी चलेगा!

गुनाह-ए-इश्क तो,
हो गया है हमसे,
अब तो तेरा सितम भी चलेगा!

इकरार-ए-मोहब्बत की तो,
मुस्कुराहट भी न दिखी लबों पर,
उम्र भर के लिए यह गम भी चलेगा!

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25 APR 2021 AT 21:09

सागर भी प्यासा रहता है,
बारिश की आस में !

बेवफा होंगी कुछ बूंदे भी....

जो फिर भी खारा रहता है,
इश्क की मिठास से !

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24 APR 2021 AT 19:29

तुम आए पर रुके नहीं,
हम गुनगुनाते रह गए|

इंतजार तुमसे हुआ नहीं,
हम तुम्हारे किस्से सुनाते रह गए|

बेवफा होता देख भी तुमको,
हम मुस्कुरा कर.....
यह गम भी सह गए|

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24 APR 2021 AT 18:56

अस्पताल भी बाजार हो गया,
चारों तरफ हाहाकार हो गया,
कोई मजबूर लाचार हो गया,
यह कोरोना....
किसी का तो त्यौहार हो गया|

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24 APR 2021 AT 18:39

जल से ओतप्रोत सागर की भांति,
अपनी लहरों को औरों तक पहुंचाता है,

एक प्रेमी ह्रदय अपने प्रेम से,
कोरे कागज को महकाता है,

संसार की समस्त सुंदर उपमाओं से,
प्रिय के लिए शब्दों की माला सजाता है,

नवीन उमंगो तरंगों को,
एकांत में उद्घाटित करता जाता है|

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19 JUL 2020 AT 19:16

माना दुनिया गंदी है,
अच्छाई की मंदी है,
अपने दिल को साफ करो,
सबकी गलती माफ करो|

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15 JUL 2020 AT 10:37

आंखें दे गवाही जज्बातों की,
जरूरी तो नहीं....
बंदगी हो किसी की जिंदगी में,
जरूरी तो नहीं....

कुछ इबादतें होती हैं,
खामोशी से....

हर शायरी हो अंजुमन में,
जरूरी तो नहीं....

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10 JUL 2020 AT 20:41

छोटी सी उम्र उसकी,
काम है विकराल सा,
सहमी सी आंखें लिए,
वह खुद खड़ा सवाल सा|

विवशताओं से पस्त हो,
खुद में कहीं है सो रहा,
मासूम ख्वाबों के बदले,
बोझ काटों का ढो रहा|

एक सहज मुस्कान लिए,
मन ही मन है रो रहा,
भावी पूर्णिमा का प्रकाश वह,
जो वर्तमान अमावस हो रहा|

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6 JUL 2020 AT 21:07

डरा सहमा सा रहने लगा कैसे,
की चेहरे की मुस्कान के पीछे,
कोई डर छुपा बैठा हो जैसे,
ना मालूम मुझको यह हुआ कैसे!

क्या और कैसे किसी को बताऊं,
डर को अपने में किस तरह हराऊं,
हाय रे हाय....
अब रूठे हुए खुद को मैं कैसे मनाऊं,
यह सहमी धड़कनों को कैसे बहलाऊं!

भाए ना यह दुनियादारी मुझे,
अकेला कमरा भी अब तो सताए मुझे,
रात को नींद भी ना आए मुझे,
बिना किसी गलती के बता रे मन,
क्यों सजा देता है तू मुझे!

मैंने तो खुद ही खुद को बांध दिया,
चलती बढ़ती मेरी दुनिया को थाम दिया,
उजियारी सी जिंदगी को अपनी,
घोर अंधकार का तोहफा इनाम दिया,
हाय रे मैंने यह कैसे और क्यों किया?

एक दिन इस डर पर काबू पाना है,
खुद ही खुद को हराना है,
रूठा मन भी मान जाएगा,
यह जो डर बैठा घर करके,
यह भी एक दिन भाग जाएगा|

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