Om Prakash   (ओम (om_ki_syahi) ✍️)
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Joined 20 May 2019


Joined 20 May 2019
30 DEC 2023 AT 0:38

वो सर्द मौसम का सूरज,
वो पूर्णिमा की काली रात।
वो अकेलेपन का मेला,
वो दिल में दफ़्न अनकही बात।
महसूस करता हूँ, जब अकेला होता हूँ ।

वो आसुओं का करुण संगीत,
वो ख़ुद से ख़ुद की मुलाक़ात।
वो छुपे राज, वो खोये ख़्वाब
वो ठंड में होने वाली बरसात।
महसूस करता हूँ, जब अकेला होता हूँ।

ये स्याही का बेहिसाब चलना,
कोरे पन्नों का लगातार बोलना,
ये सन्नाटे का किंचित् शोर,
इच्छाओं का मन को झकझोरना।
महसूस करता हूँ, जब अकेला होता हूँ।

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5 NOV 2023 AT 11:39

दूसरों की उलझनें बख़ूबी मिटा पाता हूँ मैं,
ख़ुद को कभी सुलझा पाया ही नहीं।

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14 SEP 2023 AT 15:13

अंग्रेजी व्यापार की भाषा है ,
उर्दू प्यार की भाषा है,
हिन्दी संस्कार की भाषा है ।

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9 SEP 2023 AT 1:52

उपहार में अक्सर देखी है मैंने बेशक़ीमती घड़ियाँ ,
तसल्ली होती अगर कोई शक्स थोड़ा वक़्त दे जाता।

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13 AUG 2023 AT 22:44

बड़ी कम्बख़्त है दिल और दिमाग़ की यारी,
दोनों ने आँखों को ही मोहरा बना रखा है ।
जो आँखें खुली हो तो तलाश तुम्हारी
जो आँखें बंद हो तो ख़्वाब तुम्हारे ।

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31 JUL 2023 AT 13:02

मासिक वेतन पूरनमासी का चाँद है,
जो एक दिन दिखाई देता है,
और घटते घटते लुप्त हो जाता है ।

- मुंशी प्रेमचंद (धनपत राय श्रीवास्तव)

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27 JUL 2023 AT 20:58

यूँ तो मैं भी एक आम इंसान हूँ सबकी तरह,
पर ये जो तुम्हारी प्यारी सी आँखें हैं ना,
इन्होंने ही मुझे इतना ख़ास बना रखा है ।

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22 JUL 2023 AT 19:34

तुम यूँ ही कहती रहो,
मुझे सब सुनना पसंद है ।
तुम जो ख़ामोश हो जाओ तो,
तुम्हारे होठों की खामोशी पसंद है ।
और वो जो पलकें उठा के, नज़रें चुरा के,
निहारती हो, वो नाज़ुक सी निगाहें पसंद है ।
पर बात पसंद की नहीं, यहाँ मसला दिल का है,
जो पसंद आ जाये वो दिल को कहाँ मिलता है ।

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10 JUL 2023 AT 15:34

यूँ तो मुझे पसंद नहीं आता ज़्यादा मीठा
पर काजू कतली और तुम इसके अपवाद हैं ।

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1 JUL 2023 AT 22:04

एक तो ये साड़ी कमाल, और उस साड़ी में तुम।
जैसे हो कृष्ण की बाँसुरी और उसमे राधा तुम।
अविरल निहारूँ तुम्हें या निकालूँ कोई तस्वीर तुम्हारी
जैसे बिखरी हो किरणें बारिश में और इंद्रधनुष हो तुम।

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