कुछ लोगों नें,
कुछ लोगों की ख़ामोशी को,
नाम दे दिया "घमंड"
पर वो कुछ लोग,
कुछ लोगों की,
नहीं समझ पाएं ख़ामोशी,
नहीं समझ पाएं
ख़ामोशी की वज़ह,
उन्होंने नहीं की
जानने की कोशिश,
नहीं समझ पाएं
दिल मे भरा दर्द,
नहीं समझ पाएं
उनकी परिपक्वता,,
उनका बहिर्मूखी सें
अंतर्मूखी होना,
दर्शाता हैँ,,
हृदय पर लगी हैँ
गहरी चोट,
जिससे व्यक्ति क़े अल्हड़पन
में आया हैँ बदलाव,
वह अब हों चूका हैँ अतिविचारक,
परिपक्वता चढ़ रही हैँ परवान,
व्यक्तित्व हों रहा हैँ गंभीर,
इसी गंभीरता सें होता है
समझदारी का आगमन,,
समझदार व्यक्तित्व,,
जीवन जीने का विरला ढंग हैँ,,
फिर उसी में जीवन का रंग हैँ!!
©देवेंद्र सोलंकी
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हमारे जीस्त में देखों सब भरा भरा सा लगता हैं,
उफ़्फ़ मेरा खालीपन इसमें भी सब हरा सा लगता हैं!!
ज़ख्म, कोफ्त, दर्द की बात ना करो तों बेहतर हैं,
मेरे जख्मो पर हैं जादू मानिंद सोना खरा सा लगता हैं,
छोड़ो अब जाने भी दो पुरानी बातो कों अदीब,,,
मेरा दिल अफसाने अल्फ़ाजो का धरा सा लगता हैं,,
वो आएं, रुके, देखें और चले गए अपने शहर कों,,
वो शख्स भी लाश की मानिंद मरा सा लगता हैं,
फर्क किसे पड़ता हैं गैरों की कानाफुसी सें देव,
कोई अपना करें अस्काम तों घाव जरा सा लगता हैं,,
मेरे खालीपन नें भी इतना भरा हैं मुझकों आलिम,
कि अब मेरा खालीपन भी भरा भरा सा लगता हैं!!
©देवेंद्र सोलंकी-
जिंदगी ने मुझें मेरी कई दफा तोडा हैं,,
क्योंकि मैंने हर रिश्ते कों वफ़ा सें जोड़ा हैं!!
हाँ इंसान हुँ इसलिए दर्द तों होगा ही,,
मेरा दिल कौनसा लोहे का हथौडा हैं?
हाँ जाने-आने वालों क़ी बंदिशे खत्म कर दी अब,,
मैंने अपने खास लोगों कों भी हँसते हुए छोड़ा हैं!!
नहीं चाहिए अब आपकी तवज्जो, वफ़ा और प्यार,,
हमने अब अपना रास्ता खूद क़े लिए भी मोडा हैं!!
जिंदगी तु कोशिश तों बहुत करती हैं मुझें गिराने क़ी
पर मैंने भी तुझको किसी हाथ क़ी तरह मरोड़ा हैं!!
©देवेंद्र कुमार सोलंकी-
ईश्वर की सर्वोत्कृष्ट कृति,
सृष्टि का उद्गम स्रोत,
जीवन रूपी द्विपादचक्रवाहिनी का एक मजबुत पहिया,
ममता, करुणा और वात्सल्य की प्रतिमूर्ति,
त्याग और बलिदान की अधिष्ठात्री,
सौम्यता एवं शीलता का अध्याय,
प्रेम एवं समर्पण का पर्याय,
जैसी संज्ञाओ और अलंकार से सुशोभित सम्पुर्ण नारी शक्ति को अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस २०२२ के पावन अवसर पर नमन एवं शुभकामनाएं 😊🌟✨🙏।।
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जो किताबों में मशगूल रहते है जमाने में,
उन्हें फिर फरवरी,जनवरी कुछ नही दिखता!!
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वैसे तो ऐ जिंदगी,तुझमें फरेब है,उदासी है,रूसवाई है
पर हमने भी हर बार मुस्कुरा कर तेरी आबरू बचाई है।
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शब-ए-गम को जब भी आश्कारा किया है,
हमने मुस्कराहट-ए-दिल का सहारा लिया है!!
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तन्हाई, रुहाई,कहानी ने फिर से मन को छुआ है
आज फिर अच्छाई का तोहफा मुक्कमल हुआ है!!
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इन 20 बर्षो में मैंने यह देखा,यह सीखा,यह किया......
1.ज्यादा शादियों में शामिल नही होना चाहिए।।
2.लोगो की बातों को दिल पर नही लेना चाहिए,,
3 खुद को सिर्फ किताबी कीड़ा बनाने की बजाय रुचिनुसार
फील्ड में जाकर अपने बुद्धि का,विवेक का सकारात्मक उपयोग लेना चाहिए,,
4...भीड़ एक वक्त तक ठीक है,,अकेले चलने का साहस भी होना चाहिए!!
5.सोशल मीडिया का उपयोग खुद को बढ़ा चढ़ा और दिखावा प्रवृत्ति के लिए नही करना चाहिए,,
6.लोगो से सही सलाह जरूर ले मगर उसका इस्तेमाल स्वविवेक से करें,,
7.गलतियां करके पछतावा करने की बजाय उन्हें सुधारे,,
8..खुद से कमिटमेंट जरूर करें
9.खुद को ज्यादा होशियार न समझें,, लोग हमसे भी होशियार है जहाँ में,,
10.मस्ती से रहिए,,जिसने भी दिल दुखाया हो उसे माफ कीजिए और सुकून से रहिए,,
11.हर किसी के लिए उपलब्ध ना रहें,, दुनिया शोषण करनेम में कम नही है,,
12.कम बोलिए...पर प्रेक्षण ज्यादा कीजिए
13..साहित्य को निखारिए
14 पिता के धन-दौलत औऱ रुतबे पर इठलाने और घमंड करने की बजाय खुद को काम पर लगाइए.मेहनत कीजिए,सँघर्ष कीजिए....ये चीजें आपके पिता के रुतबे में और वृद्धि करता है
15.अंतिम लोग जैसा हमारे साथ करते है कोशिश करे वैसे उनके साथ ना करे...हम भी अलग वजूद से नवाजे गए है,,सुकून मिलेगा!!😊😊😊
Imprimise(experience)-देवानन्द बाबा!!-
टूट रहा परिवार बचाया जा सकता है,,
भाई-भाई को समझाया जा सकता है,,
अगर तीसरा न हो इस कश्मकश में,,
खाना साथ बैठकर खाया जा सकता है!!-