Omkar Patel   (ॐkar Patel)
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Joined 17 November 2017


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Joined 17 November 2017
24 JAN 2023 AT 7:37

इतिहास गवाह है कि ये दुनिया,
दुनिया जितने वालों को ही याद रखती है
युद्ध जितने वाले, हिंसा करने वाले
गला रेतने वाले, जिंदा जलाने वाले
याद रखे जाएंगे..
हमें पढ़ाया यही जाएगा
बताया भी यही जाएगा
और हमें बेखबर रखा जाएगा
प्रेम से, स्पर्श से,
चुम्बन से, आलिंगन से
लेकिन इक मैं और तुम
से सरीखे नौसिखिये लोग
बचा लेंगे 'प्रेम' को।
और यही बचे हुए 'प्रेम'
से ये पूरी दुनिया कायम है
और हमेशा कायम रहेगी।

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4 JAN 2023 AT 17:15

वैसे तो
इस पूरे ब्रम्हाण्ड में गिनती के ग्रहों में
सैकड़ों मुल्क हैं अनगिनत शहर हैं
गांव हैं, मुहल्ले हैं, गलियाँ है, मकाने हैं
पर इस पूरे ब्रम्हाण्ड के
छोटे से शहर के मुहल्ले के गलियों में
एक तुम्हारे घर के खिड़की के
खुलने के इंतेज़ार में
राह तकना ही... 'प्रेम' है।

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22 DEC 2022 AT 21:44

मैं बंधा हूँ जिस डोरी से 'ओम'
तू रेशम 'प्रेम' है बारीक प्रिये
मैं सर्द दिसम्बर की तारीख सा
तू जनवरी पहिली तारीख प्रिये।

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1 JAN 2022 AT 6:51

छोड़ो पुरानी बातों को
बातों में क्या रख्खा है
मेरे ये कुछ लफ़ज़ तुम्हें
है, बहरहाल मुबारक
बातें तो होती रहेंगी..
पहले ये नया साल मुबारक।

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1 NOV 2021 AT 13:33

धन्य हों में ए भुइँया ले
जिहां लेके मानुष जनम धरेवं
जेमें खेले कूदेंव पढ़े लिखेंव
बड़े सियान ले किस्सा सुनेवं
छोटका मनला देवं मया अउ
बड़े सियान के आशिष धरेवं
जाने ले भाखा हिंदी अंग्रेजी के
पुरखौती छत्तीसगढ़िया ल धरेवं

अपन सुघ्घर भाखा के खातिर
बस अतरी मैं हा जतन करेवं
धन्य हों में ए भुइँया ले
जिहां लेके मानुष जनम धरेवं।

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1 NOV 2021 AT 8:20

इस दीवाली इतना तो जतन हो
रौशन हो सबका घर जिनसे
उनका भी घर उतना ही रौशन हो।

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30 OCT 2021 AT 22:39

पत्थर मारे हैं लोगों ने, हाँ उसको बेहिसाब
मगर ये दरख़्त हैं कि फल देते नहीं थकते।

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30 OCT 2021 AT 22:10

करके वायदे तुम ये
सारे निभाते भी हो क्या
क्या है भी प्रेम वास्तव में
या महज जताते हो क्या
एक हम हैं जो अपना
सब कुछ मान बैठे हैं
उतना ही अपना तुम भी
हमें बताते हो क्या?

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30 OCT 2021 AT 21:57

मैं लाया था चिराग घर रौशन को
उजाले के शौक ने मगर
घर खाक कर दिया।

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20 OCT 2021 AT 22:16

बिछाकर सारे ख्वाब मैंने
बुलडोज़र चलवाएं हैं
वो कहते कि मैं खुश हूं
छिपकर आंसू बहाये हैं
हर रिश्ता नाकाम रही
जब भी आजामाएँ हैं
हारा हुआ हूँ तब तब
सौदे अपनों से लगाये हैं
जेब से पूरा खाली हूँ
कहते ईमान कमाएं हैं
तालियां बजी महफ़िलों में
किस्से जब अपने सुनाये हैं
निभने से हर रिश्ते हैं निभते
सवाल ये है कि आपने
कितने सिद्दत से निभाये हैं।

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