हिकायतें कभी अधूरी नहीं हो सकती
सब्र तो रख ज़िंदगी में
वरना तो कोई आरज़ू भी पूरी नहीं हो सकती-
उस रोज देखा था उन्हें बारिश में भीगते हुए
हां कुछ चाहतें भी थी उनके साथ वहीं उसी पानी में डूबते हुए-
चलो जाने दिया उन्हें अब जिनपर कभी मरते थे हम
क्या ही फायदा उन्हें अब याद करने का जो हमें बस भूलते गए हरदम-
कुछ इस कदर नूर था उनकी आँखों में
कि महर-ओ-माह भी फिके पड़ गए
बिलखते थे वो रात दिन आँसुओं में
और लोग उनकी मुस्कराहट के पीछे पड़ गए-
बारिशों की बूँदे बरस रही थी यूँ कुछ बीती यादों के साथ,
बिलख रही थी वो या कहूं झूम रही थी उन्हीं कुछ बीते जज़्बातों के साथ !!-
दिल बेचैन तो था बहुत,
पर अपनों के लिए सौ तमन्नाओं को छोड़ा है !!
हसरतों पर समझदारी का पत्थर रख,
आज फिर हमने कुछ ख़्वाहिशों से मुँह मोड़ा है !!-
सियासी खेलों ने ही तो बर्बाद किया है समाज.....
मसरूफ़ थे वो विपक्ष को गिराने में इतना की भूल गए आम-आदमी का लिहाज़ !!
-
भूल गए थे ज़माने की उन क़ातिल रिवायतों को जनाब,
तभी तो चीर डाला उन्होनें हमें अंदर से बेहिसाब !!-
तकलीफों के मंज़र में भटक रहे थे तो सोचा थोड़ा भाग निकलते हैं,
थककर थोड़ा रुके तो जाना हम तो रेगिस्तान में बैठे हैं!!-