तेरे चेहरे पर रखी है एक अनजान चाहत ,
वो किसी शाम के दरमियाँ फलक पर होगी ।
इसी चाहत के दीवाने हज़ारो होंगे ,
क्या जरूरी है सबके नसीब में ये उल्फ़त होगी |-
nitish duniwal
(नितिश "मंथन")
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जान लोगे अगर यही से, तो समुंदर की गहराई का अंदाज़ा कैसे लगेगा।
Joined 3 December 2017
8 JUN AT 10:37
6 FEB AT 18:57
मुझको ‘मैं ‘ से मिलाने की प्रक्रिया ही कर्म है ,
और ‘मैं’ तक पहुचने का रास्ता ही धर्म है ।-
30 SEP 2024 AT 23:19
तू अजनबी शाम सी हो चली है मुझमें,
मैं रात भर जाने किसको लिखता रहा ।
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27 JUN 2024 AT 0:19
कभी जंग थी, प्यार नहीं,
वार भी , इनकार भी ,
कुछ बदले है हालत ऐसे,
अब इज़हार है, इक़रार है ,
जंग थमने को तैयार है ,
शायद दिल बेक़रार है ,
बूझे तो कोई, क्या यही प्यार है?-