Onkar Tak   (Onkar_Tak ‘देहाती’)
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Banker,
city - Jodhpur
Insta - takonkar
Joined 29 June 2019


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5 AUG AT 23:04

गरीबो के बच्चों की,
नजर भी सस्ते खिलौनों पर पड़ती है।
कोई बड़ी ख़ुशी,
उनके औक़ात के खिलौनों में मिलती है।

क्या हिसाब रखा खुदा ने,
कोई ग़रीब अमीरों के बाजार से नहीं गुजरा।
ग़रीब बच्चे की बड़ी ख़्वाहिश,
सस्ते बाज़ारों में मिलती है।

कोई ग़रीब का बच्चा,
रोता नहीं ख़ातिर खिलौनों के।
बाजार ख़रीदने का मादा रखता है उसका बाप,
उसके हर माँगी बात मिलती है।

माँ का पल्लू पकड़ कर,
पूरा बाजार घूमने को मिलती है।
बस ख़ुशी उनको,
सबसे सस्ते खिलौनों में मिलती है।

मांगने से तो जमीं आसमाँ भी कम है,
कहाँ किसी की हसरते थमती है।
पर ख़ुशियाँ भी औक़ात देख कर आती है,
उघाड़े बदन में ग़रीब जिदंगी आबाद लगती है।।


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5 AUG AT 22:46

मेरे ख्वाब अब ख्वाब से लग रहे है,
बीते पल मेरे सपने से लग रहे है।
था कोई वो नायाब शख़्स,
अब वो अनजान से लग रहे है।।

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13 MAR AT 20:54

स्नेहिल,

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1 FEB AT 16:40

“माँ का बच्चा”

मैं अधेड़ सा हूँ,
ऐसा यह जहाँ कहती है,
पर मेरी माँ आज भी मुझे,
बच्चा ही कहती है।।

मैं डांटता हूँ डपटता हूँ,
अपने बच्चो से, बचपना छोड़ने को।
और माँ मुझे रात में चदर ओढा कर कहती है,
ठीक से सोना नहीं आता, मुझे बच्चा कहती है।।

मैं गलतियाँ ढूँढता हूँ बच्चो में,
हरदम दिखावे का हौवा बनाता हूँ।
मां गलतियाँ छुपाती है मेरी,
बच्चा है, बोल कर मेरे बच्चो को समझाती है।।

मैं,मेरे बच्चे,
सब अपनी अरदास माँ से लगाते है।
माँ मेरे बच्चो के सामने,
मुझे बच्चा बोल कर मेरा पक्ष लेती है।।

फिर मैं बन जाता हूँ बच्चा,
भूलकर सब चिंताए।
वो सुख किसी में नहीं,
अगर हम जिन्दगी बच्चा बन बिताये।।

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25 JAN AT 22:25

“डूबता सूरज और मैं”

ढलती शाम में,
पूरे दिन की तपन के बाद,
थक रहे है निडाल से।
छूट रही है स्फूर्ति,
तेज, तप, ताक़त, हैं आज़ार से।

अब होना है,
शांत, शीतल,सौम्य, सरल,
की देखे कोई खुली आँखो से,
उस सूरज को,
मुझे, मेरे अन्दर के,
शांत और सरल इन्सान को ।

और मैं चाहता हूँ,
अँधेरे घेरे मुझे,
मैं अट्टहास हँसूँ,
बेअदब चिल्लाऊ,
सारे तव्वजो तज कर,
जमीं पर बैठ जाऊँ।
बस एक पल मैं ख़ुद,
मिला पाऊँ ख़ुद से ख़ुद को ।।

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21 JAN AT 19:49

कितना मुश्किल है,
ख़ुद से ख़ुद के लिये जिरह करना।
एक द्वन्ध सा है जब जवाब पता हो,
फिर भी ख़ुद से सवाल करना।

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15 JAN AT 22:26

इस साँझ,
कोई मज़दूरी से लौटा,
कोई नौकरी से लौटा,
कोई हाथ, छाले,
पैर के घाव, पसीने ख़ुश्बू
पर ख़ुशियाँ हज़ार लेके लौटा।

कोई लौटा,
लेके माथे पर शिकन,
मन की मायूसी,
मासूमियत की मौत,
और मजबूरी अपार,
पर पैसे हज़ार लेके लौटा।

लौटा है कोई,
अपने घर का बेटा,
बेटी का पिता,
अपने परिवार का चिराग बन के लौटा।

कोई लौटा है,
अभी भी नौकर बना हुआ,
अपनी नौकरी के बंधुआ बंधन लेके,
ऑफिस के अन्तहीन टारगेट लेके,
मन ऑफिस की सीट पर छोड़ कर,
फ़क़त शरीर घर लौटा।।

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15 JAN AT 22:19

मैंने देखा है दुनियाँ का हर रंग,
किसी के चहरे का, किसी के मन का रंग।
किसी के स्वार्थ के हर पल बदलते रंग,
किसी के निश्छल प्रेम के रंग।।

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11 JAN AT 22:41

रात में चमकते आसमाँ के,
तारों के बीच सितारा है वो।
घोर अंधेरी रात का,
उजाले वाला किनारा है वो।।

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13 DEC 2024 AT 23:35

जंगल में आग लगा कर,
बस्ती में शान्ति बनाये रखने को कहता है।
जल रहे उसकी आग़ोश में,
देखो वो हमे, हसरतों की बर्फ जमाने को कहता है।।

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