धधकती आग से पिघले हुए शमशान की ये तस्वीर,
लेकर कहां तक जाएगी दफन होते अपनों की ये तकदीर।
दौलत के हाथ भी मजबूरी में ढीले हो गए,
प्रचण्ड कोहराम के बीच सभी इस कदर अकेले हो गए।
मूक मुस्कानें, बेबस नज़रें हैं, सांसें न जाने कहां खो गईं,
घरों में बंद है दुनिया, बेपरवाह आज़ादी जैसे सपना हो गई।
प्राणों की ऐसी कीमत गिरी, और कालाबाज़ारी सरेआम हो गई,
लड़ाई तो हर इंसान की थी, देखा तो यहां इंसानियत ही बेज़ार हो गई।
-