तुम्हारा स्पर्श
जैसे रूह तक उतर आया हो,
हर दर्द, हर खलिश,
जैसे किसी दुआ ने मिटाया हो।
जब तुम्हारे सीने पर
सर रखा था चुपचाप,
वो सुकून ऐसा था,
जैसे मिला ख़ुबसूरत ख़्वाब।
तुम्हारी बाहों की वो गिरफ्त
सख्त होकर भी कोमल
उसमें था एक यकीन,
पर हर पल में बेचैनी शामिल।
आंखो में बसे तुम्हारे एहसास
हर ख्वाब को रोशन करते रहें
तुम ज़िंदगी में रहो यूँ ही,
तो सांसें मेरी चलती रहें।-
अधूरेपन में मरते हैं,
बंद आंखों से जिनके
सपने सींचते थके नहीं,
पलकों पर उन्हीं रिश्तों के,
सूखे कांटे चुभते हैं।
जिनका पूरा न होना ही,उनको मुकम्मल करता है,
कुछ सपने ज़िन्दगी के ऐसे सूफ़ियाना होते हैं।
दो अल्फ़ाज़ तुम्हारे लबों के,कुछ बोल मेरी ज़हन से
अधूरे रिश्तों की तरह दोनों,अधूरे कुछ गीत बुनते हैं।-
औऱ यादों में समय बीत गया।
जीवन हर क्षण में बदलता हैं रूप कई
कहीं बनती है छांव, लगती है धूप कहीं।
अचानक से कभी चेहरे पर मुस्कुराहट लाती
कभी अचानक से आँखें नम कर जाती।
वो 'यादों की परछाई'
क्षणभर में मेरे बीते हुए वक्त का भ्रमण मुझे कराती,
वो परछाई मेरे कल को, मेरे आज से कई बार मिलाती।-
सम्बधों की भीड़ में खो गयीं, देखों अकेली मैं हो गयीं,
अजनबी से मोड़ पर अपनों से ही दूर हो गयी।
कितना चाहा की वक़्त को, हाथों में कैद कर लूं ,
मुठ्ठियों में बंद लम्हों को ,फ़िर एकबार और ज़ी लुं।
पिंजरे में बन्द रूह को,दर्द की टहनी में टांका है,
दिल के अरमानों को,वक़्त के चूल्हे में फूंका है।
ये रिश्तों के तामझाम जो,मेरे चारों ओर जकड़ गये हैं
कितना भी सहेजो इनको,फिर से ये बिखर गये हैं।-
फिर से वही रात ,वही बात
बेबस अंधेरे और टूटे जज्बात।
वही टूटे ख्वाब और वही रूठें आप
फिर ना वो रात और ना तेरा साथ।
आंखें जब मुन्दू, तुझको ही ढूँढू
फ़िर किसी अजनबी से पता तेरा पूछूँ।
ना कोई सवाल, ना कोई मलाल
फ़िर लौटाना नहीं वहाँ, जहाँ मोहब्बत नहीं हलाल।-
ज़िंदगी मेरे पास आ, देखूँ जरा क़रीब से
तू छूटती ही जा रही दस्त-ए-तबीब से।
मालूम है कि ज़िंदगी हारेगी मौत से,
पर इतनी ज़ल्दी हारना भी क्या रक़ीब से।
आएगी मौत कर के गई है ये इत्तिलाअ
देखूँगी मैं भी,अब तो फ़रिश्ते क़रीब से।
अब तो असर दुआओं का भी बेअसर है,
शफ़क़त मिलेगी ज़िंदगी गर तो नसीब से।-
हर दम जलेगा दिल, हर दम तड़प मिलेगी,
ना छाँव ना सुकूँ, है अंगार इश्क जी,
हर ज़ख्म, जिल्लतों के खाने को भी हमेशा,
तिल-तिल सिसक मरने को तैयार इश्क जी।
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जिसके दीदार को आँखें हमारी तरसी
याद कर जिसको शबे सहर में ये बरसी।
एक झलक दिखे बस इसी ख्वाहिश को लिए
भटकती फिर रही कैसी ये दर -बदर सी।
सबके चेहरे में उसका चेहरा नजर आता
उसकी चाहत के सिवा और कुछ ना भाता।
तेरी नजरों की बेरुखी भी है कबूल मुझे
ग़म में डूब जाऊ मैं, तू जो जाए भूल मुझे।-
उम्र और ज़िंदगी चल रहे थे साथ साथ
हम बड़ी बे मुरव्वती से दर्दे दिल झांकते रहे,
दूरियां दिलों में थीं और हम उसे आंसुओं में ढालते रहे।-
जीवन का हर एक लम्हा,तुमने खूबसूरत बनाया है,
खुशियां भर कर मुझमें, हमसफ़र का अर्थ समझाया हैं।-