जब तक अपनों के लिए जिएंगे
आप परेशान और दुःखी रहेंगे
परन्तु
अपने लिए या दूसरों के भले के लिए जिएंगे
आप शांत, स्थिर और खुश रहेंगे ।
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रिश्ता (संबंध) जब
मन से ना होकर
तन (सुंदरता) या धन (पैसे) से होता है,
तब समय के साथ, उसमें
सिर्फ़ और सिर्फ़ अफ़सोस
रह जाता है ।
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(कर्ण की कहानी, राधे की जुबानी By Abhi Munde)
साम दाम दंड भेद सूत्र तेरे नाम का
गंगा माँ का लाडला तू खामखां बदनाम था
कौरवो से हो के भी कोई कर्ण को ना भूलेगा
जाना जिसने तेरा दुख वो कर्ण कर्ण बोलेगा
भास्कर पिता तेरे ,हर किरण तेरा स्वर्ण है
वन में अशोक तू ,बाकी तो खाली पर्ण है
कुरुक्षेत्र की उस मिट्टी में,तेरा भी लहू जीर्ण है
देखो छानके उस मिट्टी को कण कण में कर्ण है-
अपको मेरे पास आने के लिये
किसी पंडित की आवशकता नहीं,
मेरे दर्शन के लिये किसी मूर्ति की जरूरत नहीं,
मेरी नज़र में आने के लिये
तम्हें अपने शरीर की जरुरत नहीं,
आध्यात्मिक चिंतन करें और
शांत मन से इस प्रकृति की देखभाल करें
फिर आप मेरे नहीं, मैं आपका हो जाऊँगा-
जब कमरे की बन्द पड़ी दीवार घड़ी को देखा
मन किया, आज इसका सैल बदल ही देता हूँ
पर जब अन्धी दौड़ में लगा अपना जीवन देखा
तो मन का ये ख्याल तुरंत टाल दिया ।
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हमारे पास
आपके पास जैसा
कुछ नहीं
फिर भी ऐसा
कुछ है
जिससे हम
ख़ुशी से झूमते हैं-
अगर सच में अपको जीवन में
ख़ुश रहने की वजह नहीं मिल रही
तो किसी रोते हुए को अपना कांधा
दीजिये और फिर देखिये
आपकी खु:शी का ठिकाना ना होगा
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आग भी जरूरी है, आस भी जरूरी है
हर व्यक्ति की कामयाबी में, दूसरा भी जरूरी है
गर होने लगे घमंड थोड़ा भी, तो एक हार भी जरूरी है
होनहारों की इस दुनिया में, पागल बनकर जीना भी जरूरी है
रोते हो बहुत खोते हो, थोड़ा रुकना भी जरूरी है
जीवन से जारी इस युद्ध में, सिर्फ़ आप ही जरूरी हैं
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बात करता हूँ तेरी, पर बताता मैं नहीं
याद करता हूँ दिन-रात, पर ये कहता मैं नहीं
प्यार करता हूँ बहुत, पर जताता मैं नहीं
सोचता हूँ तेरा हो जाऊं, पर हमारे मानें ये आसान नहीं
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नमामि: शमिशान निर्वाण रुपम I
विभुं वियापकम ब्रह्मवेदा स्वरूपं II
निराकार ओंकार मूलम तुइरीयं I
गिराज्ञान गोतित तमिशं गिरिशं II
करालं महाकाल कालम कृपालं I
गुणागार संसार पालम नतोयम II
(Om Namah Shivaye)-