आज तुम्हारे नन्हें क़दमों ने मेरे दिल के आंगन में दस्तक दी थी
बता नहीं सकती कि मैं अंदर से कितना हर्षित हो गई थी
तुम्हारा पहला क्रंदन और मेरा खुशियों भरा रुदन
तुमको पाकर मैं पूरी जो हो गई थी
मैं अधबेहोश सी पड़ी थी और तू मुझे देख रहा था
कितना छोटा सा था तू पर पूरा का पूरा मेरा था।
अगले दिन तुझे जब वो मेरे गोद में छोड़ गई थी
मैं पूरी की पूरी करुणा ममता से भर गई थी
तुझे बस देखती रह गई खो गई तेरी मासूमियत में
अपनी उंगली रख दी मैंने तेरे नन्हेे हाथो में
तूने मेरे उंगली ज़ोर से पकड़ ली थी
मेरा मन वात्सल्य से भर दिया था
कभी तू मुझे देखता कभी अपने पिता को
शायद सोचता आ गया मैं अपने आंगन मे
दादी नानी सब खुशियों से प्रफुल्लित हो गए थे
मन में स्नेह और खुशियों से भर गए थे
मैं तो सपने बुन रही थी कैसे तू हंसेगा कब चलेगा
कब मां बोलेगा और कब सारा घर सर प उठा लेगा
डरती थी बहुत इतनी नन्हीं सी जान को कैसे में पालूंगी
मैं तो खुद हूं नासमझ सी कैसे तुम्हें संभालूंगी
देखो आज तू मुझे ही संभालता है दो वर्ष का हुआ है और लगता मेरा दादा है।
रूठूं जो में तो तू कितनी मासूमियत से मुझे मनाता है
रहूं गुमसुम जब मैं तू कैसे समझ जाता है।
आकार मेरे पास बातें करता है मैं रोऊं जो कभी तू गले से लगा खुद रोने लग जाता है।
इतना छोटा सा बच्चा मेरा पिता बन जाता है। जाने इतनी समझ कहां से ले आता है।
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देखो यहां बारिश हो रही है
किसी के मिलन की ख्वाहिश पूरी हो रही है।
कितनी ज़ोर से वो उसे आलिंगन कर रहा है
एक मदहोशी सी हो रही है।।
उसके प्रेमास्पर्श से देखो कैसी वो उसमें खो रही है
टूट के बाहों में उसके वो कैसे रो रही है
देखो न तुम ये सुखद मिलन की बेला
ये फिजाएं भी अब नशीली हो रही है।।
की देखो बारिश हो रही है
ख्वाहिश मिलन की पूरी हो रही है।
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समझ नहीं आ रहा ये
प्रेम किसे किससे है
आपकी यादें हमे नहीं छोड़ती
हम इस कागज़ कलम को नहीं छोड़ते।
पाखी-
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कुछ कसर बाकी था
मोहब्बत का असर बाकी था
अश्कों की नदी तो बहाई थी मैंने
पर उसे समंदर से मिलाने वाला
वो सहर बाकी था
हाँ कुछ कसर बाकी था
मोहब्बत का असर बाकी था।-
वक़्त हो गर कभी तो सोंचना तुम
के
इतने टूट कर भी अब तक हारे
क्यों नहीं हम-
Ke ab teri aankhon me mera intezaar na raha.... Ke dil tera mere lie ab bekarar na raha.....
Ke door mere chale jane se teri aanken nam na hui...
Ke kareeb mere aane se dhadkane teri betaab na hui...-
Jaane kyon tumse mohabbat
Kabhi kam hi nahi hoti
Dukhta hai dil tarasti hai saansen
Per pata nahi kyon tumhare lie ye tadap
Kabhi kam hi nahi hoti.
Jaante hain ke ab tumhe mohabbat nahi hamse magar duri tumse aaj kyon sehen nahi hoti
jaane kyon tumse mohabbat
Kabhi kam nahi hoti.
Bekarar hote hain ham har roz tumhe
Baahon me apni bharne ke lie
Kya tumko bhi kabhi chubhan nahi hoti
Jane kyon tumse mohabbat
Kabhi kam nahi hoti.
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तोड़ देती हैं तुमको
भीतर से तार तार कर देती हैं।
कुछ ख्वाहिशें कभी ख़ुद दम
नहीं तोड़ती हैं।-