Om Tripathi   (ओम त्रिपाठी)
83 Followers · 13 Following

read more
Joined 1 May 2021


read more
Joined 1 May 2021
14 JAN 2022 AT 21:18

खुद पर यूं उमर का कहर देखते हैं,
हम जब तुझको एक नजर देखते हैं,

जिक्र ए हिसाब पर चुभती है सांसे,
जब कभी पुराना सफ़र देखते हैं,

समय की फिजा ने बनाया है बेदिल,
दुबारा पलटकर ना घर देखते हैं,

इस तरह लगाते मुझ पर सब परदे,
कि मालूम हो अब किधर देखते हैं,


-


10 JAN 2022 AT 11:42

आधा ही मरा पूरा कुर्बान ना हुआ,
तो मोहब्बत का मेरी ऐलान ना हुआ,

जहां ए कायदा में क्या करें जज्बों का,
ये सोचा दिल ने मगर सुनसान ना हुआ

वह अलग रहकर भी ना मुझको यूं भुला,
मैं चाह कर भी उससे अनजान ना हुआ,

हाल पता है यार सबका पर यहां ,
दिल बेताब था तो इसे इत्मीनान ना हुआ,

मैं तो बिक गया इस तरह के कर्जों में,
खुद खत्म हो गया मगर भुगतान ना हुआ,

-


9 JAN 2022 AT 21:35

दिल ए बेकरार को बदल कर नहीं देखा,
किसी ख्वाब को हमने संभल कर नहीं देखा,

हमें नहीं मालूम अंजाम किसी जिद का,
कभी किसी खातिर मचल कर नहीं देखा,

दिल ए शरीफ लेकर भी हम बदनाम हुए,
जिसे दायरा माना उस से निकल कर नहीं देखा,

कहीं मैंने अब तक दिल की बात नहीं रखी,
किया इश्क जिससे उसको जताकर नहीं देखा

-


9 JAN 2022 AT 12:15

मेरी दास्तां को महज अल्फाज बनाने से पहले,
ठहरो जरा अपना यह अंदाज बनाने से पहले,

हर बात पर मुस्कुराना यूं ही नहीं सीखा,
कई मौतें होती हैं इलाज बनाने से पहले,



-


28 DEC 2021 AT 19:17

राह ऐसी मिले गुजर जाऊं तो मैं,
कि निभ जाए ताल्लुक निखर जाऊं औ मैं ,

(Read full piece in caption)

-


25 DEC 2021 AT 11:46

माहौल मैं भी ना बना चाहता हूं,
खुद में जरा सी अना चाहता हूं,

अब तो कहीं से भी गुजरे यह गाड़ी,
मैं भी तो शौक ए फना चाहता हूं,

सबां ताजी ही मुझ को छूकर के निकले,
मैं भी नया सा समां चाहता हूं,

मेरे पैरों के नीचे से कोई धरती ना खींचे,
मैं ना किसी का आसमां चाहता हूं,

-


20 DEC 2021 AT 23:17

उसको देना रह गया एक जवाब कोई बाकी,
मुद्दतों से रह गया कि मेरा ख्वाब कोई बाकी,

तमन्ना थी एक कुछ तुमसे मिलकर कहने की,
मेरा तेरा रह गया है अबतक हिसाब कोई बाकी,

खुदा नें बख्शा है कुछ इस तरह गुरुर मुझमें,
महफिल ए साकी में हो जैसे शराब कोई बाकी,

ख्वाबों के दीदार में अब होता यूं अफसोस मुझे,
इम्तिहान से पहले रही हो जैसे किताब कोई बाकी




-


13 DEC 2021 AT 11:09

हसीन सपने देखते हैं हम जो फिर से हार कर के,
जिंदगी का यह सलीका हमको गया है मार कर के,

तुम बस्ती में अभी नए हो तन्हा नहीं हो,
छोड़ देंगे तुमको भी लोग वक्त गुजार करके..

-


11 DEC 2021 AT 20:45

कि मेरा अब अर्ज क्या है,
फैसला कर फर्ज क्या है,
बेबसी महबूब से हो,
फिर ना पूछो मर्ज क्या है,

सारे अरमानों को लेकर,
पूछती हो खर्च क्या है,
दिल मेरा रखा है गिरवी,
रब का मुझ पर कर्ज क्या है,

-


11 DEC 2021 AT 10:32

जमाने की फिक्रों में दिल खुद से बेगाना ना हो,
समझदारी की रस्मों में मेरा बेबस मर जाना ना हो,

इस डर में रहकर...मैंने ख्याल कई बदले,
कहीं मेरे ख्याल से ...अलग जमाना ना हो,



-


Fetching Om Tripathi Quotes