जलती है रेजा़-रेजा़ फिर भी खाक नहीं करती
ये मोहब्बत की लौ क्यूं मुझको राख नहीं करती
माना मुश्किल है कि कोई मोहब्बत में आबाद रहे
ये भी सच है कि यह एकदम बर्बाद नहीं करती
रहम है तन्हाई बनी है मुख्लिस नाज़ुक हालातों में
यूं तो रुह की रेहलत में परछाई भी साथ नहीं करती
किसीकी नवाजिश का अब कोई ख़्वाब नहीं मुझको
ये सांसें अब कोई सुगबुगाहट कोई आवाज़ नहीं करती
ऐ जिंदगी सीख चुका हूं मैं मर-मर के जीने का हुनर
तेरी कोई अदा मुझमें में अब जिंदा ख्वाब नहीं करती
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