Nripendra Kumar Niraj   (Nripendra Kumar Niraj)
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Joined 8 May 2020


Joined 8 May 2020
13 AUG AT 0:43

कि वाजिब है
मेरे एक नए मैं की तलाश,
पुराने मैं से
मैं खुद ही ऊब चुका ....

नृपेन्द्र कुमार नीरज

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13 AUG AT 0:27

कि तुम अलग नहीं
जो करने की कोशिश में हो
कुछ अलग ......


नृपेन्द्र कुमार नीरज

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8 AUG AT 17:45

बारिश की बूंदे
अमृत सी
जब मकान पक्के हों
और उन्हें भीतर आने को
इजाजत चाहिए
करीने से सजी
घर की खिड़कियों से...

बारिश की बूंदे
विष ही तो हैं
जब कच्चे मकान
का छप्पड़
रोक न पाए इन्हें,
टिप- टिप कर
खराब करने लगे
हर उस सामान को
जिन्हें खरीदने को
संजोए गए थे पैसे....

नृपेन्द्र कुमार नीरज

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23 JUL AT 0:27

शब्दों की माला में
भावकुसुम सजाता हूं,
हे अग्रज !
उन्हें मैं आपको पहनाता हूं,
बच्चों की आंखों में
छवि जो है आपने बनाई,
विरले ही हो पाती है,
किसी शिक्षक की ऐसी कमाई,
सुनियोजित कार्य शैली
इनका ये अनुशासित जीवन ,
ज्ञान कुसुम है खिला रहा
जहाँ पटल था पहले निर्जन,
चोटिल की जो आपने
शिक्षा के अशुद्ध व्यापार को,
भूलेगा नहीं कभी
ये समाज आपके आभार को ,
भूलेगा नहीं कभी
ये समाज आपके आभार को ......

नृपेन्द्र कुमार नीरज

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23 JUL AT 0:21

शब्दों की माला में
भावकुसुम सजाता हूं,
हे मेरे अग्रज !
उन्हें मैं आपको पहनाता हूं,
शिक्षा के संसार में
योग तो हर शिक्षक करते हैं,
गुणन किया है आपने,
ये तो हर शिक्षक कहते हैं,
सरल हृदय ,
वाणी कठोर थोड़ी,
हितैषी ऐसे कि
खली नहीं
मेरे अपनों से दूरी,
पहला घर इनका विद्यालय
दूजा अपना परिवार,
कर्तव्यपथ पर हैं अडिग
जानता है सारा संसार,
इनका खुद का सपना है
सफल तुम्हारा सपना हो,
गर्व करे तुम पर हर कोई
गैर हो
या कोई अपना हो,
बदला कर्तव्य क्षेत्र है,
कार्य क्षमता और उत्साह वहीं,
जगह नई
बच्चे नए
बोयेंगे उनकी पहचान नई...
हां! बोयेंगे उनकी पहचान नई ....

नृपेन्द्र कुमार नीरज

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11 JUL AT 23:30

अच्छा !
मुझे खुद को
हर किसी को
समझाना होगा ?

सही- गलत की
पहचान सबको,
पर हमेशा
हर जगह
खुद को सही
जताना होगा ?

झूठ के पुलिंदे
सच के लिबास में हैं सबके,
मेरे सच को भी
सच का ही लिबास
सच में दिलाना होगा ?

अरे ! छोड़ो ,
इतना क्या ही पूछना ,
बस इतना बता दो
बिना नकाब के घूमना
गर है गुनाह,
तो मुखौटे कितने
इस चेहरे को लगाना होगा ?

नृपेन्द्र कुमार नीरज




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2 JUN AT 11:52

और मैं चुप रहने लगा,
खुद की भावनाओं को
समझाने से ज्यादा ,
औरों की ही समझने लगा,
और मैं चुप रहने लगा ....

कि बोल कर दुख अपना
सहानुभूति नहीं
साथ पाना बड़ी बात है,
खुशकिस्मत हैं वो
जिन्हें मिल जाता
उनके अपनों का हाथ है,
मेरे अपनों के लिए
छांव बन पाऊं जो
धूप में मैं रहने लगा ,
और मैं चुप रहने लगा ....

नृपेन्द्र कुमार नीरज

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29 MAY AT 22:26

ख्वाहिशें मेरी,
उनका बोझ भी मेरा,
क्यों कोई और सहे?

सपने मेरे,
मेरी आंखों के अलावा
क्यों कहीं और रहे ?

हम अक्सर
कोसते हैं अपनों को
साथ न दे पाने के कारण,
सफर मेरा,
धूप हिस्से की मेरी
क्यों कोई और सहे ?
नृपेन्द्र कुमार नीरज


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10 MAY AT 8:45

कभी - कभी
रास्ते के अंतिम छोड़ पर
नए रास्ते मुड़ते हैं,
जो अक्सर
दिखाई नहीं देते ,
सबकुछ खत्म होते दिखने में
और सब कुछ खत्म हो जाने के बीच
तुम्हारा हौसला , तुम्हारा धैर्य
थोड़ा कुछ खोकर
बहुत कुछ बचा लेता है ...
मैं नहीं कहता
ये आसान है ,
न !
ये मुश्किल ही नहीं
बहुत मुश्किल है,
पर तुम्हारे पास
कोई विकल्प नहीं,
नदी में कूदने के बाद
अब तैरना सीखना ही होगा ,
धाराओं में कभी बहकर
तो कभी धाराओं के विरोध में .....

नृपेन्द्र कुमार नीरज

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7 MAY AT 22:02

मेरे अपनों के हक में
पूरा का पूरा मैं,
और मेरे हक में
बचा हुआ थोड़ा-सा मैं ....

नृपेन्द्र कुमार नीरज

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