तीसरा तारा
--------------
बादलों वाली उस रात में,
जब ठंडी हवा चल रही थी,
चाँद नहीं दिख रहा था, लेकिन
दिख रहे थे दो तारे,
टिमटिमाते हुए, अपनी जगह पर बने हुए,
मैं तलाश में था 'तीसरे तारे' का,
जो सैकड़ो कोशिशों के बाद भी,
कहीं दिख नहीं रहा था,
तभी हवा के एक झोंका चला,
और मुझे दिखा 'तीसरा तारा',
बादलों के पीछे टिमटिमाता हुआ।-
Poetry🖊️
Music🎶
&
Chai☕
काँप जाती है रूह मेरी,
बेतहाशा कोशिशों के बाद भी,
न जाने क्यों ना हुई तू मेरी।-
हम दोनों एक ही क्लास रूम में एक ही बेंच पर एक साथ बैठे हुए थे, उसने मुझे अचानक कहा,
“मैं तुम जैसा बनना चाहती हूँ, बिलकुल तुम्हारी तरह मुस्कुराना चाहती हूँ, जितना तुम मुस्कुराते हो,मैं तुम जैसा रोना चाहती हूँ, तुम जैसा सोचते हो,तुम जैसा लिखते हो वैसा ही लिखना चाहती हूँ, मैं तुम जैसा दिखना चाहती हूँ,तुम जैसा होना चाहती हूँ,मैं तुम हो जाना चाहती हूँ।”
मैंने मुस्कुराते हुए उसकी आंखों में देखा और उसका हाथ अपने हाथ में ले लिया, बिना इस बात की परवाह किए की कौन हमे देख रहा है और कौन नहीं।
(एक सपने से...)-
कितना सुखद है,उसे रोते हुए देखना,
जब वो पूरी ईमानदारी से रो रही हो,
आशा लगाए हो कि मैं उसका रुमाल बनूँगा,
लेकिन मैं उसके सामने बैठा,
पूरी तन्मयता से देख रहा हूँ उसे,
उसके आंसुओं को,
उसकी भींगी पलको को,
धीमे-धीमे सरकते उसके आंसुओं में,
वही शांति,वही सन्नाटा है जो
शहर से दूर किसी गाँव में होता है,
कोई इतनी तल्लीनता,इतनी ईमानदारी से
कैसे रो सकता है?
क्या मैं भी यही चाहता हूँ?
इसी तल्लीनता से रोना या
तुम्हे ऐसे रोते हुए देखना?-
तुम्हे देखकर, तुम्हारी आवाज़ सुनकर,
तुम्हारी आंखों में देर तक खुद को देख कर,
तुम्हारी सांसो में खुद का नाम सुनकर,
तुम्हारी बेफ़िज़ूल बातें सुनकर,
तुम्हारे किस्से सुनकर,जिनके पात्रों को मैं जानता तक नहीं।-
शरीर लिए शीशे का,
वो आ गया पथरदिलों के शहर में,
चटका थोड़ा बहुत,
धसे कंकण पैरों में,
वो चला टूटने के थोड़ा पहले तक,
धसे कुछ और पत्थर शरीर पर,
दिखे कुछ पत्थर के शरीर,
आधे शरीर शीशे के लिए हुए,
बस गाया वो शीशा,
पत्थर बनते-बनते।
-
वो हारा लोगों से,
वो हारा इमारतों से,
वो हारा दुनिया से,
फाटे कपड़े, नंगे पैर,
आया सड़क पर,
लोग उसे ‘भिकारी’ कह रहे हैं।-
हस के कह दिया अलविदा उसने,
ग़र 'मैं' होती तो अलविदा ना कह पाती।-