फलक से सितारे लाओ की
शहर में रोशनी कम है,
और ये बरसात यूं ही नही है
मेहबूब की आंखें नम है।
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13 october starting day
आज बड़े दिनों के बाद उससे मुलाकात हुई,
हम बैठे और फिर वही पुरानी बात हुई,
उसने कहा कभी याद किया, कोई फ़रियाद किया,
ना कभी मैसेज किया,ना ही कोई खत दिया।
मैने कहा खत, हां दिया न खत,
एक खत तुम्हारी आंखों को,
एक खत उन आंखों को,
एक दिया तेरी सूरत को,
संगमरर सी बनी उस मूरत को।
एक खत तुम्हे पाने की मुस्तकिल को,
एक खत तुम्हारी पांव में चुभे कील को,
एक दिया उस बस ड्राइवर माईकिल को,
जिससे पीछा किया उस पुरानी साइकिल को,
एक खत तुम्हारी पहली झलक को,
एक खत पीछे वाली सड़क को,
एक दिया सांसों की सिसक को,
हमारे बिछड़ने के बाद हर पल के कसक को।
एक खत तुम्हारे साथ गुजारे शाम को,
एक खत तुम्हारे खूबसूरत नाम को,
एक दिया तेरे आशिक तमाम को,
फिर तुम्हारे जाने के बाद हर पल जाम को।
एक खत तुम्हारे कदमों के धूल को,
एक खत तुम्हे दिए फूल को,
एक दिया अपने स्कूल को,
और आखिरी दिया
हमारे प्यार करने की उस भूल को।
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ये आंसू नहीं बचा हुआ टुकड़ा मेरे जाम का है,
मय बुरी नही ये चीज बड़े काम का है,
अरे इश्क जुनून मांगती हैं साहेब,
आपने कैसे कह दिया ये सौदा बड़े आराम का है।-
तुम्हें बहुत मजा आता है हमें सताने में,
अब तो काफी देर कर दी तुमने आने में,
हमारा पता गैरों से क्यों पूछते हो,
शाम को चले आना उसी मयख़ाने में।-
रात थोड़ी जवान सी,
मेहबूब थोड़ा परेशान सा,
इश्क़ भी थोड़ा नादान सा,
फिर तुम पूछते हो,
हंगामा किस बात पर।
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काश तु चाय सी मीठी हो जाए ,
बस तुझे देखूँ और होंठों से लगाने का मन हो जाए।
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हमें कुछ होता है तो फ़िक्र करते हो,
अगर दिल्लगी है तो बोल दो,
बेवजह क्यों महफ़िलों में ज़िक्र करते हो।-