सुनो पिया !
आऊंगी तुम से मिलने-
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मैं नींद बनूं
तुम ख्वाब बन जाना
लिखूं जो कविता
जज़्बात बन जाना
पसंद है जो मुझे
वो बात बन जाना
ढल सकु तुझमें
वो रात बन जाना
निभा सकूं मैं वादा
तुम साथ बन जाना
तोड़ ना पाए कोई
ऐसे गाठ बन जाना
जाना तुम साथ अजाना
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मिल चुके है दिल विरह की बात अब ना आएगी
प्रेम खुद में ही मजहब है इसमें जात अब ना आएगी
तोड़ के उजाड़ देना वो फिर घरौंदे बनाएगी
प्रेम तो उड़ती विगह है वो हौसला ना गंवाएगी
आंखे बंद कर के वो अंगारों पे चल जाएगी
रूह भी जला दो मगर प्रेम ना जल पाएगी
कुछ थोड़ा बदलेगी कुछ खुद भी सुधर जाएगी
प्रेम में तिरस्कार नहीं वो नीचा ना दिखाएगी
प्रेम सर्वच्य है सदा प्रेम ही बरसाएगी
प्रेम की नजरो से देखो नफरत ना दिख पाएगी-
जल चुकी है रूह अब तो, जिस्म बची ये खाली है ।
रात की अब बात छोड़ो, दिन भी दिखती काली है ।।
खोखले अरमानों से अब , टूटी दरख़्त की डाली है।
दिमक उसमें घर लगाया, फितरत ही उसकी काली है।।
नाते पुराने टूट गए, आई जब से कंगाली है ।
धुंधलेपन में दिख गया, रिश्तों की डोर काली है ।।
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सुलझे हुए जवाब नहीं कुछ उलझे सवाल लिखूंगी
मैं आज असल बिहार लिखूंगी
(अनुशीर्षक पढ़े)
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थक सा गया है
मेरे जज़्बातों को लिख लिख के स्याह
आओ मोह की गोद में तुमको सुलाती हूं
नफ़रत जंग लिखते लिखते
मोह भूल गया है स्याह
प्रेम की दवात में आज तुम्हें डुबाती हूं
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चलो धूर्तों अपनी टोली बुलालो
आलोचना करो प्रश्न उठा लो
हास्य उड़ा लो भीड़ जमा लो
गीदड़ भभकी अपनी दिखलालो
बाप चच्चा फूफा मौसा
इनकी थोड़ी पॉवर आजमा लो
आओ बैठो शोक जाता लो
आओ बैठो शोक जाता लो-
जुग जुग जिया तू लल्लानवा
भवनवा के भाग जगाल हो
लल्लना लाल होईहे कुलवा के दीपक
मनवा में आस लागल हो-
जुग जुग जिया तू लल्लानवा
भवनवा के भाग जगाल हो
लल्लना लाल होईहे कुलवा के दीपक
मनवा में आस लागल हो-
एक श्रमिक के तरफ से
आप सभी श्रमिकों को
ढेरों शुभकामनाएं🙏
(अनुशीर्षक पढ़े)
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