दुनिया मे हर एक के पास दोस्तों का साथ हो...
और सुदामा- कर्ण जैसा यार हो तो क्या बात हो!
हर जगह आपके साथ, हार तय हो
फिरभी आपके साथ हो, #प्रथम जैसा यार हो तो क्या बात हो...!
वो अपने लक्ष्य में अकेले न चले, आप साथ हो,
उसके हर ड्रीम में आप साथ हो, #विनय जैसा यार हो तो क्या बात हो...!
वो थोड़ा पगला हो, सोचता आपको बच्चा हो...
पर आपसे हमेशा सच्चा हो, #शुभम जैसा यार हो तो क्या बात हो...!
वो आपके टांगें खीचें, लगे रहे आपके आगे पीछे,
हरदम आपके साथ हो, #सहर्ष-हर्ष साथ हो तो क्या बात हो!
वो हर हालात में साथ हो, हर समय आपके साथ हो
मुश्किलों में साथ हो, #अभय जैसा यार हो तो क्या बात हो!
पढ़ाई में कोसों आगे हो, दोस्ती के मज़बूत धागें हो...!
हर प्रश्न का जिनके पास जवाब हो, #सुमित-रेशम जैसे यार हो तो क्या बात हो!
ये भाग्य हो या सौभाग्य हो... #आशीष-प्रदीप साथ हो,
#सुमेध-विकास जैसे रत्न मिले तो क्या बात हो!
दोस्ती का क्या हाल हो... जब #जयकिशन ही मेरे यार हो!-
अपने गुणों के नहीं, मेरे दोषों के ज्ञाता बनाना चाहते है...!
स्वयं के नही, मेरे भाग्यविधाता बनाना चाहते है..!-
ये प्रकृति उजड़ा उजड़ा लग रहा है क्यूं?
ये आधुनिकता की तरफ मनुष्य जा रहा है क्यूं?
ये मनुष्य अपने आप से खेल रहा है क्यूं...?
ये विकास के पथ पर अंधा हो गया है क्यूं...?
मनुष्य बढ़ रहा है आगे या पीछे जा रहा है...?
यू मनुष्य अपना भविष्य बिगाड़ रहा है..!
मनुष्य धकेल रहा है पीछे अपने आप को!!
मनुष्य प्रकृति को नहीं, बर्बाद कर रहा है अपने आपको!!
मनुष्य की मनुष्यता दिख रही है कहां?
मनुष्य कर रहा खिलवाड़ हर जगह देखो जहां!!
हे मनुष्य वक्त है अभी भी...
संभल जा थाम ले अंधे विकास को अभी भी...!
ना कर विकास तू अपने आप की...!!
जरा करके देख विकास पृथ्वी की भी...!
मिलेगा सुकून तुमको बहुत सा...
जब बढ़ेंगें पृथ्वी पर सब एक साथ!!
बस थाम ले अपनी बिगड़ती कर्मों को...
बस लगा दे मरहम पृथ्वी के जख्मों को...!!
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लगा दिया एक और तमगा मेरे पे,
बता दिया एक और कमी मेरे में!
इतनी आसानी से बोल दिया तुम ये हो,
जरा सोचा भी नहीं और कहा तुम ये हो!!
वो बात बोला, जो कभी न चाहता हूं वो खुद मेरे में
वो बात बोला, हां, तू है, है और भी बहुत कुछ तेरे में
अभी तक यह ही सोच रहा कि,
आखिर कैसे इतना कुछ सोच लिया उसने...?
जो कभी हो नहीं सकता मेरे में..
वो कैसे बोल दिया है तेरे में?
तू ये है, तू वो है, तुझमें बहुत कमी है...
और जबसे सुना ये बात मैंने, तबसे आंखों में नमी है
फ़ालतू की बातों की चक्कर में इतना कुछ हो गया,
और उसके दिल की बात आज जुबां पर आ गया।
हूं उससे दुखी मै..
और उससे ज्यादा खुद से!
और सोच रहा हूं कि आखिर..
उसने इतना कुछ सोचा कैसे?!?-
मित्र, दोस्त, भाई, सखा, बंधु!
तुमको मैं क्या क्या कहूं?
जब भी पड़ा है जरूरत मुझको...
देखा खड़ा पाया है तू तुझको।
छोड़ दिया जब सब ने मुश्किल राह में,
तब तुमने लाया जिंदगी की सच्ची राह में।
ए दोस्त तूने मुझको बहुत कुछ सिखाया...
तेरे साथ अब तक मैंने बहुत कुछ पाया!!
सच्ची दोस्ती को वक्त परखता है...
वक्त की हर परीक्षा पर तू खरा उतरता है!
तू खुद से ज्यादा मेरी परवाह करता है...
इसीलिए तू मेरा दोस्त सच्चा कहलाता है!
मैं हर बार ये दुआ करूं,
तेरे जैसा दोस्त हर बार खड़ा पाऊं।
इस दोस्ती को सलाम करूं!
और तेरा शुक्रिया करूं! और,
तो सबसे आगे रहे ये दिल से दुआ करूं।-
यूं तो लोग उसको केवल शिक्षक कहते है...
