कैसे समझायें हम तुम्हें अपने दिल का हाल,
जो हमेशा खुद में खुद के हुजूम से भागता हो॥
‘कमाल’ क्या सोये वो दिन के उजाले में,
जो स्याह रात के अंधेरे में भी जागता हों॥-
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जो बात सिर्फ़ जिस्म की होती,
जिस्म ज़माने में हज़ारों मिल जाते॥
बात तुमसे सिर्फ़ जज़्बात की है,
यूँ कैसे किसी और के लिए बन जाते॥
तुमने कहा ‘कमाल’ मुझसे अच्छी और भी हैं,
करते जो हम दगा तुमसे तो मर ना जाते॥-
यूँ भी तू कहती है,
तू पागल है क्या॥
कितना अच्छा होता,
जो मैं सच में पागल होता॥
तू पूछती ख़बर,
कभी तो पलट कर मेरी॥
‘कमाल’ भी रुआब में रहता,
जो मैं सच में पागल होता॥
तू रखती ख़याल मेरा,
अपने अज़ीज़ कि तरह॥
सरेआम चूमती माथा मेरा,
जो मैं सच में पागल होता॥-
मैं एक पागल आशिक़ हूँ,
तू जैसे पाकीज़ा आग कोई॥
मैं आवारा गलियों में रहने वाला,
तू जैसे आसमान में चाँद कोई॥
मैं एक कच्ची कुटिया हूँ,
तू जैसे मज़बूत बुनियाद कोई॥
‘कमाल’ एक बुरी याद जैसा है,
तू जैसे ख़ूबसूरत ख़्वाब कोई॥-
कुछ सवाल उनके कुछ जवाब मेरे
उसने पूछा: लोग इश्क़ में इंसान को क्या कुछ बनाते हैं ??
मैंने कहा: महबूब इश्क़ में ख़ुदा की तरह पूजे जाते हैं॥
उसने पूछा: लोग पागलों की तरह कैसे चाहतें हैं ??
मैंने बोला: तुम इश्क़ करो हमसे हम चाह कर दिखाते हैं॥
उसने पूछा: लोग इश्क़ में बिछड़ कर कैसे मर जाते हैं ??
मैंने बोला: तुम बिछड़ कर देखो हम मर कर दिखाते हैं॥-
मुझे पसंद है हर अदा तेरी,
मुझे तेरी सादगी भी पसंद है॥
मुझे पसंद है सवरना तेरा,
मुझे तेरी बिखरी ज़ुल्फ़ें भी पसंद है॥
मुझे पसंद है मेरी ज़िद्द पर झुकना तेरा,
मुझसे तेरी की हुई ज़िद्द भी पसंद है॥
मुझे पसंद है ग़ुस्सा तेरा,
मुझे बच्चों की तरह मनाना भी पसंद है॥
मुझे पसंद है गले से लगाना तेरा,
फिर तेरा आँखें चुराना भी पसंद है॥
मुझे पसंद है इजहार-ए-इश्क़ तेरा,
तेरा मोहब्बत से मुकरजाना भी पसंद है॥
मुझे पसंद है तेरा मुझमें यूँ बसे रहना,
सौ बात की बात ‘कमाल’ को तू पसंद है॥-
हम सिर्फ़ सनम एक तेरे हैं,
फिर तु ये भरोसे से क्यूँ नही कहता॥
तेरी आँखें तो हर बार कहती हैं,
फिर तू ज़ूबाँ से क्यूँ नही कहता॥
और तू कहता भी है तो रवानगी में,
मुझे गिला है तू होश में क्यूँ नही कहता॥
कुछ लोगों ने सुना है तुझसे नाम मेरा,
फिर तू मुझे अपना ‘कमाल’ क्यूँ नही कहता॥-
उन लोगों ने कभी इश्क़ नही किया,
जो लोग सज़ा या मज़ा कहते हैं इश्क़ को॥
हमने तो आशिक़ों से सुना है की,
वो लोग सुकून कहते हैं अपने इश्क़ को॥
किसी ने पूजा खुदा बना कर,
किसी ने कहा है बंदगी अपने इश्क़ को॥
ज़माने ने जिसे समझा भिखारी इश्क़ में,
उसने अपनी कायनात कहा है इश्क़ को॥
कल किसी ने मुझसे कहा बर्बादी है इश्क़,
‘कमाल’ ने जवाब में आबाद कहा है इश्क़ को॥-
जब दिया था तुमने मुझे यही दर्द,
कभी सोचा था मैंने कैसे इसे सहा था?
तुम रोज़ देते थे मुझे एक ज़ख़्म नया,
क्या मैंने तुमसे कभी एक लफ़्ज़ भी कहा था?
मैं फिर भी थी साथ तुम्हारे हमेशा की तरह,
सच कहो साया मेरा कभी तुमसे दूर गया था?
जब ‘कमाल’ तुमने ना देखे आँसू मेरे दर्द मेरा,
तो क्यूँ देख आज मुझे तेरी आँखों से नीर बहा था?-
सुनो! अगर मैं कहूँ,
मैं सिर्फ़ तुम्हारा हूँ॥
तो तुम मान लोगे ना,
की मैं सिर्फ़ तुम्हारा हूँ॥
कभी दिल में कोई,
सवाल तो नही होगा ना॥
तुम मुझे कभी,
कह तो सकोगी ना,
की मैं सिर्फ़ तुम्हारा हूँ॥
तुम्हें पता है,
दिल, धड़कन और साँसे॥
सब एक ही बात कहती हैं,
की मैं सिर्फ़ तुम्हारा हूँ॥
ये दिन,दोपहर, शाम और रात,
ये सूरज, चाँद, सितारे और ख़्वाब॥
ये सब गवाह हैं मेरे,
की मैं सिर्फ़ तुम्हारा हूँ॥
जब तुम मुझे पुकारती हो,
‘कमाल’, उल्लू, और पागल॥
तो मुझे एहसास होता है,
की मैं सिर्फ़ तुम्हारा हूँ॥-