आहिस्ता आहिस्ता चल रे ज़िन्दगी क्यों तुझे इतनी जल्दी सी पड़ी है? सर्द ओस की बूंदे जो ठहरी है पत्तों पर सुकूँ से कुछ पल के लिए तो उनको भी धरातल पे जी लेने तो दे..... माना कि ज़िन्दगी की क़िताब को समय पे पढ़ हर पन्ना पलटना ही तो है, पर थोड़ा तो आहिस्ते चल क्योंकि हर पन्नें को भी समझ उसमें थोड़ा जीना भी तो है।
हर बार खुद को संभालना पड़ता है हर उफ़नती लहरों के साथ सामंजस्य बिठाना पड़ता है, समुद्र की गहराई के डर को भी निकालना पड़ता है अपनी कश्ती को किनारे पे ला खुद ही ज़िन्दगी को सँवारना पड़ता है।
आपकी ज़िंदगी आपके हालात कोई दूसरा समझने वाला नही मिलेगा, इस मगरुर दुनिया का यही दस्तूर है साहेब हँसाने से ज्यादा रूलाने वाला ही हर तरफ दिखेगा। अपनी हँसी को इन लबो पर सदैव ही रखना यही मुसीबत में तेरा सही सहारा बनेगा, जब दिल हो सच्चा और हो सौ मुश्किल तो ईश्वर खुद तुझे निकालने का द्वार खोलेगा।
सिर्फ़ अपने हौसलों पे रहना यहाँ कोई किसी का नही है सिर्फ अपने रास्तों पर चलना.... कदम कदम कई सवाल उठेंगे ज़रूरी नही हर सवालों में उलझना दुनिया भी बनाती है एक चक्रव्यू बस उसे हरहाल में भेद तुम्हे है निकलना।
इस जन्म में कई बार लगा कि औरत होना गुनाह है... लेकिन यही गुनाह मैं फिर से करना चाहूँगी, एक शर्त के साथ कि ख़ुदा को अगले जन्म में भी, मेरे हाथ में कलम देनी होगी!
"जब जब उस नील गगन में हमारा "तिरंगा"🇮🇳शान से लहराता है, तब तब एक जोश, एक जूनून और एक सुकून हर आँखों में छाता है.... मिली आज़ादी की इस कीमत को हर भारतवासी जानता है, इस भूमि के ज़र्रे ज़र्रे में है शहीदों के लहू की खुशबू जिनके क्रांतिकारी विचार आज भी बच्चा बच्चा पहचानता है।"
वो आज़ाद थे, आज़ाद है, आज़ाद ही रहेंगे बलिदान दिया जिन्होंने माँ भारती के लिए उनकी शहादत तो भारतभूमि के कण- कण में महकेगी। #श्री चंद्रशेखर आज़ाद जी जयंती🇮🇳
स्वराज-ए-हिन्द के लिए लड़ी जिनसे लड़ाई थी भारत के पृष्ट भूमि पे भव्य तिलक की अगुवाई थी, जोश जुनून का नारा कुछ ऐसा बुंलद करा स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में लिख दी एक नई कहानी थी। #श्री बालगंगाधर तिलक जी जयंती🇮🇳