Nivedita Chakravorty   (Nivedita Chakravorty)
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Joined 20 March 2020


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Joined 20 March 2020
25 APR 2020 AT 8:17

प्रशंसा एक ऐसी अचूक शक्ति है जो एक व्यक्ति के मृत आत्मविश्वास में साँस फूँक देती है। प्रशंसा करते रहिए, हो सकता है, जिसकी कर रहे हैं, उसके जीवन में उस प्रशंसा की बहुत आवश्यकता हो उसे अंधेरे से बाहर खींचने के लिए..

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19 APR 2020 AT 15:46

दृढ़ता (Perseverance) मनुष्य के मन-मस्तिष्क की वह विशेषता है जहाँ मनुष्य किसी भी कठिनाई की परवाह न करते हुए एकचित्त और लगन के साथ
अपने ध्येय की ओर बढ़ता जाता है। ये मन की पकड़ है और ईश्‍वर का आशीर्वाद।

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17 APR 2020 AT 8:46

सृजन चाहे लेख का हो, कविता का हो, चित्रकारी का हो, बिना ईश्‍वर के आशीर्वाद के हो ही नहीं सकता इसलिए ऐसे हर सृजन के बाद ईश्‍वर को आभार व्यक्त करना चाहिए कि आपको इस प्रतिभा का धन मिलने का विशेषाधिकार प्राप्त हुआ, कभी अपने किसी सृजन से अहंकार की उत्पत्ति नहीं होनी चाहिये, ये कृतघ्नता होगी।

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15 APR 2020 AT 11:05

निर्भयता यूँ ही नहीं आती, बहुत अभ्यास से आती है। स्वयं पर और परमात्मा पर यदि विश्‍वास नहीं है, तो निर्भय होना भी आसान नहीं। जीवन की हर कठिन परिस्थिति में मुस्कराते हुए आगे बढ़ने का संघर्ष निर्भयता है। निर्भय रहिए, विश्‍वास रखिए स्वयं पर, परमात्मा पर और नियति पर।

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14 APR 2020 AT 8:13

सहानुभूति हृदय का वो भाव है जब हम हर मनुष्य में ईश्‍वर का रूप देखने लगते हैं तब हम कभी किसी को दुःख पहुँचाने का सोच भी नहीं पाते वरन् दूसरों के कष्ट से अनायास ही हमारे नेत्र भर आते हैं।

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13 APR 2020 AT 7:41

क्षमा किसी दूसरे को मुक्त करना नहीं वरन् स्वयं को उस व्यक्ति के प्रति पाले हुए दुःख, क्षोभ और क्रोध से मुक्त करना है। ये भी एक बंधन है और क्षमा मुक्ति द्वार। क्षमा करते जाओ, मुक्त होते जाओ।

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12 APR 2020 AT 8:51

जब तुम किसी की प्रशंसा करते हो तो अपने स्वार्थ की परिधि और अभिमान से बाहर निकल कर ईश्‍वर की सब कृतियों पर गर्व करने की प्रतिभा जुटा लेते हो।

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10 APR 2020 AT 17:08

आध्यात्मिकता आत्मा के दिव्य ब्रह्म स्वरूप की स्वीकृति है और परमात्मा के दिव्य आलोक की सत्ता में स्वयं का संपूर्ण समर्पण है।

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10 APR 2020 AT 8:24


बहुत अनमना सा गुजरा था वो पल
जब कोई अधूरी बात दम तोड़ गई थी लफ़्ज़ों के दरवाजे पर......

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9 APR 2020 AT 8:57

प्रेम अविरल, अविराम, अलौकिक, अद्भुत है। प्रेम मनुष्य के संवेदनाओं की पूर्णता है। प्रेम जितना अनुभूत होता है, उतना व्यक्त नहीं किया जा सकता। प्रेम ईश्‍वर का वो संवाद है जहाँ समस्त शब्द अपनी व्याख्या खो बैठते हैं और अंततः मौन ही मुखर होता है।

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