OJASWI SHARMA   (@Shayaribegum✍)
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Joined 10 August 2020


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Joined 10 August 2020
28 DEC 2021 AT 10:42

इस तरह दुनिया के सांचे में ढलते गए,
उम्र बढ़ती गई और हम लिबास बदलते गए।

वहीं कागज, कलम और जज्बात रहे लोगों के साथ,
लफ्ज़ों के कारोबार जहां में सदियों तक चलते गए।

मां को फंसाती रही दूसरे घर जाने की रियायतें,
रसोई में हाथ किसी मासूम बेटी के जलते गए।

वो हर सुबह का जोश, वह हर शाम की मायूसी,
हर रात बिस्तर पर कुछ ख्याल बेवजह मचलते गए।

कच्ची उम्र में नहीं बनते यूं ही पके लफ्ज़ गम के,
सुबह-शाम दिल को हम खौलते तेल में तलते गए।

बचपन की आदत है मेरी बुराई के सांप पालने की,
पर मुझ में यह अच्छाई की नेवले कैसे पलते गए।।

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22 NOV 2020 AT 11:04

काश! मेरा बचपन वापिस आ जाए....

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31 DEC 2021 AT 16:51

निकाह के बाद गैरों से गुफ्तगू की आजादी कहां,
दिल का दर्द, मोहब्बत की रिवायतें बदलनी चाहिए।

मेरी हजारों गजलें, नगमें, नज्में सब बेकार है,
मुद्दा है कि असरारो से लैला बहलनी चाहिए।

वह मोहब्बत ही क्या जो आसानी से हासिल हो जाए,
मेरे महबूब की काबिलियत से पूरी दुनिया जलनी चाहिए।

अलग लिबास, अलग सोच, अलग जुबान यहां नहीं चलेगी,
यहां जीने के लिए दुनिया के सांचे में शख्सियत ढलनी चाहिए।

लफ्ज़ों की तिजारत से बेहतर तो कुछ आता नहीं मुझको,
इस बड़े शहर में जिंदा रहना है तो कलम चलनी चाहिए।

सियासत के लिए दंगे करवाने वाले तो होते ही नहीं इंसान,
मजहब हो कोई भी, जात हो कोई भी इंसानियत संभलनी चाहिए।

लड़कों की रात भी अपनी, लड़कियों की हदें हैं सिर्फ शाम तक,
अब घर से बाहर ये आफताब के बाद निकलनी चाहिए।

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1 DEC 2021 AT 16:27

ख़फ़ा हो किसी से अगर तो नाराज़गी को जताया करो।
दमदार दुआएँ पाने के लिए, बुजुर्गों के आगे सिर झुकाया करो।

कोशिश करने वाले अक्सर आगे होते हैं क़ाबिल लोगों से,
निशान बनाने हैं जो ख़ुद के, पहले कदम बढ़ाया करो।

जब निकलो मंज़िल की ख़ातिर कुछ पत्थर ख़ुद हटाया करो।
किसी से राह पूछा करो , किसी को रास्ता बताया करो।

कुछ लोग घर में दाखिल होते ही मुफ्त मशवरे देते हैं,
लड़की बड़ी हो गई है आपकी, इससे घर का काम करवाया करो।

जो सोचते हैं होता है आसान मामूली ज़ख्मों से ग़ज़ल बनाना,
ये मामूली ज़ख्म पाने के लिए पलकों से मिर्ची उठाया करो।

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6 NOV 2021 AT 18:15

गुजारिश-ए-गुफ़्तगू का गुनाह करके...
बैठे हैं तेरे इश्क़ में ख़ुद को तबाह करके।
तुझे अपनी हर साँस की वज़ह करके,
खता हुई हमसे दिल की बात बया करके।

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6 NOV 2021 AT 17:59

एक बार तव्वजो माँग कर...
हजारों तवक्को लगा बैठते हैं,
इश्क़ में अक्सर नाकामयाब होते हैं वो,
जो अपनी हदें भूला बैठते हैं।

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23 OCT 2021 AT 14:44

हमारी नहीं तो ख़ुद की बात का तो मान रखा कीजिए,
झूठ बोले... तो क्या बोला? यह याद भी रखा कीजिए।

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23 OCT 2021 AT 14:16

शायद यह भी एक वजह है लड़कियों के ज़्यादा बोलने की...
यह दुनिया बाकियों को खामोश देखकर कमजोर समझती है,
और उन्हें कमजोर समझकर खामोश करा दिया जाता है।

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22 OCT 2021 AT 16:27

एक तसव्वुर कामयाबी का हम अपनी आँखों में बसाए बैठे हैं..
तब से लोग बिना वज़ह अपने दिलों में आग लगाए बैठे हैं।
मेरे लिखने के हुनर ने तवज्जो की तलबगार बनाया है मुझे...
और वो ख़ुद को उठाने की नहीं, मुझे गिराने की तलब लगाये बैठे है।

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22 OCT 2021 AT 16:03

बेशक रूबरू होगे तुम भी मोहब्बत की बरसातों से,
मैंने भी एक समुंदर बनाया है अपनी आंखों में ज़ख्म-ए-हालातों से।

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