Nitin Sonu  
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Joined 18 October 2019


Joined 18 October 2019
29 APR AT 10:19

हमें तों अपनों ने लूटा गैरो में कहा दम था,
गौर किया जो हमने,हर दर्द के पीछे अपना ही कर्म था।

किया जिसनें सबसे अलग वो अहम् भी मेरा था,
डाली जिसने रिश्तो में दरार वो वहम भी मेरा था।

शांत नहीं रहने दिया जिन्होंने मन को,वो ख्वाहिशे भी मेंरी थीं,
छीन लिया जिसने जीवन से सूकून , वो क्रोध भी मेरा था।

सोचने न दिया कभी दूसरे की खुशियों के बारे में,
वो स्वार्थ भी मेरा था,
संतुष्ट न होने दिया जिसने कभी वो लोभ भी मेरा था।

हमेशा मन मे डर बना कर रखा जिसने वो मोह भी मेरा था,
सोने न दिया जिसने कभी सूकून से, वो चिन्ता भी मेंरी थीं।

तोडा जिन्होंने दिल अपनों का,वो शब्द भी मेंरे थें।
टूटा विश्वास जिनकी वजह से,वो उम्मीदें भी मेंरी थीं।
Nitin Sonu







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22 APR AT 11:16

जीवन में कभी कभी-कभी आता ऐसा भी दौर हैं,
इंसान चाहता कुछ हैं और होता कुछ और हैं।

पूरी कोशिश करता हैं वो सबकी उम्मीदों पर खरा उतरने की,
मगर होनी पर नहीं चलता उसका कोई जोर हैं।

भीतर हीं भीतर वो टूट जाता हैं वो,
जब कोई अपना शिकायत भरी नजरो से देखता उसकी ओर हैं।


उसने क्या कहा था भूल कर कहिये उससे "मै तुम्हारे साथ हूँ "
क्योंकि ऐसे समय मे जरूरत होतीं हैं उसे अपनों के साथ की
जो उसे समझ सके और साथ दे उसका जीवन के हर मोड़ पे।


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17 APR AT 11:26

दस इन्द्रियों के रथ (दशरथ) पर हो जिसका नियंत्रण,
प्रभु स्वीकार करतें हैं ऐसे हीं भक्त के हृदय का आमंत्रण

कुशल (कौशल्या) हो जो अपने कर्तव्यों में चित्त हो जिनका धर्म परायण,
उनकों मातृत्व सुख का आनंद देने स्वयं आते हैं नारायण।

लक्ष्य सिर्फ एक हो मन में (लक्ष्मण ) हर पल मिलें प्रभु का सानिध्य,
ऐसे भक्त को कभी अकेला नहीं छोडते हैं उनके आराध्य

भक्ति रस में तन्मय हो कर (भरत) जो निरंतर करते प्रभु का ध्यान,
रखते हैं ऐसे भक्तों का निरन्तर प्रभु स्वयं ध्यान।

हर काम का श्रेय प्रभु को देना स्वयं चाहना न कोई मान (हनुमान)
ऐसे भक्त के रोम रोम में हों जाते हैं स्वयं प्रभु विराजमान।

प्रभु काज के लिए झट से अपनी आयु (जटायु) देते हैं बलिदान,
ऐसे भक्त को प्रभु देंते हैं जीवन का सर्वोच्च सम्मान।

सब्र के साथ (शबरी) जो निरंतर करते है प्रभु का इंतजार,
प्रभु हो जातें हैं उनके झूठे बेर खाने को भी तैयार।

विचलित न होते जो अपने धर्म से चाहें स्थिति कितनी भीषण,(विभीषण)
ऐसे भक्तों को प्रभु ले लेते हैं अपनी शरण।
Nitin Sonu

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15 APR AT 11:01

एक बार बिना किसी अपेक्षा और चाह के,
बस निस्वार्थ प्रेम भाव से प्रभु से अपना हृदय जोड़ कर देखिये।
आप अपनें जीवन में खूबसूरत परिवर्तन महसूस करनें लगेंगे,

मिटने लगेंगे खुद ब खुद जीवन से सारे संताप
आप अपनें तन और मन असीम ऊर्जा और शांति का अनुभव करनें लगेंगे।


क्या, कब, क्यों और कैसे हुआ या होगा मिलेंगे सारे सवालों के जवाब,
हर होनी मिटायेगी मन मे उत्त्पन्न संशयों को,
हर होनी में आप प्रभु की कृपा महसूस करने लगेंगे।

