Noopur Pathak   (Noopur Pathak)
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Poet by heart.
Joined 9 April 2018


Poet by heart.
Joined 9 April 2018
24 FEB 2020 AT 21:09

मुझे ‘मैं’ रहने दो!

छिन रहीं हूँ खुद से,
हर रोज़,
थोड़ा-थोड़ा..

वो जो कड़ाही की सिकी हुई..
खुरचन होती है न?
उस ही की तरह।

किसी को उस खुरचन की चाह नहीं,
किसी को उसके सिके हुए नमकीन स्वाद की खबर नहीं।
फिक्र है तो बस इस बात की,
कि कहीं ये खुरचन कड़ाही में चिपकी न रह जाए..
चमचों और चाकुओं की मार से,
वो खुरचन..
कड़ाही का साथ छोड़ ही देती है।

बची-कुची कसर तो,
विम बार से घिस-घिस कर,
वो काम वाली बाई भी कर देती है;
जिसे ये तक नहीं पता,
कि खुरचन है किसकी।

मुझे ‘मैं’ रहने दो!

छिन रहीं हूँ खुद से,
हर रोज़,
थोड़ा-थोड़ा...

वो जो कड़ाही की सिकी हुई..
खुरचन होती है न?
उस ही की तरह।

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14 AUG 2019 AT 15:47

तुम हो कहीं...

मेरी निराशाओं में छिपी इक आस की तरह;
दुनिया की भीड़ में इक खास की तरह;
बचपन की शैतानियों में यूं नादान की तरह;
अंधेरे कमरे में रोशनदान की तरह;
मेरी खामोश निगाहों की ज़ुबान की तरह;
हर भोर की उस अज़ान की तरह;
मेरी कविताओं की लय की तरह;
इक पौधे की नव किसलय की तरह;

तुम हो कहीं।

ये मेरा यकीन है।

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8 MAR 2019 AT 11:06

They say men are impatient and insensitive, but the men in my life have taught me otherwise. In their unique ways, they have challenged me, not only to be a better person, but also to look at life differently. I thank you all this women's day, for making me a self-assured woman!

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12 FEB 2019 AT 19:22

कहानियाँ ठहर-सी गयीं हैं,
कविताएें बेसुरी-सी...

शायद,
शब्द भी अब मेरे खामोश हैं।

©noopurpathak

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17 DEC 2018 AT 19:07

मेरे सपने मुझे,
'मैं' बनाते हैं।

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17 DEC 2018 AT 19:01

गुमशुदा क्या हुआ?

नींद से ख्वाब...
दिलों में जज़्बात...
जीने का शौक...
अपनों का साथ...

और,
मुझसे मैं।

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16 DEC 2018 AT 19:35

मैं वो अनकही गज़ल हूँ,
जिसका मतला और मक़्ता दोनों...
बस ज़हन में ही हैं।
ऐसी गज़ल,
जिसका हर इक शेर,
आपस में ही उलझा हुआ है।
वो गज़ल,
जिसके काफिये भी न मिलते हैं,
हाँ... रदीफ़ों की कोई कमी न है।
मैं अधूरी गज़ल हूँ,
इंतजा़र में हूँ कि,
कब वो शेर लिखा जाएगा..
जो शाहै बैत कहलाएगा।
पर अभी..
मैं इक अनकही गज़ल हूँ।

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19 JUL 2018 AT 22:27

ऑंखें बस नम होती हैं,
कम ये ग़म नहीं होता।

कह दूँ कुछ तो बद्तमीज़ हो जाती हूँ,
सुनने को खाली कोई हमदम नहीं होता।


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18 JUL 2018 AT 19:40

जज़्बाती हूँ,
पर नाकारा नहीं।

मुश्किल में हूँ,
पर बेचारा नहीं।

फिर से गिरा हूँ,
पर ज़िन्दगी से हारा नहीं।


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13 JUL 2018 AT 22:13

सुनो...

आ जाना,
इससे पहले कि अकेलेपन की लत लग जाए।

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