हमें तों अपनों ने लूटा गैरो में कहा दम था,
गौर किया जो हमने,हर दर्द के पीछे अपना ही कर्म था।
किया जिसनें सबसे अलग वो अहम् भी मेरा था,
डाली जिसने रिश्तो में दरार वो वहम भी मेरा था।
शांत नहीं रहने दिया जिन्होंने मन को,वो ख्वाहिशे भी मेंरी थीं,
छीन लिया जिसने जीवन से सूकून , वो क्रोध भी मेरा था।
सोचने न दिया कभी दूसरे की खुशियों के बारे में,
वो स्वार्थ भी मेरा था,
संतुष्ट न होने दिया जिसने कभी वो लोभ भी मेरा था।
हमेशा मन मे डर बना कर रखा जिसने वो मोह भी मेरा था,
सोने न दिया जिसने कभी सूकून से, वो चिन्ता भी मेंरी थीं।
तोडा जिन्होंने दिल अपनों का,वो शब्द भी मेंरे थें।
टूटा विश्वास जिनकी वजह से,वो उम्मीदें भी मेंरी थीं।
Nitin Sonu
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