देवताओं में भी स्वयं विश्वकर्मा ने तुझे गढ़ा है मिट्टी मामूली नही मकराना के पत्थर से मढ़ा है जज़्बात से मेरे नासमझ है अभी तु, यकीनन बचे हुए पत्थर के टुकड़े तेरे दिमाग में पड़ा है।
बस इतनी सी ही देशभक्ति को निभा लू मैं, बलिदानियों का आभार दिल से जता लू मैं, बिखरे मिलते है एक दिन बाद सड़को पर, सोलह अगस्त को तिरंगे वँहा से उठा लू मैं।
लेलो मेरा सुख मेरा चैन, किस्मत भी ले लोगे लेलो मेरी शायरी, मेरी डायरी हुनर भी ले लोगे, खुश रहते हो लोगो की खुशियां छीनकर जो तुम लेलो मेरे रिश्ते, मेरे दौलत क्या कब्र भी ले लोगे।
आस्था नही बस डर के मारे मन्दिर में माथा टेकना बेरोजगारी के नाम पर तो बस विपक्षी दल को छेंकना, इनसे क्या ही उम्मीद, काम है इनका हर 5 साल बाद जनभावना के साथ खिलवाड़ करके अपनी रोटी सेंकना।