ये कैसी सिफारिशें है तकदीर की मुझसे..
बादल घेर भी रहे मुझे तो आसमान सब साफ कर दे रहा
जिसम् की बात जिसम् तक तो जा रही है..
पर जो आँखो मे है मेरी देखना नहीं उसे , वो आँख बंद कर दे रहा
मैंने महदूम कर दिया उन सारे ज़ज़्बातो को बरसो पहले..
उसका ग़ुरूर तो देखो , मेरी आँख मे आँख डाल कर होठो को खामोश कर दे रहा
दो चार मुनाफिक उसके औऱ उसी मे उसकी ये अज़ीज़ दुनिया..
मै उसका हाल नहीं पूछता तो वो उनसे अपना हाल पूछ ले रहा
मेरी नज़र पड़ी थी उस पर तो उसने आँखो से पर्दा हटाया था..
आज पर्दा खुला है सबके लिए , जिसे देखो उसे सरे-आम कर दे रहा
ये रंग-ओ-रोगन हुस्न का ये चरबा बस इस कलयुग तक उसका..
नहीं चाहिए वो गुलाब जो दिन-ओ-रात अपनी खूबसूरती पर इतना इतराता है
मै आँख खोलू तो सुबह हो जिसकी , मै बंद करू तो मेरे इंतेज़ार मे करवट हो जिसका..
मै अपनी किताब मे गुलाब से ज्यादा खूबसूरत सूरज-मुखी को लिख दे रहा-
कभी इश्क़ से राब्ताँ हुआ हो तो ही मुझसे राब्ताँ रखना
मै मुकम्मल ... read more
कितने शाम एक दफा ही सही उसको याद करेगा
ये अब्र-ए-ग़लीज़ तेरे छत से आखिर कब हटेगा
ये क्या तिलिस्म है जो तुझे आजाद नहीं होने दे रहा
चल आज पता कर , कौन तुझे यादो की कफस मे सोने नहीं दे रहा
किसी का बदन तो तेरी खाम-ख्याली नहीं..
कही तेरी चीखो मे उसकी रूह तो नहीं
एक फरहत है नूर उसका जो तुझे चाहिए
मै जानता हु , तुझे फिर उसकी तलब चाहिए
उन बंजर रेत के विराने मे अपनी मेहबूब को मत ढकेल..
ये दुनिया बागुला है , उसका मज़ाक़ बनाने लगेंगी
तुझे तेरी यादो से सुकून कभी नहीं मिल सकता "नितिश"..
ये यादे उसकी है , तुझे इंसान से लाश बना देंगी-
मेरे मुन्तज़िर मे आँशु लाने का तुम्हे कोई हक़ नहीं
रूब-रु कराया था इल्म मुझे , मेरे सामने मुस्कुराने का तुम्हे कोई हक़ नहीं
जलाओ चराग अब चाहे रौशनी के लिए मेरा मकान जलाओ
मेरे सुर्ख होंठ पर ये तिल तुम्हे छूने का कोई हक़ नहीं
गुलाब हयात से मुस्कुराहट छीन लेते है , तुम्हे अब मेरे सामने रोने का कोई हक़ नहीं
ग़ुमान करते रहो तुम अपनी पाबंदीयों पर , मुझे बारिश मे भीगने से रोकने का तुम्हे कोई हक़ नहीं
सोचो कितना चूभ रहा होगा तुम्हे ये टुटा हुआ कांच का टुकड़ा..
तुमने तोड़ा था मुझे याद रखना , मुझे जोड़ने का तुम्हे अब कोई हक़ नहीं-
होती है कुछ बाते खुद से भी
रिश्तो मे हिसाब-किताब तुम रखो
मै जिसे चाहता हु , उसे बे-इंतेहा चाहता हु
तुम चाहे फिर मुझे किसी के बाद रखो
ये रिवायते खानदानी है , इनका मोल मत पूछो
पापा ने बोला है मुझसे कई बार , अपनी माँ का ख्याल रखो ..
तुम कहती हो जबान से इश्क़ सुनाऊ?
इससे अच्छा कह दो कि कोई मन-गढ़न्त कहानी सुनाऊ..
नहीं नहीं!! मुँह से जायज़ लगे बस उन लफ्ज़ो से तालुकात रखता हु
मै जिस पर हाथ रख दू , उससे शादी के ख्वाब रखता हु
ये सब नहीं समझ पाओगी तुम , तुम कोयल हो सुबह से शोर करने वाली..
मेरा प्रेम पत्र रखी होगी तुम संभाल कर, जानती ही हो मै कबूतर के शौक रखता हु-
मै तुम्हारे गम तो भुला चूका हु
मुझे मुतलक़-तसव्वुरात से आगे निकलने दो
कुछ हकीम की दवाये याददाश्त भुला दे मेरी
जाना अब तुम मिल भी गए दोबारा , तो जाओ रहने दो
किसी औऱ का काजल अब मुकम्मल नहीं कर सकता मुझे..
