Niwas Pathak Aazad   (आज़ाद)
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इश्क़ में रहा, पर इश्क़ का ना रहा।
Joined 12 April 2017


इश्क़ में रहा, पर इश्क़ का ना रहा।
Joined 12 April 2017
5 FEB 2023 AT 20:32

मांगते हैं न्याय वो तो
इसमें भला क्या बुरा...
किसी जाति में
जन्म लेने मात्र से...
कैसे सिद्ध हो गया..
कौन छोटा, कौन बड़ा..?

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8 JAN 2023 AT 21:57

अनैतिक तरीके से कमाया गया धन,आपके पतन के मार्ग खोल देता है।बेईमानी की कमाई से सर्वप्रथम आपका स्वास्थ्य खराब होता है।अगर,आप खुशकिस्मत हैं और आपका स्वास्थ्य उत्तम है तो वो आपकी आने वाली पीढ़ी,आपके जीवनसाथी एवं आपके नज़दीक के परिवार को परेशान करता है।आपकी अगली पीढ़ी संस्कार हीन, तेजरहित एवं अनेक दुर्गुणों से युक्त होते हैं। पाप के द्वारा,छल से किया हुआ कमाई या बिना कार्य किए कमाया गया धन,ऐसे गायब होता है जैसे फूस के मकान में लगाए गए आग से मकान।अनेक उदाहरण ऐसे उपलब्ध हैं,जिसमें लोगों द्वारा गलत तरीके से कमाया गए धन को उसकी अगली पीढ़ी जुए,शराब या अन्य साजो सज्जा में बर्बाद कर देते हैं।वैसे माता पिता के पुत्र,पुत्री आगे चलकर कुमार्ग का अनुसरण करते हैं एवं वृद्धावस्था में माता पिता के कष्ट का कारण बनते हैं।

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23 DEC 2022 AT 22:49

मैं जब भी बनाता हूं
ख़ुद के लिए चाय
बरबस मुझे खींच ले जाती है
तुम्हारी याद,
कि कैसे
बरसों पहले
पूरी शिद्दत से
हमने बनाई थी
तुम्हारे लिए चाय...
और वह ही चाय
दे गई पहली और आख़िरी सुखद अहसास....

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20 DEC 2022 AT 0:38

उन्हें दूरियों की दरकार थी
मैं ने भी वक्त देने से
इन्कार कर दिया

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18 NOV 2022 AT 23:48

मैंने कहा
कैसे जी लेते हो ज़मीर बेचकर
उसने कहा,
आपको दिखता ज़िंदा हूं....
सच तो मुझे भी पता है
मरा हुआ जमीर और जिंदा शरीर हूं...
मैंने पूछा ऐसा करके
रात को नींद आ जाती है....??

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28 OCT 2022 AT 22:35

जब मेरे 50 दोस्त हुआ करते थे
रोज महफ़िल सजती थी
वो कॉल करती थी
और मैं व्यस्तता का बहाना बना
कॉल काट देता था...
तब वो कहती थी
वो तुम्हारे सुख के साथी हैं
मैं तुम्हारे दुख की साथी हूं
पर मुझे यह बात बोरिंग लगती थी।
फिर एक दिन सब बदल गया...
पैसा ख़त्म होते गया...
दोस्त कम होते गए...
और जब तलक मैं होश में आता
आजिज आकर
वो भी जा चुकी थी...
और मैं निस्तब्ध सा....
आसमां निहारते रहता था....

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16 OCT 2022 AT 11:43

बहुत सारी बातें करनी है तुमसे
मगर मेरे हिस्से
तुम्हारा इतवार भी तो नहीं आता...

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7 OCT 2022 AT 10:05

यह जानते हुए भी कि
वो ठीक नहीं है....
मैं पूछता हूं...
तुम ठीक तो हो..?
और वो कहती है
हां,बिल्कुल ठीक...
और पूछती है...
तुम सुनाओ...
बड़े low फील हो रहे हो...
और मैं कहता हूं...
नहीं तो सब झकास...
इस तरह हम दोनों ठीक ना होते हुए भी
एक दूसरे को ठीक कर देते हैं...
ठीक वैसे ही जैसे बहुत सारी
आड़ी तिरछी रेखाएं...
अचानक से
एक सुंदर चित्र में तब्दील हो जाती है...

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4 OCT 2022 AT 23:48

एक अजीब सी कश्मकश थी जिंदगी में
उतरते तो डूब जाते,और किनारे खड़े रहते
तो ख़ुद से नजरें नहीं मिला पाते....

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4 OCT 2022 AT 9:55

वाराणसी शहर में एक अलग तरह का सुकून है,जब गंगा घाट पर बैठ आप,आते जाते लहरों को देखते हैं,श्मशान घाट पर चिताओं की लपटें देखते हैं,यह रूप,रंग,शक्ति प्रदर्शन,अहं सब महज एक छलावा है।ऐसा महसूस होता है,व्यर्थ का मनुष्य इतना आकुल-व्याकुल होता है।बनारस की मिट्टी में ही वैराग्य है।मोह के वशीभूत हो जो हमलोग प्रतिक्षण और पाने की लालसा में पागल हुए जा रहे हैं।लहरों का आना जाना ऐसा महसूस दिलाता है,चाहे आप कितने भी प्रवाभशाली हैं,इतने बड़े ब्रह्मांड में पानी के एक बुलबुले के समान हैं;जिसका स्वयं कोई अस्तित्व नहीं अपितु प्रकृति प्रदत्त है।क्रमश:....

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