nitish duniwal   (नितिश "मंथन")
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जान लोगे अगर यही से, तो समुंदर की गहराई का अंदाज़ा कैसे लगेगा।
Joined 3 December 2017


जान लोगे अगर यही से, तो समुंदर की गहराई का अंदाज़ा कैसे लगेगा।
Joined 3 December 2017
8 JUN AT 10:37

तेरे चेहरे पर रखी है एक अनजान चाहत ,
वो किसी शाम के दरमियाँ फलक पर होगी ।
इसी चाहत के दीवाने हज़ारो होंगे ,
क्या जरूरी है सबके नसीब में ये उल्फ़त होगी |

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6 JUN AT 22:11

क्यों फैसलों पर बात करता है तू मेरे,
क्या तेरी रोटी इसी पे टिकी है ।

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6 FEB AT 18:57



मुझको ‘मैं ‘ से मिलाने की प्रक्रिया ही कर्म है ,
और ‘मैं’ तक पहुचने का रास्ता ही धर्म है ।

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23 OCT 2024 AT 21:46

मुझे बस अपना पता दे दो ,
खो कर भी ख़ुद तक पहुँच जाऊ मैं ।

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30 SEP 2024 AT 23:19

तू अजनबी शाम सी हो चली है मुझमें,
मैं रात भर जाने किसको लिखता रहा ।

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3 AUG 2024 AT 1:05

तू उसूलों पे मत रख बात अपनी,
तेरी कहानी पर भी शक है मुझको।

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21 JUL 2024 AT 12:15

बेहिसाब सी हो चली है ज़िंदगी,
वो बचपन के सपने सब झूठे थे ।

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27 JUN 2024 AT 0:19

कभी जंग थी, प्यार नहीं,
वार भी , इनकार भी ,
कुछ बदले है हालत ऐसे,
अब इज़हार है, इक़रार है ,
जंग थमने को तैयार है ,
शायद दिल बेक़रार है ,
बूझे तो कोई, क्या यही प्यार है?

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27 DEC 2022 AT 23:53

तू हर बार की तरह बेवफा निकली,
हम हर बार ही तुझे आजमाते रहे।।।

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4 OCT 2022 AT 0:19

रात भी नींद भी कहानी भी
हाए क्या चीज़ है जवानी भी

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