Pagal   (✍️✍️✍🖋️✒️मेरी कलम✍️✍️✍️)
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Joined 16 May 2021


Joined 16 May 2021
3 APR 2022 AT 20:21

माना गलती होती है दोनो तरफ ,फिर सजा एक को
क्यूँ
कोइ प्यार करता हैं, कोइ दिल देता तो हैं
साथ चलना अगर ,गवारा नही हैं तो
पास बुलाना ,और बहलाना क्यों
किसी के नाम से अगर नफ़रत हो तो।
उसके याद मे रात भर सिसकियां क्यूँ।।
अगर प्यार करना अच्छा है तो।
फिर इनकार करना क्यों गवारा होता है

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3 APR 2022 AT 20:00

काली रात और मैं
मानवता शर्म सार हो गया, इस काली रात की तरह ।
तन्हां मैं रह गया तेरे साथ के बिना।।
देखा था जो कभी, ये बेशर्म सी आँखो मे।
वो ख़्वाब अब डराते हैं,काली रात की बांहों में।

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30 MAY 2021 AT 12:26

पहला प्यार भी कुछ अजीब होता है
तमन्ना तो बहुत होती है दोनों को
लेकिन इजहार_ ऐ_ मुहब्बत का पता नहीं
मिलन की चाहत होती है लेकिन
मिलने से कतराते है

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30 MAY 2021 AT 12:07

अपने दर्द की दस्ता कहाँ तक बया करू
मै निलाम होता गया लोग हस्ते गए बाजर मे
आशा थी मिलूंगा फिर से नए अंदाज में
ज़माना देखेगा खुली किताब मे
सूखे फूल की तरह हो गयी जिंदगी मेरी
इक झोंका हवा का काफी है बर्बादी के लिए

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30 MAY 2021 AT 9:46

जहां से उम्मीद खत्म होती है वही से आशा की किरण निकलती है
Good morning

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28 MAY 2021 AT 4:20

जानवर की कीमत और इंसान की नियत पर कोई भरोसा नहीं होता है

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28 MAY 2021 AT 4:10

ना चाहकर भी चाहा था तुमको
क्या यही सोच कर रुलाया था मुझको
चला जाऊँगा इक दिन छोड़ कर तुमको
फिर रोना ना ये सोच के मुझको
याद आऊंगा तुझे हरपल लेकिन
तू मिल ना पाओगी फिरसे

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28 MAY 2021 AT 3:53

।। बचपन।।
बचपन की है बात निराली
तोतले बातों की है कहानी
सुनकर घर मे मगन हुए
रौनक घर की बढ़ी हुयी सी
माँ की ममता पिता का प्यार
बहनो के जैसे इक उपहार
कितना गलती करू हर बार
फ़िर भी मिलता था माँ का प्यार
बचपन के वो दिन ही ऐसे थे
मस्ती मे जैसे हर पल रहते थे
नहीं किसी से बैर था अपना
अपनी जिंदगी अपना धुन था
हुआ बड़ा हुए जब उससे दूर
मन को वेदना तन को क्षोभ
ना मिलता वो माँ बाली बात
ना मिलता है वो पापा बाला
यहां चलना बहुत कठिन है लेकिन
फिर भी बिवस होकर चलता हूँ
जिंदगी अगर इसका है नाम तो
नहीं चाहिए ऐसा इंतकाम
इससे अपना बचपन था अच्छा
पूरा मस्ती और दोस्त भी सच्चा

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28 MAY 2021 AT 3:11

एक आवाज
शोर हुआ था कल की बातों पर
सायद कुछ मसले थे होंगे
कोई बोले बात यहीं था
कोई बोले बात अलग था
सायद मसला था अहम वो
तभी तो उतना लोग खड़ा था
कोई बोला अल्लाह हो अकबर
तो कोई बोला जय श्री राम
लगने लगे बोल पर बोल
फिर रुका नहीं कोई भी लोग
होने लगे मजहबी दंगे
हुआ कोलाहल अपरंपार
देख तमाशा आतुर होकर बोले
बहुत दुखद कांग्रेस की चाल
इसका बदला ले के रहूँगा
मेरे रग मे भी है राम का नाम
जागो हे मानवता वादी
कठिन समय है हर पल
जाग उठो हे प्राणी सब
मत करो दूसरे से बैर
मजहबी ठेकेदारों के चलते
क्यू दूसरे का खून बहाते हो
अगर लड़कर ही मरना है तो
क्यू मजहब को बीच मे लाते हो

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28 MAY 2021 AT 2:25

हुआ सबेरा सूरज देखो, कितना है निराला।
खेतिहर देखो झूमते जा रहे हैं अक्सर
फसल देखो कैसी है मतबल
गीत सुनाती है ये उज्जवल
शोर शराबा हुआ वो देखों
कितने मचले है वो देखों
देख ग्रीष्म की काली छाया
देख बसंत की प्यारी काया
मानव की तो बात निराली
रहते दिनभर काम मे जबतक
सुकून भी मिलता है तबतक
माया की नगरी पे पैर पसारे
हलचल ला देता है जीवन भर
होता कोलाहल की मेहरबानी
जीते जी मर जाते हैं प्राणी
जहां सद्भावना है बस्ता
वहीँ स्वर्ग है अपना वाला
निरस जीवन से क्या लेना
अपना जीवन बहुत सलोना
लिए कुदाली हाथ में जब भी
रहता दिनभर काम मे मस्त
नहीं सुनता हूं किसी की बात
हो जाता मन को हर्षोल्लास
क्यू प्राणी समय खोते हो
क्यू ना तुम कुछ करते हो
कुछ करने मे तेरी भलाई

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