पांडेय शुभ्रा   (शुभ्रा पांडेय)
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Joined 14 June 2020


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शहर सहरा सहर संगम की बात थी
नदी कश्तियां चांद चांदनी की रात थी
जब वह देखता चांद को चांद उसको देख रहा था
चांद उसमे था की नदी में उतरा था
जब मेरी नज़र फिरी तो चांद आसमा में जवां था
गुजर गया, जो चंद लम्हा था मौसम पतझड़ का था
एक बूढ़ा पत्ता वहा तन्हा था🖋️ शुभ्रा पांडेय ✍️


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Zelensky is a great fighter for now
and his leadership is also perfect
But a good leader is one who takes decisions
in the interest of the public,
not by ego. Shubhra`

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हमने भी देखा है शुकून मिट्टी में
गांव में मिट्टी के आंगन में
गीली सौंधी खुशबू में
लहराते अरुई के पत्तों में
बेल के नन्हे मखमली फूलों में,
हम भी बैठा करते थे गांव में
जब होती, जेठ की दुपहरिया
जब चलती थी लूं झोंको में
चबूतरे पर पेड़ की छांव में ,
हमने में देखा है शुकून गांव में
अशोक के पत्तों में छिपी
कोयल की कुकू में
नींबू धनिया के पौधों में
किसी कृत्रिम इत्र से मादक
नन्हीं बयार भीनी भीनी गमक
शुभ्रा पांडेय✍️
मां आंचल में बिखरे बाल
आंगन में सर्द की गुलाबी धूप
आसमान में आंचल सी गोधूली
पसरा रहता हर तरफ शुकून,
हमने भी देखा है शुकून
महज़ मिट्टी के सादगी में
मुस्कुराते हुए बुजुर्गों के
किस्से कहावत कहानियों में
मां के दुवाओं में बलाइयों
हमने भी देखा है....


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शहर अब कुछ उदास सा लगता है,
लगता है; ख़ामोशीयों ने दहशत दी हैं,
रात को अंधेरे से कुछ शिकायत होगी
कुछ तन्हा है! चांदनी रात इस शहर की,
बगैर चांद मेरे गांव में रात क्या होगी?••शुभ्रा✍️
बिन तारें सजती है आसमान की गलियां,
बगैर टिमटिमाहट गांव में रात क्या होगी ?
कुछ धुंध सा है मौसम ;कुछ मुरझाई हवा,
घटती हुई सी रात; सिमटता हुआ सा चांद,
सब कितना शून्य एकांत सा लगता है,
शहर अब कुछ उदास सा लगता है |

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Nothing here ..Just a survival who will die one day just like you ...✍️Shubhra

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{सुनो!}
तुम मुझसे कौन सा हिसाब चुकाती हो ज़िंदगी |
तुम मेरी ही ख्वाबों ख्वाहिशें क्यूं चुराती हो ज़िंदगी||
माना कि तुम्हे मुक्कमल जीती हूं मैं ही| (मैं✍️शुभ्रा)
पर तुम भी तो ख़ुद में मुक्कमल हो ज़िंदगी||
तभी तो तुम हो ज़िंदगी ,
माना रंजीशें है मुझसे फिर यारी भी होगी|
यकीं है कि तुम अनपढ़ होगी ज़िंदगी,
कभी तो कर बराबर का हिसाब ज़िंदगी||
{शुकून से अब मुझे भी जीने दो ज़िंदगी•}

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..................
उदास हो ..?
जीभर रो लो..!
..... शुभ्रा पांडे
अब बात करो
इक बात बताओ..?
गुजरी न जो रात बताओ ।
अपनी बीती-बात बताओ ।।
...... शुभ्रा_पांडे.....

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...................शुभ्रा_पांडे
बात गहराई की बताओ,
सुनो!अब मुस्कुराना छोड़ो!
वक्त की गहराई में उतरो,
मुझे संजोए नासूर दिखाओ!
....................शुभ्रा_पांडे
बात ही है निकल जाने दो
कलेजा है पिघल जाने दो
आंसू ही है निकल जाने दो
ज़ख्म ही है धूल जाने दो
......शुभ्रा_पांडे.........

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बात हो रही है गर , तो!
कुछ बात की बात करो!
बातें करने खातिर तो !
कब से बातें हो रहीं हैं ,
......................शुभ्रा_पांडे
कुछ फलसफा कहो ,
किसी गम को आवाज़ दो ।।
कुछ हकीकत बताओ ,
किसी ज़ख्म को कुरेद दो।।
......................शुभ्रा_पांडे


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बात हो रही है गर , तो!
कुछ बात की बात करो!
बातें करने खातिर तो !
कब से बातें हो रहीं हैं ,

कुछ फलसफा कहो ,
किसी गम को आवाज़ दो ।।
कुछ हकीकत बताओ ,
किसी ज़ख्म को कुरेद दो।।

बात गहराई की बताओ,
सुनो!अब मुस्कुराना छोड़ो!
वक्त की गहराई में उतरो,
मुझे संजोए नासूर दिखाओ!

बात ही है निकल जाने दो
कलेजा है पिघल जाने दो
आंसू ही है निकल जाने दो
ज़ख्म ही है धूल जाने दो

उदास हो ..?
जीभर रो लो..!
..... शुभ्रा पांडे
अब बात करो
इक बात बताओ..?
गुजरी न जो रात बताओ ।
अपनी बीती-बात बताओ ।।

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