ए महादेव, कही कुछ कर न जाऊं मैं,
उस लड़की के भोलेपन पर, मर ना जाऊं मैं
हर रोज खोजती है, मिलने का बहाना..
हर रोज खोजती है, मिलने का बहाना..
मिलने पर कहती है, यहीं रुक जाओ आज घर ना जाऊं मैं..।
उससे मिलने घाट, मंदिर, पूरे बनारस भर में जाऊं मैं,
वह एक नजर देख ले, तो संवर जाऊं मैं,
चाट, पकौड़ी, छोले समोसे, कुछ खास पसंद नहीं उसे..
चाट, पकौड़ी, छोले समोसे, कुछ खास पसंद नहीं उसे..
पर मोमो ना खिलाओ, तो कहती है मर जाऊं मैं..।
घूमना बहुत पसंद है उसे, हर बार साथ जाऊं मैं,
कोई जगह ना बची अब, किधर किधर जाऊं मैं,
डरती है कोई देख ना ले, पहचान का उसे..
डरती है कोई देख ना ले, पहचान का उसे..
जाते वक्त हाथ पकड़ कर कहती है, अब घर जाऊं मैं..।
चाहूं भी अगर, तो भी दूर ना रह पाऊं मैं,
नाराज भी हो जाऊं, तो बात करने को तरस जाऊं मैं,
उससे ही होता है दिन, उससे ही होती है रात..
उससे ही होता है दिन, उससे ही होती है रात..
बिना उसके एक पल मन नहीं लगता, ए खुदा किधर जाऊं मैं..।
क्या क्या खास है, क्या क्या बताऊं मैं,
वह मुझे ऐसे समझती है, जैसे आईने में नजर आऊ मैं..
रोज जलाती है मुझे, रकीबों के नाम ले लेकर..
रोज जलाती है मुझे, रकीबों के नाम ले लेकर..
पर गुस्सा जाए, अगर उसका भी नाम जुबां पर लाऊं मैं...।।
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