मिलनें लगेंगे मंजिल के रास्ते,होंने लगेंगे स्वतः सारे काम,
कोई तों हैं जो हमेशा है आपके साथ,
आप स्वयं महसूस करनें लगेंगे।
Nitin Sonu






















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13 APR AT 11:14

सं = संयम बनाये रखना हैं हर परिस्थिति मे,
तु = तृप्ति ( जो पास हैं वो पर्याप्त हैं),
ष = षट विकारो ( काम, क्रोध, मद,लोभ,मोह,मात्सर्य) का त्याग ।
टि = टिका (बना) रहना हमेशा प्रभु पर विश्वास ।

इन सब घटको से मिलकर बनती हैं हमेशा खुश रहने की औषधि,
जिसका नाम हैं संतुष्टि।

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10 APR AT 11:04

जब दोनों तरफ से एक-दूसरे को बदलने की जगह,
एक-दूसरे में ढलने की कोशिशें की जायेगी।
तब खुद ब खुद दूरियां नजदीकियां बन जायेंगी।

जब उम्मीदें और अपेक्षाएं लगाने से पहलें,
एक-दूसरे की मजबूरियाँ समझीं जायेंगी,
तब खुद ब खुद दूरियां नजदीकियां बन जायेंगी।

हर इंसान में होतीं हैं कुछ न कुछ कमियां।
जब एक-दूसरे की कुछ बाते नजरअंदाज की जायेगी।
तब खुद ब खुद दूरियां नजदीकियां बन जायेंगी।
Nitin Sonu

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6 APR AT 12:55

अक्सर जब भी जल्दबाजी की हमनें,
परिणाम आया "अगर" और "काश" लेकर अपनें साथ।

फिर भी कभी अपनी गलती समझने की कोशिश न की हमने,
कभी वक्त,कभी ईश्वर,कभी दोस्तों को दोष देकर झडक लिए अपनें हाथ।

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5 APR AT 11:15

शून्य सी पडी मिट्टी मन हीं मन सोच रहीं थीं,
जानें क्यों नजर अंदाज करता हैं वो खुदा मुझको।

फिर एक कुम्हार उसके जीवन मे आया,उसने उसे उठाया,
पहलें रौदा उसको,फिर पानी डाल कर गूंथा,
फिर तेजी से अपनें चाक पर घुमाया।

फिर काट कर उसे एक घडे आकार दिया,फिर उसे अग्नि में खूब तपाया।
जो भी आया उसे खरीदने के लिए,उसने उसे खूब बजाया।

किस्मत बदल चुकी थीं अब उसकी,
जो कल तक किसी काम की न थीं आज वो सबको तृप्त कर रहीं थीं।
नजरे उठाकर देखा उसने ईश्वर की ओर,
मगर आज उसके हृदय मे शिकायते नहीं बल्कि शुक्राना था,
जिसे समझ रहीं थीं कल तक वो नजर अंदाजी रब की ,
आज उस मिट्टी ने हर होनी मे ईश्वर की असीम कृपा को पाया।
Nitin Sonu


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4 APR AT 10:21

आमतौर पर हम दूसरे के दर्द को उसके कर्मो की सजा,
और अपनें दर्द को ईश्वर द्वारा ली गईं परीक्षा समझते हैं।

लेकिन अगर हम इसके विपरीत सोचें तों,
हम दूसरे का दर्द समझेंगे उस पर हंसेगे नहीं,
और अपनें कर्म सोच समझकर करेंगे,असत् कर्मो में फंसेगे नहीं।

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3 APR AT 23:27

दिल का दर्द दिल हीं जाने,

अपनी मधुर मुस्कुराहट में छिपा लेते हैं वो दर्द अपना,
राधा से विरह का दर्द कृष्ण के सिवाय और कौन जाने।

कोई गलती भी न की और उम्र भर सजा मिलतीं रहीं,
उस सजा का दर्द दानवीर कर्ण के सिवाय और कौन जानें।

जिनकी आँखो के सपनें बस सपने हीं बनकर रह गयें,
उन टूटे सपनों का दर्द देवी यशोधरा के सिवाय कौन जाने।

अग्नि परीक्षा के बाद भी सवाल उठे जिनकी पवित्रता पर,
उन शब्दों का दर्द माता सीता के सिवाय और कौन जाने।
Nitin Sonu










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