हाँ मेरा सफ़र है, में तय तो कर ही लूँगी,
अपने हक़ की तकलीफ़ तो में सेह ही लूँगी,
सुख पर हक़ जमाती हूँ, तो दुख को अपना क्यूँ ना कहूँ,
मेरी तक़दीर का रुख़ तो में मोड़ ही लूँगी,
हाँ आदत है मुझे इस सफ़र में गिर कर सहभलने की,
हाँ आदत है मुझे इस सफ़र में गिर कर सहभलने की,
मैं फिर से अपनी राह पकड़ ही लूँगी,
मत कर फ़िकर मेरी, तू अपनी राह बना,
कल में गर्व से केह सकूँ अपना ऐसा नाम बना,
सफ़र मेरा, मंज़िल मेरी, तू तो बस मेरा होसला बढ़ा,
अरे, मेरे दोस्त….
हाँ मेरा सफ़र है, में तय तो कर ही लूँगी,
अपने हक़ की तकलीफ़ तो में सेह ही लूँगी।
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