पर ना जाने हमारे शिक्षक कितना कुछ सहते है।
यूँ आसान नही होता, जितना लोग समझते है...
कुछ तो उस शिक्षक को भगवान समझते है।
एक बच्चे को समझाना, उसको सही राह पर लाना,
कुछ की बातें सुनना, कुछ को उनकी मन्ज़िल दिलवाना...
बच्चे की हरेक बात सुलझाना बगैर खोये आपा...
उसकी हर मुश्किल आसाँ करना बगैर खोये आपा।
बगैर खोये आपा, वो कितनो को बतलाते...
बच्चों को समझाते, उनको सुमार्ग दिखलाते।
कुछ कहते है शिक्षक को प्रोन्नति नही मिलती,
लेकिन हर बार शिक्षक सफल होता है...
जब उसका शिष्य कुछ अच्छा कर पाता है...
जब वो अपनी चुनी मन्ज़िल पा जाता है।
वो अपने शिष्य से ज़्यादा उसकी तरक्की के बारे में सोचता है, वो हर बार कुछ नया खोजता है।
यूँ तो जिसने मुझे शब्द सिखाया, उसको वाक्यों में कैसे कहूँ?, बस उस गुरु की बातों को याद कर उसको प्रणाम करूं।-
क्यों जो सोचता हूँ, वो होता नहीं,
हमेशा ज़िन्दगी देती वहीं, जो उसको लगता सही।
सोची ख्वाहिशें बस कल्पना रह जाती है,
और ज़िन्दगी अपनी कहानी कह जाती है।
सोचता था ये करूँगा और ऐसे करूँगा,
बस हमेशा पाता, सोचा हुआ कर पाता नही।
जो सपनें सोचता हूँ, ज़िन्दगी केवल सोचने देती,
ज़िन्दगी हमेशा सोचे हुए को शुरू होने ही नही देती।
अभी भी दिल में है ख्वाहिशें कई,
बस अब ए ज़िन्दगी मेरा भी कुछ पूरा कर तो सही।
पर इंसान के ख्वाइशों का अंत कहाँ?शायद
इसीलिए ज़िन्दगी भेजती वही, उसे अच्छा लगता जहाँ!
चलो सोचा है बड़ा मुकाम पाऊंगा...
और मंज़िलों को पकड़ पाऊंगा।
देखते है ये सोच कहाँ तक जायेगी!!
और क्या ज़िन्दगी इसे दे पाएगी?!?!-
अब ज़िन्दगी ही बता पाएगी...
अब वो ही समझा पाएगी...
क्या मैं करूँ और कैसे करूँ?
किसके मुताबिक कैसे करूँ?
अब ज़िन्दगी ही बता पाएगी...
अब वो ही सही राह दिखाएगी...
सपनें बहुत हैं, और रास्ते कई,
किस रास्ते पे चलूँ, है कौनसा सही?
अब ज़िन्दगी ही बता पाएगी...
अब वो ही उलझन सुलझाएगी।
मैं अपनी सुनो या अपनों की?
अब ये ज़िन्दगी ही बता पाएगी।
ए ज़िन्दगी! तू ही कुछ बता?
बता कहाँ है सही कहाँ खता?
बस ऐसे ही बढ़ता चलूँ?
या सबकी सुनकर बढ़ूँ?
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माँ के बारे में क्या लिखूँ...?
जिसने खुद मुझको लिखा है...!
उस माँ के बारे में क्या लिखूँ...?
जिसने खुद मुझको बहुत कुछ सिखाया है...!
बस चंद शब्द कह देने से...
उसकी बात तो पूरी हो नही सकती।
बस कुछ पंक्तियों के लिख देने से...
उसका वर्णन हो नही सकता।
सोच रहा हूँ किस शब्द से उसको सुशोभित करूं...
खुद अपनी शोभा को कैसे सुशोभित करूं...?
अभी भी पूरी दुनिया खोज रही है शब्द जिसके लिए
उस माँ को मैं कैसे सुशोभित करूं?
ऐसा क्या काम करूं, दुनिया हर दिन मातृ दिवस मनाये
सोचता हूँ माँ की हर फरियाद पूरी करूँ।
लेकिन ये जन्म कम पड़ जायेगा उसके लिए...
फिर भी सोचता हूँ ये जन्म उसके नाम करूँ!!
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खुद से होकर अलग, लड़ रहा हूँ खुदसे जंग...
कब तक रहूँगा रण में, यही सोच रहा हूँ मैं।
मंज़िलें कई है, ख्वाब देखे कई है...
कर सकूंगा मैं पूरा कभी, यही सोच रहा हूँ मैं।
सबसे आगे रहना है, सबसे तेज़ बढ़ना है...
दौड़ सकूँगा मैं कभी, यही सोच रहा हूँ मैं।
आसमाँ को छूना है, ये विश्वास पूरा है...
छू पाऊंगा मैं कभी, यही सोच रहा हूँ मैं।
सबके साथ रहना है, सबका साथ देना है...
साथ रहेंगे सब कभी, यही सोच रहा हूँ मैं।
बस एक बात जानता हूँ, कर सकूंगा मैं कभी...
कोशिश हमेशा जारी है, जो चाहता मैं,
सब कुछ हासिल कर सकूंगा मैं कभी।।
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