मुझे बस जैसे तैसे उस शक्स से आगे निकलने दो
मै वो सब नहीं जीना चाहता जो हम दोनों के बीच हुआ ही नहीं..
पति बनना था उसका , वो माह-रूख मेरा हुआ ही नहीं
बस खो चूका हु उसे मै तो मुझे मेरी उल्फत मे रहने दो
या गुमनाम कह दो मुझे या उसी के नाम पर मुझे बदनाम कहने दो
आफरीन कर सको मेरा तो अपनी आँखो को बहने दो
मुझे समझ गए तुम तो मुस्कुरा कर खुद को सब सहने दो
मेरा एक-एक शौक कोई ज़रुरत बन कर पूरा करेगा
मेरी एक ज़रुरत थी वो , उसे किसी औऱ का शौक बनने दो
कसक कुछ अधूरी रह गयी तो ये जन्म अधूरा सही..
मै सुलझ गया तो जान ले लूंगा अपनी , मुझे उलझा रहने दो-
कितनी ख़ूबसूरती से सजाया होगा मैंने अपने रिश्ते को..
मुझे छोड़ने वाला लौट कर मेरा हाल जरूर जानता है-
उसे दवा या दुआ की ज़रुरत पड़ी होगी
वो लौटी है फिर मतलब से मतलब निकालने
मोहब्बत भी हरम है "नितिश" कुछ लोगो के लिए
पूरी दुनिया मे वो शक्स मिला जो आया ज़रूरते निकालने
.
एक आँख पडती थी उसकी मुझपर तो मै सवेरा मानता था
मेरी रूह काँप जाती थी जब वो शक्स बुरा मानता था
मै कहता रहता था , उससे इस जन्म का राब्ताँ बनाना है..
वो इस नकली दुनिया को अपनी दुनियादारी मानता था
.
सावन आया , चला गया , अब मेरा जन्मदिन आएगा
बारिश हुई , ना सीने पर , ना जिस्म पर , सिर्फ आँखो को पता है
मै उसकी तस्वीरो को सीने से लगा कर सोता हु..
मेरे औऱ उसके बीच की मोहब्बत सिर्फ मुझे पता है
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तुम्हारा चेहरा खूबसूरत रहे तो रहे..
तबस्सुम ले कर तुम आगे बढे तो बढे
इश्क़ मिला दूसरा मगर सच्चा?
मै नहीं मानता , मै नहीं मानता
.
बरसात मे किसी छत के नीचे खड़े
टूटा हुआ छाता लेकर तुम आगे बढे
तुम्हे आसरा दिया एक लड़की ने , वो सच्ची थी?
मै नहीं मानता , मै नहीं मानता
.
किसी को आवाज़ दो , वो रुक जाये
उससे तुम्हारा राब्ताँ सच्चा हो जाये
फिर एक दिन उसे आवाज़ देकर रोकना पड़े , वो राब्ताँ सच्चा था?
मै नहीं मानता , मै नहीं मानता
.
किसी से आहत हो..
उसी से बगावत हो
फिर मजबूरी को मोहब्बत का नाम देने लगो
मै नहीं मानता , मै नहीं मानता
.
खलिश लेकर मन मे रहो
किसी शक्स के कफस मे रहो
दो पंछी आज़ाद करके पिज़रे से , खुद को आज़ाद कहते हो
मै नहीं मानता , मै नहीं मानता-
जाने क्या सोच कर मैंने ये कर दिया..
उसने कॉल किया बरसो बाद औऱ मैंने काट दिया
ख़त तुम रखो मेरे , उनको जला दो या पढ़ो..
मैंने तुम्हारे बाद दिल से लिखना छोड़ दिया
तुम कब तक पीछा करोगे मेरा , ये बताओ
मैंने कान पर हाथ औऱ मुँह से बोलना छोड़ दिया
मै तुम्हारा बेवफा आशिक था , यही कहते रहे तुम
औऱ तुम करो गिला अब , मैंने इल्म करना छोड़ दिया
ये जन्म तुम्हारे बिना मुमकिन मैंने सोचा ना था..
मै अब इन हवाओ को पीता हु , साँस लेना छोड़ दिया
कोई याक़ूब क्या मुझे गिरफ्त मे करेगा अब..
मैंने जिसको एक दफा छोड़ दिया, फिर छोड़ दिया
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वो दिन गए जब रूठते थे तुम औऱ हम मनाते थे
इश्क़ इंसान से क्या कुछ नहीं कराता है
मै तेरी गली से होकर रोज़ शाम घर लौटता था
हाँ वही गली जहाँ तू अब छत पर भी नज़र नहीं आता है
वो गुलाब दस्तूर मे है , उन्हें अपना पता मालूम है
वो तुझे मिल गए तो गए वरना उन्हें अब मुरझाना आता है
कैसे मुमकिन हुआ तिशनगी से शिकवा तक का सफर
मै इश्क़ ऐसे भुला जैसे कोई अब सिर्फ अनपढ़ नज़र आता है
मै आज लिख रहा हु बे-इंतेहा जिसे..
उसे तो बस अब किसी औऱ होना नज़र आता है-