एक थका सा वयोवृद्ध कबूतर,
बैठा था खिड़की के उस पार।
थका सा व्यथित मन शिथिल तन,
जैसे एकांत की ही थी उसे दरकार।
दूर कोलाहल करता झुंड जैसे उसे त्याग चुका था,
कुछ उसे भी ना था किसी सहचर से सरोकार।
संतप्त हृदय डगमगाता शरीर जैसे प्रयोजन ढूंढता,
क्या था उसका उसकी जिंदगी पर अधिकार?
ना जन्म पर कोई वश, ना मृत्यु पर नियंत्रण था,
वो तो बस जी कर ही कर सकता था जीवन को स्वीकार।-
नमस्कार 🙏
वो मधुर तान बंसी की,
यमुना के तट पर...
वो उज्जवल सी चन्द्र दीप्ति
व्याप्त होती घट घट पर।
वो शीतल सुगंधित पवन,
छेड़ती सी वंसी वट पर,
वो विह्वल आह्लादित सी,
राधा जी पनघट पर,
वो प्रेम भाव कान्हा का,
निखरता सा राधा रट पर।-
स्वयं के कृत्यों से व्यथित हैं मन,
किसी और पर दोषारोपण क्यों करना।
दुर्बल मन से डगमगाते है पांव अक्सर,
पथ ने गिरा दिया फिर ये दंभ क्यों भरना।
धुंधला कर देता है आंसू स्पष्ट से दृश्य को भी,
फिर संकुचित मन से उलाहना क्यों करना।
पथ तो अनेकों है जो जा मिलते है कही न कही,
फिर भारी मन से बोझ लिए यात्रा क्यों करना।
पथिक हो तो फिर यात्रा से घबराना क्यों आख़िर,
मृत्यु भी अंत नही फिर इस सत्य से क्यों डरना।-
मैंने आवाज तो दी, लेकिन उसने कुछ कहा ही नहीं,
शायद ये रिश्ता पहले सा अब रहा ही नहीं,
आखों के भीतर तो लहराता रहा समंदर मेरे,
लेकिन पलकों के बाहर एक कतरा बहा ही नहीं।-
शक्ति स्वरूपा, शक्ति प्रदायनी
शंका निवारो, शरण में आए।
सर्वस्व समर्पित तुमको जगजन्नी,
चरण तुम्हारे मेरे मन को भाए।
ये मोह मिथ्या लिप्सा अहंकार
हर क्षण मुझको अंतः से खाए।
दुर्गुण हरो हे मां जगदंबिके,
तुम्हारे सिवा कोई नजर ना आए।-
वो लम्हा ठहर जाए दामन में,
आपको जिसकी तलाश हो,
खुशियों के आंगन में हरदम निवास हो।
हर दिन चमको चांद की तरह,
जिंदगी का हर दिन पहले से खास हो।-
दिल में दफ्न है उसके अनगिनत ख्वाहिशें,
आखों में रेत का समंदर नजर आता है।
छुपा रखा है खुद को ख़ामोशी के तहखाने में,
उसे अब शब्दों से खेलने का हुनर कहा भाता है।
कोई कुछ भी कहे तो हल्के से सर हिला देता है,
अब वो पहले जैसे सही गलत में कहा उलझाता है।
कभी कायल थी दुनियां जिसके समझदारी की,
अब आख़िर खुद को ही कहा समझ पाता है।
रहता तो है भीड़ में लेकिन सबसे अलग अलहदा,
अब साथ बैठे भी तो किस्से कहा बताता है।
जिंदादिल था कभी अब बेजार है खुद से भी,
अब चेहरे पर वो मासूम मुस्कराहट कहा लाता है।-
तरसती निगाहों को आज़ फिर आपका दीदार हुआ,
आपकी मोहिनी सूरत से फिर मुझे प्यार हुआ।
फिर खो बैठा सुध बुध और दुनिया की रीत,
चलते हो साथ साथ हमेशा फिर ऐसा ऐतेबार हुआ।-
"कुछ बातें जो कहीं तो थी तुमसे
लेकिन कभी पहुंच ना पाई तुम तक
वो गूंजती है कहीं राहों में अब तलक
लेकिन खो चुकी है शायद अपना वजूद
और अब भटक रही है बेइरादा बेमक़सद"-
तुमसे रूबरू होने का कुछ यूं असर हुआ,
मुझमें "मैं" ना रहा हर फरेब बेअसर हुआ।-